बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर NDA ने एक नई रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। इस बार सीटों का बंटवारा पुराने पैटर्न पर नहीं बल्कि वास्तविक जीत की संभावना, ग्राउंड रिपोर्ट और पिछले दो चुनावों के नतीजों के आधार पर किया जाएगा। खास बात यह है कि दो बार से हारी गई सीटों की अदला-बदली की जाएगी, यानी कमजोर सीटें एक घटक दल से लेकर किसी दूसरे मजबूत दल को दी जा सकती हैं।
क्यों जरूरी पड़ी सीटों की अदला-बदली?
एनडीए सूत्रों के मुताबिक, 2020 और 2015 के विधानसभा चुनावों में कुछ सीटें ऐसी थीं जहां BJP, JDU या अन्य दल लगातार हारते रहे हैं। अब इन सीटों को उसी दल के पास रखना व्यर्थ माना जा रहा है। ऐसे में यदि लोजपा (रामविलास), हम या आरएलएम जैसे सहयोगी दलों की उन सीटों पर पकड़ अच्छी है, तो उन्हें मौका दिया जाएगा। मकसद एक ही है — जीत की संभावना को प्राथमिकता देना।
जातीय समीकरण भी रहेंगे बरकरार
बिहार की राजनीति जातीय संतुलन पर बहुत निर्भर करती है। एनडीए इस बार ऐसी कोई गलती नहीं करना चाहता, जिससे जातिगत समीकरण प्रभावित हों। हर सीट पर उम्मीदवार का चयन न केवल उसकी लोकप्रियता बल्कि उसके समुदाय विशेष में प्रभाव को देखकर किया जाएगा। किसी जाति के वर्चस्व वाले क्षेत्र में कमजोर जातीय समीकरण वाले उम्मीदवार को टिकट नहीं मिलेगा।
क्या कहती है 2020 की तस्वीर?
2020 में एनडीए ने 125 सीटों पर जीत हासिल की थी।
- बीजेपी: 71 सीट
- जेडीयू: 43 सीट
- हम: 4 सीट
- वीआईपी: 4 सीट
चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) उस समय एनडीए में नहीं थी और अकेले चुनाव लड़ते हुए 137 सीटों पर उम्मीदवार उतारे लेकिन सिर्फ 1 सीट जीत सके। इस बार वह भी गठबंधन में है, जिससे समन्वय और मजबूत दिख रहा है।
गठबंधन की एकजुटता पर ज़ोर
JDU और BJP दोनों दलों के नेताओं ने यह साफ किया है कि इस बार एनडीए पूरे राज्य में एकजुट है। जहां पिछली बार चिराग पासवान ने जेडीयू के खिलाफ मोर्चा खोला था, वहीं इस बार सभी दल संयुक्त रूप से एक रणनीति पर काम कर रहे हैं। संगठनात्मक स्तर से लेकर बूथ स्तर तक समन्वय बनाने का प्रयास किया जा रहा है।