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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले महागठबंधन (Mahagathbandhan) की एकजुटता पर बड़ा सवाल उठ गया है। सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के बीच तनातनी अब खुलकर सामने आ चुकी है। जो विवाद लालगंज से शुरू हुआ था, वह अब वारसलीगंज, नरकटियागंज और दरभंगा की जाले सीट तक फैल गया है। यह हालात साफ इशारा कर रहे हैं कि बिहार में महागठबंधन के भीतर मतभेद केवल सीटों तक सीमित नहीं, बल्कि नेतृत्व और संगठनात्मक भरोसे तक पहुंच गए हैं।
लालगंज सीट इस विवाद का केंद्र बन गई है। कांग्रेस ने यहां से आदित्य कुमार राजा को उम्मीदवार घोषित किया, लेकिन उसी समय आरजेडी ने अचानक मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला को बुलाकर पार्टी का सिंबल दे दिया। शिवानी शुक्ला सिंबल लेकर सीधे वैशाली रवाना हो गईं, जहां उन्होंने नामांकन दाखिल करने की तैयारी शुरू कर दी। अब यहां स्थिति यह बन गई है कि महागठबंधन के दो दल एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं। यह तय है कि या तो किसी एक उम्मीदवार को नामांकन वापस लेना होगा या फिर जनता को “फ्रेंडली फाइट” का नजारा देखने को मिलेगा।
वैशाली सीट पर भी टकराव की स्थिति है। यह सीट 2020 में कांग्रेस के हिस्से में थी, और पार्टी ने अब भी इस सीट पर दावा ठोक रखा है। कांग्रेस नेता संजीव सिंह ने यहां संगठन को मजबूत किया है, लेकिन इस बार आरजेडी ने अजय कुशवाहा को उतारकर नया समीकरण बना दिया है। स्थानीय कार्यकर्ताओं में असमंजस की स्थिति है और दोनों दलों की स्थानीय इकाइयां एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लगी हैं।
दरभंगा की जाले सीट भी इस अंदरूनी कलह से अछूती नहीं रही। कांग्रेस यहां नौशाद को टिकट देने की तैयारी में है, जबकि आरजेडी की ओर से ऋषि मिश्रा का नाम आगे बढ़ाया जा रहा है। यह सीट पिछली बार कांग्रेस के पास थी, लेकिन इस बार गठबंधन के बीच समन्वय की कमी साफ नजर आ रही है।
नरकटियागंज और वारसलीगंज जैसी सीटों पर भी यही तस्वीर उभर रही है। नरकटियागंज से कांग्रेस ने 2020 में विनय वर्मा को मैदान में उतारा था और इस बार भी वही पार्टी की पहली पसंद हैं, जबकि आरजेडी यहां अपना उम्मीदवार उतारना चाहती है। वारसलीगंज (नवादा) में भी कांग्रेस अपने पुराने उम्मीदवार सतीश सिंह पर दांव लगाना चाहती है, लेकिन आरजेडी ने अशोक महतो की पत्नी को टिकट देने की तैयारी कर ली है। कांग्रेस इसे अपनी पारंपरिक सीट बताते हुए पीछे हटने से इंकार कर रही है।