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राहुल के 'मछुआरा अवतार' पर घमासान! क्या बदलेंगे बिहार का चुनावी समीकरण?

राहुल गांधी के वायरल 'मछुआरा अवतार' पर बीएसपी का तीखा तंज बक्सर से बीएसपी नेता अनिल कुमार बोले, 'राहुल सिर्फ वोट के लिए आंसू पोंछते हैं, जनता वोट नहीं देगी।' जानें क्यों BSP ने खुद को विकल्प बताया।

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Ajit Kumar Pandey
राहुल के 'मछुआरा अवतार' पर घमासान! क्या बदलेंगे बिहार का चुनावी समीकरण? | यंग भारत न्यूज

राहुल के 'मछुआरा अवतार' पर घमासान! क्या बदलेंगे बिहार का चुनावी समीकरण? | यंग भारत न्यूज Photograph: (X.com)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।बिहार में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का मछली पकड़ने वाला वायरल वीडियो सियासी उबाल ला रहा है। जहां राहुल इस 'अवतार' से मल्लाह और पिछड़े समाज को साधने की कोशिश में हैं, वहीं बहुजन समाज पार्टी BSP ने इसे महज 'वोट के लिए आंसू पोंछना' करार दिया है। बीएसपी नेता अनिल कुमार ने बक्सर से तंज कसते हुए कहा है कि राहुल कुछ भी पकड़ें, जनता अब उन्हें वोट नहीं देगी। 

इस सियासी घमासान ने सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या ये 'सियासी डुबकी' विपक्ष की रणनीति है या केवल चुनावी स्टंट? 'वो कुछ भी पकड़ें, जनता वोट नहीं देगी'... राहुल गांधी के मछली पकड़ने वाले वीडियो पर BSP का तंज और छिड़ी बहस कांग्रेस नेता राहुल गांधी पिछले कुछ समय से अपने 'जनता के बीच' वाले अवतार को लेकर चर्चा में हैं। कभी वह मैकेनिकों के साथ दिखते हैं, तो कभी खेत में धान रोपते हुए। 

इसी कड़ी में बिहार के बेगूसराय में मल्लाह समाज के साथ तालाब में उतरकर मछली पकड़ने का उनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस वीडियो को कांग्रेस जहां पिछड़े और अति-पिछड़े समाज से जुड़ाव की कोशिश बता रही है, वहीं विरोधी दलों ने इसे 'चुनावी नौटंकी' कहकर खारिज कर दिया है। यह सिर्फ एक वीडियो नहीं, बल्कि आगामी चुनावों की दिशा तय करने वाला एक सियासी दांव बन गया है, जिस पर देश की नजर है। राहुल का 'ग्राउंड टच' क्यों? क्या है असली रणनीति? 

राहुल गांधी की हालिया गतिविधियां, जिसमें वह आम लोगों के बीच जाकर उनके काम में हाथ बंटाते दिख रहे हैं, एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगती है। इस रणनीति के केंद्र में है पिछड़े और वंचित समुदायों के साथ भावनात्मक जुड़ाव स्थापित करना। 

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पिछड़े वोटबैंक को साधना: मल्लाह समाज बिहार के कुछ क्षेत्रों में एक निर्णायक वोटबैंक है। राहुल का उनके साथ मछली पकड़ना सीधे तौर पर इस समुदाय को यह संदेश देने की कोशिश है कि कांग्रेस उनके साथ खड़ी है। 

'सूट-बूट की सरकार' वाली छवि तोड़ना: बार-बार आम लोगों के बीच जाकर राहुल गांधी अपनी और अपनी पार्टी की 'अभिजात्य' वाली छवि को तोड़ना चाहते हैं, जिसका फायदा अक्सर विरोधी पार्टियां उठाती हैं। 

मीडिया अटेंशन और कनेक्टिविटी: ये वीडियो तुरंत वायरल होते हैं, जिससे राहुल और कांग्रेस को बड़ी मीडिया कवरेज मिलती है और युवा वर्ग के बीच कनेक्टिविटी बढ़ती है। 

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क्या यह नया अवतार वोट में तब्दील हो पाएगा? यही वह सवाल है जो इस वक्त बिहार की राजनीति के गलियारों में गूंज रहा है। 

बक्सर से बीएसपी का तीखा हमला 'सिर्फ वोट के लिए आंसू पोछते हैं' 

राहुल गांधी के इस 'मछुआरे अवतार' पर सबसे तीखा हमला बोला है बहुजन समाज पार्टी BSP ने। बक्सर में मीडिया से बातचीत के दौरान बीएसपी नेता अनिल कुमार ने इस पूरे प्रयास को खारिज कर दिया। अनिल कुमार ने अपनी बात में स्पष्ट और तीखे तंज का इस्तेमाल किया। उन्होंने जोर देकर कहा "राहुल गांधी मछली पकड़ें या कुछ और करें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, जनता उन्हें वोट नहीं करेगी।" 

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बीएसपी नेता के बयान का मुख्य फोकस राहुल गांधी की पार्टी कांग्रेस के पुराने शासनकाल पर रहा। उन्होंने सवाल किया कि जब वे सत्ता में थे, तब उन्होंने बिहार के पिछड़े समुदायों के लिए क्या किया? क्या उन्होंने तब किसी यादव परिवार के घर जाकर आंसू पोंछे? वे सिर्फ चुनाव में वोट और सत्ता में बैठने के लिए ऐसे दिखावे करते हैं। 

बीएसपी का यह तंज दिखाता है कि वह भी पिछड़े और दलित वोटबैंक पर अपना दावा मजबूत करना चाहती है और कांग्रेस की इस "भावनात्मक राजनीति" को विफल करने की कोशिश में है। 

चुनावी घमासान में 'ठगबंधन' और 'भरोसा' फैक्टर 

बीएसपी नेता यहीं नहीं रुके। उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर एक बड़ा दावा किया। उन्होंने कहा कि जनता अब बदलाव चाहती है और इस बार बीएसपी को मौका देगी। उनके निशाने पर केवल राहुल गांधी या कांग्रेस नहीं थी, बल्कि महागठबंधन ठगबंधन और एनडीए दोनों थे। बीएसपी ने महागठबंधन को 'स्वार्थ का गठबंधन' बताया और कहा कि जनता ऐसे 'ठगबंधन' को मौका नहीं देगी। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि जनता एनडीए को भी वोट नहीं करेगी। "जनता इस बार एक-एक वोट का हिसाब लेगी, बीएसपी को जिताएगी, करारा जवाब देगी। इन गठबंधनों को बिहार से उखाड़ फेकेगी।" 

यह बयान स्पष्ट करता है कि मायावती की पार्टी बिहार में तीसरे मजबूत विकल्प के रूप में खुद को स्थापित करने की पूरी कोशिश कर रही है। उनका मुख्य दांव यह है कि पुराने गठबंधनों से निराश मतदाता बीएसपी पर भरोसा करेंगे। बीएसपी का हमला इस बात को रेखांकित करता है कि चुनाव केवल इमोशनल वीडियो से नहीं जीते जाते, बल्कि जनता के बीच आपकी विश्वसनीयता और पुराने ट्रैक रिकॉर्ड पर आधारित होते हैं। 

बिहार के दो चरणों के मतदान और 14 नवंबर को आने वाले परिणाम यह बताएंगे कि क्या राहुल गांधी का 'मछुआरा अवतार' वोट में बदल पाएगा, या फिर बीएसपी का यह तंज सच्चाई साबित होगा कि "वो कुछ भी पकड़ें, जनता वोट नहीं देगी।" 

यह लड़ाई अब वोट की डुबकी और विश्वसनीयता की गहराई के बीच की हो गई है। 

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