बिहार चुनाव से पहले विपक्षी महागठबंधन ने न केवल राजनीतिक तालमेल की ओर कदम बढ़ाया, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अहम मुद्दे पर केंद्र को कठघरे में खड़ा कर दिया। गुरुवार, 24 अप्रैल को हुई बैठक में जहां चुनावी समन्वय के लिए समितियाँ गठित की गईं, वहीं जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले को लेकर एक सुर में मौजूदा सरकार की विफलताओं पर सवाल उठाए गए। बैठक की शुरुआत दो मिनट के मौन से हुई, जिसमें आतंकवादी हमले में मारे गए नागरिकों को श्रद्धांजलि दी गई।
तेजस्वी का हमला: “जवाब आतंकियों को नहीं, सरकार को देना चाहिए”
महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि इस हमले से भारत की इंटेलिजेंस व्यवस्था की कमजोरी उजागर हुई है। साथ ही उन्होंने नीतीश सरकार पर भी हमला बोला कि बिहार के प्रवासियों की सुरक्षा को लेकर कोई ठोस पहल नहीं हुई। तेजस्वी ने कड़े लहजे में कहा कि "आतंकियों को जवाब मिलना चाहिए, लेकिन उससे पहले जवाबदेही मौजूदा केंद्र सरकार की है कि इतनी बड़ी चूक कैसे हुई?"
समन्वय समिति बनी, चेहरा तय नहीं
राजनीतिक रूप से इस बैठक की सबसे बड़ी बात रही — महागठबंधन के संचालन के लिए कोऑर्डिनेशन कमिटी का गठन। इस समिति के प्रमुख तेजस्वी यादव होंगे और सभी दलों से दो-दो सदस्य इसमें रहेंगे। यही समिति चुनावी रणनीति से लेकर उम्मीदवार तय करने तक की ज़िम्मेदारी उठाएगी। हालांकि अभी भी सीएम फेस और सीट बंटवारे पर अंतिम सहमति नहीं बनी है, लेकिन समिति के गठन से यह संकेत ज़रूर मिला है कि महागठबंधन संगठित रूप से आगे बढ़ना चाहता है।
एकता या अस्तित्व की लड़ाई?
बैठक में कांग्रेस और वाम दलों की उपस्थिति ने दिखाया कि विपक्षी खेमा एकजुट दिखना चाहता है। लेकिन, सवाल यह है — क्या यह वास्तविक एकजुटता है या सामरिक मजबूरी? कांग्रेस और RJD के बीच हालिया बयानबाजी इस गठबंधन के भीतर गहरे मतभेद की ओर इशारा करती है। महागठबंधन अब चुनावी मोड में है, लेकिन इस बार वह सिर्फ बिहार की राजनीति तक सीमित नहीं रहना चाहता। राष्ट्रीय मुद्दों पर भी वह एक मुखर विपक्ष के तौर पर उभरना चाहता है।