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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मुस्लिम बहुल इलाकों की राजनीति ने अप्रत्याशित मोड़ ले लिया है। इन इलाकों की 11 सीटों पर मुकाबला इस बार महागठबंधन बनाम NDA नहीं, बल्कि “मुसलमान बनाम मुसलमान” हो गया है। जन सुराज के प्रशांत किशोर और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने महागठबंधन की पारंपरिक वोटबैंक में सेंध लगाकर चुनावी समीकरण बदल दिए हैं।
राजद और कांग्रेस के उम्मीदवारों के सामने जन सुराज और AIMIM ने मुस्लिम प्रत्याशियों को ही मैदान में उतारा है। इससे एक ओर मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण टूटता नजर आ रहा है, वहीं दूसरी ओर NDA इन सीटों पर अप्रत्यक्ष रूप से लाभ की उम्मीद कर रही है।
2020 में इन 11 सीटों पर महागठबंधन ने 6 सीटें जीती थीं, जबकि NDA को एक भी सीट नहीं मिली थी। AIMIM ने 5 सीटें अपने नाम की थीं। लेकिन इस बार समीकरण पूरी तरह बदल चुके हैं। AIMIM ने इन सभी इलाकों में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं और जन सुराज ने भी 10 सीटों पर मुस्लिम चेहरों को टिकट दिया है। इससे राजद और कांग्रेस के लिए 2020 जैसी स्थिति दोहराना मुश्किल होता जा रहा है।
इन सीटों में किशनगंज, ठाकुरगंज, कोचाधामन, बहादुरगंज, अमौर, बायसी, कदवा, बलरामपुर, जोकीहाट, कसबा और अररिया जैसी सीटें शामिल हैं। इन इलाकों में मुस्लिम आबादी 50% से अधिक है और मतदान का झुकाव हमेशा समुदाय आधारित रहा है। यही वजह है कि इस बार मुकाबला चार मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच भी देखने को मिल रहा है।
माना जा है कि AIMIM इस बार महागठबंधन को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है, जबकि जन सुराज की पैठ सीमित रह सकती है। प्रशांत किशोर का सवर्ण समाज से जुड़ा चेहरा मुस्लिम मतदाताओं में पूरी तरह भरोसा नहीं जगा पा रहा, लेकिन वे महागठबंधन की संगठनात्मक कमजोरी को जरूर उजागर कर रहे हैं।
दूसरी ओर NDA इस पूरे समीकरण पर बारीकी से नजर रख रही है। 2020 में मुस्लिम बहुल इन 11 सीटों पर NDA को हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन इस बार बहुकोणीय मुकाबले से उसे अप्रत्यक्ष लाभ मिल सकता है।
महागठबंधन ने इस बार 31 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जिनमें से 19 राजद के और 10 कांग्रेस के हैं। भाकपा माले ने भी 2 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। वहीं, NDA ने सिर्फ 5 मुस्लिम उम्मीदवार दिए हैं और भाजपा ने किसी को टिकट नहीं दिया। AIMIM ने 26 मुस्लिम चेहरों को मैदान में उतारकर स्पष्ट संकेत दिया है कि वह मुस्लिम राजनीति में अकेले अपने दम पर दावा पेश कर रही है।
2020 में मुस्लिम बहुल जिलों के नतीजों से AIMIM की ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है। किशनगंज जिले की सभी चार सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे। अररिया में 2 सीटें मुस्लिम प्रत्याशियों के नाम गईं। कटिहार, पूर्णिया और चंपारण जैसे जिलों में भी मुसलमानों ने निर्णायक भूमिका निभाई थी।
अब 2025 का चुनाव यह तय करेगा कि बिहार की मुस्लिम राजनीति में ओवैसी अपनी जगह बनाए रख पाएंगे या महागठबंधन के पारंपरिक मुस्लिम वोटबैंक की वापसी होगी। फिलहाल जो संकेत मिल रहे हैं, वे यही बताते हैं कि मुस्लिम वोटों का बिखराव इस बार तेजस्वी यादव और महागठबंधन के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है।
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