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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण में मंगलवार को शाहाबाद से लेकर सीमांचल तक सियासी संग्राम चरम पर है। कुल 20 जिलों की 122 सीटों पर मतदान हो रहा है, लेकिन इनमें 11 सीटें ऐसी हैं जो भाजपा समेत सभी प्रमुख दलों के लिए सियासी परीक्षा बन गई हैं। इन इलाकों में पिछले चुनावों में भाजपा ने मजबूत प्रदर्शन किया था, लेकिन इस बार बदलते राजनीतिक समीकरण, उम्मीदवारों की अदला-बदली और जातीय संतुलन ने मुकाबले को जटिल बना दिया है।
शाहाबाद और सीमांचल दोनों ही क्षेत्र इस चरण की सबसे निर्णायक बेल्ट मानी जा रही हैं। भाजपा जहां अपने परंपरागत वोट बैंक को बचाने और संगठन की पकड़ को साबित करने की कोशिश में है, वहीं महागठबंधन ने स्थानीय मुद्दों, उम्मीदवारों की लोकप्रियता और जातीय गणित के सहारे मुकाबले को बराबरी पर ला दिया है। जन सुराज जैसी नई ताकतें भी कई सीटों पर चुनावी माहौल को प्रभावित कर रही हैं, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय हो गया है।
गया और कैमूर के इमामगंज से लेकर सीमांचल की जोकीहाट सीट तक भाजपा की रणनीति को कई स्तरों पर चुनौती मिल रही है। इमामगंज में एनडीए प्रत्याशी दीपा कुमारी (जीतन राम मांझी की बहू) का मुकाबला आरजेडी की रितु प्रिया चौधरी और जन सुराज के अजीत कुमार से है।
काराकाट सीट पर भोजपुरी स्टार पवन सिंह की पत्नी ज्योति सिंह के निर्दलीय उतरने से मुकाबले का समीकरण पूरी तरह बदल गया है। जेडीयू के महाबली सिंह और माले के अरुण सिंह के बीच सीधा टकराव था, लेकिन अब तीसरा मोर्चा भी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहा है।
पश्चिम चंपारण की चनपटिया सीट पर यूट्यूबर मनीष कश्यप के जन सुराज से उतरने ने चुनाव को हाईप्रोफाइल बना दिया है। बीजेपी के उमाकांत सिंह और कांग्रेस के अभिषेक रंजन के बीच अब मुकाबला भावनाओं और लोकप्रियता का बन गया है।
गोविंदगंज, जोकीहाट और रूपौली जैसी सीटें जातीय समीकरण और व्यक्तिगत छवि दोनों के लिए कसौटी हैं। जोकीहाट में मुस्लिम वोट निर्णायक हैं, जहां जेडीयू, आरजेडी, जन सुराज और AIMIM चारों आमने-सामने हैं। वहीं रूपौली में आरजेडी की बीमा भारती की वापसी ने समीकरण पूरी तरह बदल दिए हैं, जबकि धमदाहा में मंत्री लेसी सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर है।
कदवा, कहलगांव और रामगढ़ जैसे इलाकों में भी मुकाबला बेहद करीबी है। सीमांचल की कड़वा सीट पर मुस्लिम-यादव समीकरण मुख्य फैक्टर है, जबकि कहलगांव में महागठबंधन की एकजुटता की परीक्षा हो रही है। रामगढ़ में राजद के वरिष्ठ नेता सुधाकर सिंह के लिए यह चुनाव राजनीतिक साख का प्रश्न बन गया है।
चकाई सीट पर पिछली बार निर्दलीय सुमित सिंह की जीत ने सबको चौंकाया था। इस बार गठबंधन की रणनीति और सुमित सिंह की व्यक्तिगत लोकप्रियता के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल रहा है।
इन 11 हॉट सीटों का परिणाम राज्य की सत्ता की दिशा तय करने में निर्णायक होगा। भाजपा के लिए यह चरण सियासी प्रतिष्ठा की परीक्षा है, जबकि महागठबंधन के लिए अवसर है अपने प्रभाव क्षेत्र को और विस्तारित करने का। अब देखना यह है कि 14 नवंबर को किसके पक्ष में जनता का जनादेश खुलता है, विकास के नाम पर या बदलाव के नाम पर।
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