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बिहार विधानसभा चुनाव का यह दूसरा और सबसे निर्णायक दौर राज्य की राजनीतिक तस्वीर को फिर से गढ़ने की क्षमता रखता है। गुरुवार को 20 जिलों की 122 सीटों पर होने जा रहे मतदान में तीन करोड़ सत्तर लाख से अधिक मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे, लेकिन इस पूरे चुनावी समीकरण पर छोटे और क्षेत्रीय दलों का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिल रहा है।
एनडीए की रणनीति में केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो रही है। इस चरण में एलजेपी कुल 28 में से 15 सीटों पर अपना दांव लगा रही है। लोकसभा चुनावों में शत-प्रतिशत सफलता दर के बाद चिराग पासवान की मांग को एनडीए ने नजरअंदाज नहीं किया और उन्हें 29 सीटों का आवंटन दिया, जिनमें से एक सीट पर नामांकन रद्द हो गया। इसके अलावा, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली हम (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) के सभी छह प्रत्याशी भी इसी दौर में अपनी किस्मत आजमाएंगे। यह ध्यान देने योग्य बात है कि पासवान और मांझी दोनों ही दलित समुदाय के प्रमुख चेहरे माने जाते हैं, जो बिहार की राजनीति में एक बड़ा वोट बैंक हैं।
वहीं, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी भी इस चरण में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। कुशवाहा की पार्टी कुल छह सीटों में से चार पर चुनाव लड़ रही है, जिसमें उनकी पत्नी स्नेहलता कुशवाहा का चुनावी भाग्य भी शामिल है। इन छोटे दलों का समर्थन ही एनडीए के लिए जीत का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
महागठबंधन की ओर से भी छोटे दलों पर एक बड़ी शर्त लगाई गई है। मगध क्षेत्र में महागठबंधन की सफलता काफी हद तक इन्हीं दलों के प्रदर्शन पर निर्भर करेगी। पिछले विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले गठबंधन ने इस क्षेत्र की 26 में से 20 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस चरण में कांग्रेस कुल 61 में से 37 सीटों पर मैदान में है। लेकिन सबसे दिलचस्प दांव मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) पर लगाया गया है। महागठबंधन ने लगभग 2.6 प्रतिशत निषाद वोटों को ध्यान में रखते हुए सहनी की पार्टी को 12 में से सात सीटों पर चुनाव लड़ने का अवसर दिया है।
तिरहुत क्षेत्र में एनडीए की मजबूत पकड़ मानी जाती है, जहां पिछले चुनाव में उन्होंने 30 में से 23 सीटें जीती थीं। इस चरण में मधुबनी जिले की 10 में से आठ सीटों पर मतदान होना है। वहीं, सीमांचल क्षेत्र, जहां मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी आबादी है, वहां असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) भी चुनावी मैदान में उतरी है। पिछले चुनाव में AIMIM ने इस क्षेत्र की 24 में से पांच सीटों पर जीत हासिल करके सभी को चौंका दिया था।
इस बार के चुनाव में राजनीतिक स्ट्रैटेजिस्ट प्रशांत किशोर ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके प्रयासों ने कई सीटों पर मुकाबले को द्विकोणीय से त्रिकोणीय बना दिया है, जिससे परिणामों पर अतिरिक्त असर पड़ने की संभावना है। पहले चरण में जनता दल (यूनाइटेड) 57 सीटों पर और भारतीय जनता पार्टी 48 सीटों पर मैदान में थी, जबकि इस दूसरे चरण में जेडीयू 44 और भाजपा 53 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। महागठबंधन में आरजेडी 71 सीटों पर और सीपीआई (एमएल) छह सीटों पर अपना दावा पेश कर रही है।
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