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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनज़र देश की राजधानी दिल्ली एक बार फिर सियासी रणनीतियों का केंद्र बन गई है। कांग्रेस पार्टी ने आगामी चुनावों में भाजपा-एनडीए गठबंधन को कड़ी टक्कर देने की तैयारी में अपने शीर्ष नेतृत्व और बिहार इकाई के वरिष्ठ नेताओं के साथ अहम बैठक बुलाई है। इस बैठक में सीट बंटवारे, साझा चुनावी एजेंडा और महागठबंधन की समन्वय रणनीति जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गंभीर विचार-विमर्श किया जा रहा है।
दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में हो रही इस बैठक में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने भाग लिया, जिससे यह संकेत मिलता है कि कांग्रेस अब बिहार को लेकर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। बैठक में बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम, प्रदेश प्रभारी कृष्ण अल्लावरु, विधायक दल के नेता शकील अहमद खान और अन्य वरिष्ठ नेता शामिल हैं, जो राज्य में पार्टी के मौजूदा हालात और आगे की रणनीति पर फीडबैक दे रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि यह बैठक पटना में महागठबंधन की हुई पिछली मीटिंग के ठीक दो दिन बाद बुलाई गई है, जिसमें सभी सहयोगी दलों के बीच सीट बंटवारे की प्राथमिक चर्चा हुई थी। अब कांग्रेस इस मुद्दे पर अपनी अंदरूनी राय को मजबूत कर दिल्ली में पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व को प्रस्तुत कर रही है, ताकि महागठबंधन में उसका पक्ष और अधिक प्रभावी तरीके से सामने रखा जा सके।
बैठक का सबसे अहम एजेंडा है—एक ऐसी साझा रणनीति तैयार करना, जिससे विपक्षी गठबंधन भाजपा और एनडीए के प्रभाव को बिहार में चुनौती दे सके। कांग्रेस यह सुनिश्चित करना चाहती है कि सभी सहयोगी दल एकता और सामूहिक नेतृत्व की भावना से काम करें ताकि मतदाताओं के बीच स्पष्ट और सकारात्मक संदेश पहुंचे।
बैठक में यह भी विचार किया जा रहा है कि कांग्रेस किन सीटों पर चुनाव लड़ेगी और किन सीटों पर वह अन्य घटक दलों को समर्थन देगी। इस प्रक्रिया के तहत कांग्रेस यह भी देख रही है कि उसके पास किन-किन क्षेत्रों में मजबूत जनाधार और संभावित जीत है। अंतिम सहमति के बाद कांग्रेस महागठबंधन के अन्य दलों के साथ सीटों के अंतिम बंटवारे के लिए निर्णायक दौर की बातचीत शुरू करेगी।
यह राजनीतिक कवायद इस ओर भी इशारा करती है कि कांग्रेस इस बार केवल भागीदारी तक सीमित नहीं रहना चाहती, बल्कि वह बिहार में निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में खुद को देख रही है। दिल्ली में हो रही यह रणनीतिक बैठक आगामी चुनावी संघर्ष का रोडमैप तय कर सकती है, जिसका असर सीधे तौर पर बिहार की राजनीति पर पड़ेगा।