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Bihar Assembly Elections 2025 : 'MY' चक्रव्यूह से तेजस्वी को बड़ा झटका! क्या है ये सियासी ड्रामा? | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।बिहार विधानसभा चुनाव में भागलपुर विधानसभा सीट पर नामांकन के आखिरी दिन एक 'राजनीतिक किडनैपिंग' का सनसनीखेज ड्रामा हुआ। राजद के टिकट पर जा रहे डिप्टी मेयर सलाहउद्दीन अहसन को ऐन वक्त पर उनकी ही रैली से झारखंड के एक मंत्री के नेतृत्व में रोक लिया गया।
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा खतरा यानी 'मुस्लिम वोटों का विभाजन' इस नाटकीय घटनाक्रम से टल गया। यह चाल कांग्रेस की थी या तेजस्वी के 'MY' समीकरण को बचाने की मजबूरी?
भागलपुर RJD पर भारी कांग्रेस 'MY' चक्रव्यूह से तेजस्वी को झटका, डरा देने वाला ड्रामा 'MY' समीकरण बचाने की जंग भागलपुर में कांग्रेस ने कैसे रचा महागठबंधन का सबसे खतरनाक चक्रव्यूह? यंग भारत न्यूज के एक्प्लेनर में पढ़ें सियासी ड्रामें की पूरी कहानी।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में 'MY' मुस्लिम-यादव समीकरण को बचाने के लिए भागलपुर सीट पर कांग्रेस ने एक ऐसी खतरनाक चाल चली है, जिसने गठबंधन की राजनीति की हकीकत को सबके सामने ला दिया है।
सोमवार को नामांकन के आखिरी दिन भागलपुर सीट पर एक हाई-वोल्टेज राजनीतिक ड्रामा हुआ था। यह ड्रामा किसी 'थ्रिलर' फिल्म से कम नहीं था, जहां राजद के टिकट पर नामांकन करने जा रहे कद्दावर नेता और नगर निगम के डिप्टी मेयर सलाहउद्दीन अहसन को ऐन वक्त पर 'गायब' कर दिया गया।
यह घटनाक्रम न सिर्फ भागलपुर, बल्कि पूरे बिहार की राजनीतिक गलियारों में इस बात का संकेत दे रहा है कि महागठबंधन के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है। अंदरखाने चल रही इस भयंकर खींचतान का अंत उस वक्त हुआ, जब राजद के शीर्ष नेतृत्व ने 'डैमेज कंट्रोल' के लिए झारखंड के मंत्री संजय यादव को विशेष दूत बनाकर भेजा।
सवाल यह नहीं है कि अहसन ने नामांकन क्यों नहीं किया, सवाल यह है कि क्या तेजस्वी यादव की पार्टी इस खेल में कांग्रेस पर भारी पड़ने की कोशिश कर रही थी, और क्या 'छोटे भाई' कांग्रेस ने 'बड़े भाई' राजद को उसी के घर में मात दे दी?
नामांकन के दिन का वो 'सनसनीखेज' 45 मिनट का 'राजनीतिक अपहरण'
पूरा मामला सोमवार को दोपहर 1:30 बजे के आसपास शुरू हुआ। भागलपुर विधानसभा सीट से नामांकन करने के लिए सलाहउद्दीन अहसन पूरी तैयारी के साथ निकले थे। उनके समर्थन में मुस्लिम कॉलेज परिसर में राजद और महागठबंधन के समर्थकों का भारी लाव-लश्कर जमा था। माहौल पूरी तरह से चुनावी था, समर्थकों में उत्साह चरम पर था। जुलूस जैसे ही वेरायटी चौक से आगे बढ़कर घंटाघर चौक के पास पहुंचा, अचानक एक अप्रत्याशित मोड़ आया।
सलाहउद्दीन की गाड़ी का रुख उनके समर्थकों की अपेक्षा के विपरीत कलेक्ट्रेट की ओर जाने की बजाय नगर निगम कार्यालय की ओर मोड़ दिया गया। समर्थकों के बीच एकदम से अफरा-तफरी मच गई। मीडिया के कैमरे और माइक उनके चेहरे पर थे, लेकिन वह कुछ भी कहने से बचते रहे। उन्हें बताया गया कि नगर निगम से 'कुछ जरूरी कागजात' छूट गए हैं, जो लेने जाना जरूरी है। लेकिन राजनीति के अनुभवी लोग जानते थे कि नामांकन के ऐसे महत्वपूर्ण कागजात आखिरी वक्त पर निगम में कैसे छूट सकते हैं, यह सिर्फ एक बहाना था।
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वो 45 मिनट, जिसने बदल दिया पूरा गेम
दोपहर 1:35 बजे सलाहउद्दीन की गाड़ी निगम कार्यालय की ओर मुड़ी। दोपहर 1:40 बजे निगम पहुंचते ही राजद और महागठबंधन के करीब 100 कार्यकर्ता वहां पहले से 'इंतजार' कर रहे थे। दोपहर 2:00 बजे झारखंड के मंत्री संजय यादव तीन गाड़ियों के काफिले के साथ मौके पर पहुंचे। यह वो क्षण था, जिसने पूरे खेल को पलट दिया। दोपहर 2:30 बजे 'अंदरखाने' की बैठक खत्म, सलाहउद्दीन को मंत्री के काफिले में बैठाया गया। यह कोई सामान्य बैठक नहीं थी। इसे 'मान-मनौव्वल' नहीं, बल्कि 'हाई-लेवल डिप्लोमेसी' कहना ज्यादा सही होगा, जो राजद के हाईकमान की तरफ से खेला गया था।
आखिर क्यों 'गायब' हुए डिप्टी मेयर? कांग्रेस का 'मास्टरस्ट्रोक' या MY का डर?
इस पूरे घटनाक्रम के केंद्र में एक ही चीज थी - मुस्लिम वोट बैंक का विभाजन। भागलपुर सीट पर महागठबंधन की ओर से कांग्रेस के अजीत शर्मा मौजूदा विधायक हैं। सलाहउद्दीन अहसन, एक प्रभावशाली मुस्लिम चेहरा और राजद के पदाधिकारी थे। वह पहले नाथनगर सीट से टिकट चाहते थे, लेकिन जब उन्हें वहां मौका नहीं मिला, तो उन्होंने भागलपुर से निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया था। अगर सलाहउद्दीन निर्दलीय या किसी अन्य पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते, तो वह सीधे-सीधे कांग्रेस के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाते। यह 'वोटों की कटौती' सीधे तौर पर एनडीए उम्मीदवार को फायदा पहुंचाती, जो महागठबंधन के लिए सबसे बड़ा खतरा था।
कांग्रेस की अंदरूनी रणनीति
कांग्रेस ने शायद यह भांप लिया था कि अगर अहसन ने नामांकन कर दिया, तो उनके विधायक अजीत शर्मा की जीत मुश्किल हो जाएगी। इसलिए, आखिरी चार दिनों से उन्हें रोकने की कोशिश की जा रही थी। जब स्थानीय स्तर पर बात नहीं बनी, तो राजद के शीर्ष नेतृत्व को दखल देना पड़ा।
MY समीकरण बचाना: राजद के लिए यह दोहरी मजबूरी थी MY समीकरण बचाना अगर कांग्रेस हारी, तो इसका ठीकरा राजद के सिर फूटेगा, क्योंकि 'MY' समीकरण का भार उसी पर है।
गठबंधन धर्म निभाना: राजद को यह दिखाना था कि वह गठबंधन धर्म का पालन कर रहा है, भले ही इसके लिए उसे अपने ही कद्दावर नेता को 'कुर्बान' करना पड़ा।
यही वजह है कि तेजस्वी यादव के करीबी माने जाने वाले झारखंड के मंत्री संजय यादव को विशेष तौर पर भागलपुर भेजा गया। उनका मिशन साफ था किसी भी कीमत पर अहसन को नामांकन से रोकना।
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भविष्य की गारंटी पर हुई 'डील'
सूत्रों के मुताबिक, नगर निगम कार्यालय में जो बैठक हुई, वह महज समझाने-बुझाने की बैठक नहीं थी, बल्कि एक 'राजनीतिक डील' थी।
डील के मुख्य बिंदु नामांकन रोको: सलाहउद्दीन को तुरंत नामांकन करने से रोका गया।
कांग्रेस को समर्थन: उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी अजीत शर्मा के समर्थन में सार्वजनिक घोषणा करने को कहा गया।
भविष्य की जिम्मेदारी: उन्हें यह भरोसा दिया गया कि भविष्य में गठबंधन के भीतर उन्हें 'महत्वपूर्ण जिम्मेदारी' दी जाएगी।
करीब आधे घंटे के मान-मनौव्वल के बाद, सलाहउद्दीन अहसन ने समर्पण कर दिया। मंत्री संजय यादव के काफिले में बैठकर वह मायागंज स्थित एक आवास पर पहुंचे, जहां उन्होंने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर अजीत शर्मा को समर्थन देने का ऐलान किया। जब नामांकन का समय समाप्त हो गया, तब शाम पांच बजे डिप्टी मेयर को उनके आवास पर पहुंचाया गया।
हालांकि सलाहउद्दीन अहसन का फोन अभी भी स्विच ऑफ है, उनके पीए उमर ताज ने किडनैपिंग की बात से इनकार किया है और कहा है कि यह 'मान-मनोव्वल' का नतीजा था। कांग्रेस प्रत्याशी अजीत शर्मा ने इस घटनाक्रम पर राहत की सांस ली है। उन्होंने इसे 'ऊपर से आदेश' और 'मिलकर लड़ने की रणनीति' बताया। अजीत शर्मा ने कहा कि सलाहउद्दीन राजद के पदाधिकारी हैं और अब सब मिलकर चुनाव लड़ेंगे।
भागलपुर का संदेश: बिहार में MY समीकरण पर कांग्रेस की छाप
भागलपुर की यह कहानी सिर्फ एक सीट की नहीं है, बल्कि यह बता रही है कि बिहार में महागठबंधन की राजनीति कितनी जटिल हो गई है। राजद अपने 'MY' आधार को मजबूत रखने के लिए भले ही कांग्रेस को झुकाना चाहता हो, लेकिन भागलपुर में कांग्रेस ने साबित कर दिया कि वह 'मुस्लिम वोट बैंक' पर अपनी पकड़ किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ने वाली है।
यह घटना बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ती है, जहां अब गठबंधन के भीतर 'वोट कटवा' नेताओं को रोकने के लिए हाई-कमान को सीधे तौर पर 'ऑपरेशन' चलाना पड़ रहा है। भागलपुर का यह चक्रव्यूह न केवल मुस्लिम वोटों के विभाजन को रोकने में सफल रहा, बल्कि इसने बिहार की राजनीति में एक नया 'टर्निंग पॉइंट' भी ला दिया है। यह नाटकीय घटनाक्रम साफ करता है कि 2025 के चुनाव में महागठबंधन के भीतर भी 'सीटें हथियाने' और 'वोट बैंक बचाने' का महासंग्राम चरम पर होगा।
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