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Bihar Assembly Elections 2025 : 14 सीटों पर 'सीक्रेट वोटिंग' जारी : पांच दिनों तक होगा यह मतदान

बिहार चुनाव में आज से 'सीक्रेट वोटिंग' शुरू। पटना की 14 सीटों पर तैनात मतदानकर्मी 31 अक्टूबर तक पोस्टल बैलेट से डाल रहे हैं वोट। वज्रगृह में सुरक्षित रखे जाएंगे मतपत्र। क्या लोकतंत्र के पहरेदारों का यह निर्णायक वोट कई सीटों पर गेम-चेंजर बन सकता है?

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Ajit Kumar Pandey
Bihar में 14 सीटों पर 'सीक्रेट वोटिंग' जारी : पांच दिनों तक होगा यह मतदान | यंग भारत न्यूज

Bihar में 14 सीटों पर 'सीक्रेट वोटिंग' जारी : पांच दिनों तक होगा यह मतदान | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की असली अग्निपरीक्षा शुरू हो चुकी है, जहां पहले चरण के मतदान 6 नवंबर से पहले ही एक 'सीक्रेट वोटिंग' प्रक्रिया आज से शुरू हो गई है। पटना और अन्य जिलों में चुनाव ड्यूटी में लगे हजारों कर्मचारी आज 24 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक पोस्टल बैलेट के जरिए अपना मत डाल रहे हैं। 

यह सुविधा सुनिश्चित करती है कि लोकतंत्र के सिपाही यानी मतदानकर्मी अपने संवैधानिक अधिकार से वंचित न रहें। यह खास मतदान प्रक्रिया ही तय करेगी कि 'लोकतंत्र के पहरेदार' किसे चुनते हैं। 

बिहार विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है, लेकिन असली घमासान शुरू होने से पहले ही पटना की 14 विधानसभा सीटों पर 'सीक्रेट वोटिंग' का दौर शुरू हो गया है। इसे 'साइलेंट वोटिंग' भी कह सकते हैं, क्योंकि यह वोटिंग आम जनता के बीच नहीं, बल्कि लोकतंत्र के पहरेदारों यानी मतदानकर्मियों के बीच हो रही है। 

आज 24 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक चलने वाली इस प्रक्रिया में हजारों सरकारी कर्मचारी पोस्टल बैलेट के जरिए अपने मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। सवाल है कि चुनाव से पहले हो रही इस 'गुप्त वोटिंग' का क्या महत्व है और क्या यह किसी राजनीतिक दल की किस्मत बदल सकती है? लोकतंत्र के सिपाही क्यों डाल रहे सबसे पहले वोट? 

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चुनाव आयोग ने यह सुनिश्चित किया है कि जो कर्मचारी 6 नवंबर को प्रथम चरण के मतदान में ड्यूटी पर रहेंगे, वे मतदान से वंचित न हों। ये वे लोग हैं जो बूथों पर घंटों खड़े रहकर आम जनता के वोटिंग को सफल बनाते हैं, इसलिए उनका वोट डालना सबसे पहली प्राथमिकता है। जिला निर्वाचन पदाधिकारी के नेतृत्व में पटना में इस विशेष व्यवस्था को सुचारू रूप से लागू किया गया है। यह व्यवस्था न केवल एक अधिकार है, बल्कि चुनाव आयोग की उस प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है, जहां हर एक वोट कीमती है। 

पटना की इन 14 हॉट सीटों पर सबसे पहले वोटिंग 

पोस्टल बैलेट के माध्यम से मतदान की सुविधा पटना जिले की 14 महत्वपूर्ण विधानसभा सीटों पर तैनात मतदानकर्मियों को मिल रही है। ये सीटें अक्सर चुनावी चर्चा के केंद्र में रहती हैं और इनपर मतदानकर्मियों की संख्या भी अच्छी-खासी होती है। 

  1. मोकामा 
  2. बाढ़ 
  3. बख्तियारपुर 
  4. दीघा 
  5. बांकीपुर 
  6. कुम्हरार 
  7. पटना साहिब 
  8. फतुहा 
  9. दानापुर 
  10. मनेर 
  11. फुलवारी अजा 
  12. मसौढ़ी अजा 
  13. पालीगंज 
  14. बिक्रम 
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इन 14 सीटों पर शुरुआती वोटिंग का पैटर्न राजनीतिक दलों के लिए एक 'पहला सिग्नल' हो सकता है। यह दिखाता है कि सरकारी कर्मचारी, जो अक्सर शासन-प्रशासन के कामकाज को बहुत करीब से देखते हैं, उनका मूड क्या है। कैसे हो रही है यह 'साइलेंट वोटिंग'? 

पोस्टल बैलेट की यह प्रक्रिया बेहद गोपनीय और पारदर्शी तरीके से पूरी की जा रही है, ताकि कोई भी इसे प्रभावित न कर सके। इसे आसान भाषा में समझने के लिए, यह एक मिनी-चुनाव की तरह है, जिसमें सिर्फ मतदानकर्मी ही हिस्सा ले रहे हैं। 

पोस्टल बैलेट वोटिंग की टाइमलाइन 

शुरुआत 24 अक्टूबर शुक्रवार और समापन 31 अक्टूबर शनिवार: मतदानकर्मियों के द्वितीय प्रशिक्षण के दौरान ही 24, 25, 29, 30 और 31 अक्टूबर को निर्धारित सेंटरों पर वे वोट डाल सकेंगे। अन्य जिलों के कर्मचारियों के लिए स्पेशल सुविधा सारण, सिवान, वैशाली, नालंदा आदि जिलों के जो कर्मचारी पटना में ड्यूटी के लिए प्रतिनियुक्त हैं, उनके लिए श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल, पटना में 29 और 30 अक्टूबर को अतिरिक्त फैसिलिटेशन सेंटर बनाया गया है। 

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गोपनीयता और प्रमाणन के तीन चरण: इस मतदान को अचूक बनाने के लिए निर्वाचन पदाधिकारियों की एक टीम लगाई गई है, जो तीन चरणों में मतदान को सुनिश्चित कर रही है। 

प्रथम मतदान पदाधिकारी: इनकी जिम्मेदारी मतदाता की पहचान ईपिक कार्ड या अन्य मान्य पहचानपत्र की जांच करना है। 

द्वितीय मतदान पदाधिकारी: ये मतदानकर्मी की उंगली पर अमिट स्याही लगाकर यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई दो बार वोट न डाल पाए।

तृतीय मतदान पदाधिकारी: ये ही पात्र कर्मचारी को गोपनीय तरीके से पोस्टल बैलेट जारी करेंगे। 

क्या आपको पता है कि आपका वोट भी 'सीक्रेट' है? लेकिन पोस्टल बैलेट के सीक्रेट को बनाए रखने के लिए स्टील के ड्रॉप बॉक्स में क्या खास होता है। 

वज्रगृह तक कैसे पहुंचता है मतदानकर्मी का वोट? 

पोस्टल बैलेट का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसकी सुरक्षा व्यवस्था भी आम मतदान की तरह ही कड़ी होती है। हर फैसिलिटेशन सेंटर पर उप निर्वाचन पदाधिकारी की सीधी निगरानी में पूरी प्रक्रिया संपन्न होती है। 

स्टील ड्रॉप बॉक्स: मतदान से पहले, दो बड़े स्टील ड्रॉप बॉक्स राजनीतिक दलों के अभिकर्ताओं को दिखाए जाते हैं। खाली होने की पुष्टि के बाद उन्हें सील किया जाता है। यह पारदर्शिता बनाए रखने का एक अनिवार्य कदम है। 

गोपनीयता का लिफाफा: मतदाता अपना मत अंकित करने के बाद उसे तीन निर्धारित गोपनीय लिफाफों - प्रारूप 13ख, 13क और 13ग- में डालकर ड्रॉप बॉक्स में डालते हैं। 

यह तीन-स्तरीय लिफाफा प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि मतपत्र की पहचान पूरी तरह से गुप्त रहे। 

सुरक्षित भंडारण: मतदान समाप्त होते ही सभी सील्ड बॉक्स को तुरंत पुलिस अभिरक्षा में लिया जाता है और सीधे समाहरणालय स्थित वज्रगृह Strong Room में सुरक्षित रखा जाता है। ये वोट मतगणना के दिन ही बाहर निकाले जाएंगे। 

ये वोट क्यों हैं खास? क्या बदलता है चुनावी गणित? 

पोस्टल बैलेट से डाले गए वोट अक्सर 'निर्णायक वोट' माने जाते हैं, खासकर उन सीटों पर जहां जीत का अंतर बहुत कम होता है। सरकारी कर्मचारियों का रुख ये वोट एक पढ़े-लिखे, जागरूक और सरकारी तंत्र को करीब से जानने वाले वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका वोट पैटर्न अक्सर राज्य के शासन-प्रशासन के प्रति उनके संतुष्टि या असंतोष को दर्शाता है। 

स्विंग फैक्टर भले ही यह संख्या लाखों में न हो, लेकिन सैकड़ों या हजारों पोस्टल वोट किसी भी उम्मीदवार की किस्मत बदल सकते हैं। कई बार 100-200 वोटों के अंतर से हार-जीत तय होती है, ऐसे में ये वोट गेम-चेंजर साबित होते हैं। 

चुनाव आयोग की प्रतिबद्धता: हर बूथ पर पानी, बिजली जेनरेटर, कलम और लिफाफे की व्यवस्था करना, आयोग की उस प्रतिबद्धता को दिखाता है कि हर 'लोकतंत्र के सिपाही' को भी वोट डालने में कोई कठिनाई न हो। 

बिहार का चुनाव केवल 6 नवंबर को होने वाले मतदान पर निर्भर नहीं है इसकी नींव आज, पोस्टल बैलेट की प्रक्रिया से पड़ चुकी है। यह साइलेंट वोटिंग, जो सीधे वज्रगृह में सुरक्षित हो रही है, कई सीटों पर बड़ा उलटफेर करने की क्षमता रखती है। 

राजनीतिक दलों को इस 'सरकारी कर्मचारी वोट बैंक' के मूड को समझना होगा, क्योंकि बिहार की असली चुनावी कहानी इन्हीं 'सीक्रेट वोटों' से शुरू हो चुकी है। 

अब देखना यह है कि 10 नवंबर को मतगणना के दिन ये सील्ड बैलेट बॉक्स किसके लिए भाग्य का पिटारा साबित होते हैं। 

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