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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण के मतदान के बाद बारी है दूसरे चरण के मतदान की, जो 11 नवंबर को होगा। इसके बाद परिणाम का इंतजार शुरू होगा, जो 14 नवंबर को आएगा। बिहार के इतिहास के इस सबसे कम दिनों में निपटने वाले इस चुनाव में महत्व केवल सीटों और बहुमत का ही नहीं, बल्कि दो स्पष्ट और विपरीत राजनीतिक नैरेटिव के बीच एक ऐतिहासिक टकराव का भी रहा। एक ओर NDA का 'विकास और सुशासन' का मॉडल था, तो दूसरी ओर महागठबंधन का 'न्याय और रोजगार' का वादा।
एनडीए की पूरी रणनीति एक भावनात्मक डर के इर्द-गिर्द घूमती रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह जैसे नेताओं ने लगातार 1990 के दशक की उस सत्ता को याद दिलाया जब 'कट्टा और तमंचा' का बोलबाला था। उनका संदेश स्पष्ट और सीधा था, महागठबंधन की जीत का मतलब है जंगलराज की वापसी। लालू प्रसाद यादव का दानापुर में हुआ रोड-शो, जो कई दशकों बाद देखने को मिला, एनडीए के लिए इसी नैरेटिव को और हवा देने का एक सुनहरा मौका साबित हुआ। एनडीए ने अपने प्रचार में 'मोदी-नीतीश की जोड़ी' को स्थिरता और विकास का प्रतीक बताया और महिला मतदाताओं को यह एहसास दिलाने की कोशिश की कि उनकी सुरक्षा सिर्फ एनडीए की सरकार में ही संभव है।
वहीं दूसरी ओर, महागठबंधन, विशेष रूप से तेजस्वी यादव ने इस चुनाव को वादों और आर्थिक न्याय के मोर्चे पर लड़ा। उन्होंने नौकरियों के संकट और पलायन की पीड़ा को केंद्र में रखा। 'तेजस्वी प्रण' के तहत हर परिवार को एक सरकारी नौकरी का वादा, भले ही आर्थिक विश्लेषकों के लिए एक बड़ा सवाल बना रहा, लेकिन युवा मतदाताओं के बीच इसकी गूंज साफ सुनाई दी। चुनाव के बीचोबीच महिलाओं के लिए 30,000 रुपये की नकद योजना की घोषणा ने उनकी इसी रणनीति को मजबूत किया। महागठबंधन ने एनडीए पर जनविरोधी नीतियों और वादे ना पूरे करने का आरोप लगाते हुए खुद को 'बदलाव की नई लहर' के रूप में पेश किया।
इस चुनाव की एक बड़ी उपलब्धि यह रही कि पारंपरिक जातीय समीकरणों को तोड़ने का सार्थक प्रयास देखने को मिला। दोनों ही गठबंधनों ने मतदाताओं को जाति के बजाय वर्ग के आधार पर लामबंद करने की कोशिश की। एनडीए ने वोटर्स को लाभ टारगेट किया, तो महागठबंधन ने 'आकांक्षी' और 'वंचित' वर्ग को अपना आधार बनाया। युवा और महिला वोटर इस बार दोनों ही दलों की रणनीति के केंद्र में थे। अब इंतजार है इस बात का कि मतदाताओं ने अपना मत किस पक्ष में डाला। क्या बिहार ने 'सुशासन' की राह पकड़ी है या फिर 'न्याय' के नए रास्ते पर चलने का फैसला किया है? यह परिणाम ही बताएगा।
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