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बरेली, वाईबीएन संवाददाता
बरेली। मामूली सी बात पर पॉलिटेक्निक के छात्र को पीटकर अंधा करने के दोषी दो सगे भाइयों को अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। सजा का आदेश अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम रवि कुमार दिवाकर किया। न्यायाधीश ने अपने फैसले में लिखा कि दोषियों ने‘अत्यंत पाश्विक और निर्दयतापूर्वक’हमला किया, जिससे पीड़ित का पूरा जीवन बर्बाद हो गया।
यह घटना थाना भोजीपुरा के गांव घुरसमसपुर 9 अप्रैल 2020 की शाम साढ़े पांच बजे हुई थी। यहां रहने वाले पॉलिटेक्निक के छात्र जसवंत मौर्य की भाभी उर्मिला अपने घर की छत पर कपड़े डालने गई थी। तभी उसे वहीं का मोरसिंह गालियां देने लगा। जसबंत ने गाली गलौच करने से मना किया। इस पर आरोपी सुरेंद्र, नरोत्तम और अशोक पहुंच गए। इन लोगों ने वादी को लोहे की रॉड, खटिया की पट्टी और डंडों से जमकर पीटा। इससे वह बुरी तरह घायल हो गया। अस्पता में भर्ती कराने पर वह करीब तीन महीने तक कोमा में रहा। होश आने के बाद वह चलने-फिरने में असमर्थ हो गया। हमले की वजह से उसकी दोनों आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गई।
जसबंत की ओर से इन चारों आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने शुरूआत में एनसीआर दर्ज की, जिसे बाद में जानलेवा हमले की धाराओं में मुकदमा तरमीम किया गया। विवेचना के बाद पुलिस ने आरोपी मोर सिंह और नरोत्तम दास के खिलाफ आरोप पत्र अदालत मे पेश किया। कोर्ट में मुकदमा चलने के दौरान
अभियोजन की ओर से सरकारी वकील संतोष श्रीवास्तव ने 10 गवाह पेश किए। इसके अलावा मेडिकल रिपोर्ट, सीटी स्कैन, ऑपरेशन नोट्स और पुलिस जांच के दस्तावेज भी साक्ष्य के रूप में कोर्ट में प्रस्तुत किए गए।
अदालत ने उपब्ध साक्ष्यों और दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद 21 मार्च को अपना फैसला सुनाया। अदालत ने अभियुक्त मोरसिंह और नरोत्तम दास को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। दोनों दोषियों पर तीन-तीन लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। जुर्माने की राशि वादी जसवंत को देने का आदेश अदालत ने दिया है
न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ने अपना फैसला सुनाते समय सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि दंड अपराध की प्रकृति और गंभीरता के अनुसार होना चाहिए, ताकि समाज में न्याय का भरोसा बना रहे। दोषियों ने निर्दयता की सभी हदें पार कर दीं। जसबंत मौर्य की उम्र उस वक्त मात्र 24 वर्ष थी, उसका पूरा जीवन पड़ा था, लेकिन दोषियों ने उसे जीवनभर के लिए अपंग बना दिया। जज ने भारतीय धर्मशास्त्रों का उल्लेख करते हुए कहा कि "‘शठे शाठय्म समाचरेत्’अर्थात् दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिए। यह विदुर नीति है और आचार्य चाणक्य भी इससे सहमत हैं।"