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बिहार चुनाव 2025: राघोपुर में फंसे तेजस्वी यादव, क्या बचा पाएंगे परिवार की विरासत? | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । बिहार की राघोपुर विधानसभा सीट लालू परिवार की राजनीतिक पहचान रही है, लेकिन इस बार तेजस्वी यादव चौतरफा घेराबंदी में हैं। गंगा से घिरे इस 'द्वीप' पर एनडीए के यादव उम्मीदवार, जन सुराज के राजपूत प्रत्याशी और भाई तेज प्रताप का कैंडिडेट मिलकर तेजस्वी के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगा रहे हैं। यह मुकाबला केवल सीट जीतने का नहीं, बल्कि 'लालू विरासत' बचाने की सबसे बड़ी परीक्षा है, जहां युवा मतदाता और जातीय समीकरण निर्णायक होंगे।
बिहार की राजनीति में कुछ सीटें केवल विधानसभा क्षेत्र नहीं होतीं, बल्कि वे किसी सियासी परिवार की प्रतिष्ठा और विरासत का केंद्र होती हैं। राघोपुर लालू प्रसाद यादव परिवार के लिए ऐसा ही एक गढ़ रहा है। 1995 से लेकर 2020 तक लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव ने यहां से जीत दर्ज की, इसे 'लालू परिवार का अभेद्य किला' बना दिया। लेकिन, इस बार गंगा की धार से घिरा यह इलाका, जितना भौगोलिक रूप से सीमित है, उतना ही राजनीतिक रूप से खुला मैदान बन चुका है।
यहां युवा नेता तेजस्वी यादव को अपने सियासी करियर की सबसे बड़ी और सबसे पेचीदा चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। यह चुनौती तीनतरफा नहीं, बल्कि चार मोर्चों से आ रही है- एक एनडीए, दूसरा प्रशांत किशोर की जन सुराज, तीसरा उनके अपने बड़े भाई तेज प्रताप यादव की पार्टी, और चौथा बदलता जातीय तथा युवा समीकरण।
सियासी घेराबंदी 4 मोर्चे, 1 किला, तेजस्वी पर दबाव राघोपुर का यह रण सिर्फ एक सीट का चुनाव नहीं है। यह तेजस्वी यादव के नेतृत्व, उनके 'MY' समीकरण और उनकी व्यक्तिगत अपील की कठोर परीक्षा है। 2015 और 2020 में तो तेजस्वी ने बड़ी जीत हासिल की, लेकिन 2025 में समीकरण पूरी तरह बदले हुए दिख रहे हैं।
घेराबंदी 1: एनडीए का 'यादव' दांव
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बीजेपी उम्मीदवार सतीश कुमार बीजेपी ने एक बार फिर सतीश कुमार यादव पर दांव लगाया है, जो 'यदुवंशी' समुदाय से आते हैं। सतीश यादव वही चेहरा हैं, जिन्होंने 2010 में राबड़ी देवी को 13000 से अधिक वोटों से हराकर बड़ा उलटफेर किया था।
रणनीति: बीजेपी का प्रयास स्पष्ट है- यादव वोटों में सेंधमारी करना।
दबाव: अगर यादव मतदाताओं का एक छोटा हिस्सा भी सतीश यादव के पाले में गया, तो यह तेजस्वी के लिए सबसे बड़ा झटका होगा।
जातीय गणित: सतीश यादव के साथ गैर-यादव ओबीसी कुर्मी, अगड़ी जातियां भूमिहार और दलित वोटों का गठजोड़, राघोपुर के पूरे समीकरण को पलट सकता है।
घेराबंदी 2: 'किंगमेकर' की एंट्री
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जन सुराज प्रत्याशी चंचल सिंह प्रशांत किशोर PK की जन सुराज पार्टी ने चंचल सिंह को मैदान में उतारकर मुकाबले को और जटिल बना दिया है। चंचल सिंह राजपूत समुदाय से आते हैं, जो राघोपुर में यादवों के बाद सबसे बड़ा वोट बैंक है।
रणनीति: अगड़े राजपूत वोट बैंक को मजबूती से एकजुट करना और तेजस्वी के यादव समीकरण को चुनौती देना।
दबाव: जन सुराज की एंट्री से सीधे तौर पर एनडीए के अगड़े वोट कट सकते हैं, लेकिन यह एनडीए को गैर-यादव ओबीसी और दलित वोटरों को तेजस्वी के खिलाफ लामबंद करने का मौका भी दे सकता है।
टेंशन की वजह: अगर राजपूत वोटर एकजुट हुए और भूमिहारों का साथ मिला तो चंचल सिंह निर्णायक स्थिति में आ सकते हैं, जिससे जीत का अंतर बहुत कम हो जाएगा।
घेराबंदी 3: 'अपनों' का वार तेज प्रताप की पार्टी
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तेजस्वी यादव के बड़े भाई तेज प्रताप यादव की पार्टी जनशक्ति जनता दल ने भी प्रेम कुमार यादव को मैदान में उतार दिया है। यह राजनीतिक रूप से सबसे भावनात्मक और तीखी घेराबंदी है।
रणनीति: यह 'अपनों का वार' सीधे तौर पर आरजेडी के पारंपरिक यादव वोट बैंक में भ्रम और विभाजन पैदा करने पर केंद्रित है।
दबाव: प्रेम कुमार भी यादव समुदाय से हैं और पूर्व में आरजेडी के सक्रिय सदस्य रहे हैं। उनकी मौजूदगी यह सुनिश्चित करेगी कि यादव वोटों का बिखराव हो, जो तेजस्वी की सबसे बड़ी ताकत को कमजोर करेगा।
घेराबंदी 4: गंगा पार की बदलती लहर
युवा और जातिगत ध्रुवीकरण: राघोपुर में जातीय समीकरण जितना मायने रखते हैं, उतना ही अब विकास और बेरोजगारी के मुद्दे भी हावी हो रहे हैं। युवा मतदाता अब केवल जाति के आधार पर वोट नहीं डालना चाहता।
बदलता समीकरण: 2020 में जीत का अंतर 38174 वोट था, लेकिन जानकार मानते हैं कि युवा मतदाताओं और महिला वोटरों की बढ़ती अनुमानित संख्या 2 लाख से अधिक इस अंतर को कम कर सकती है।
फाइनल गेम: इस सीट पर 'यादव मतों की बहुलता' ही जीत की गारंटी नहीं है, बल्कि राजपूत, भूमिहार और दलित समूहों की गोलबंदी और बिखराव से सियासी समीकरण उलट-पलट हो सकते हैं।
तेजस्वी यादव को अपने आधार वोट के साथ-साथ ओबीसी, दलित और मुस्लिम वोटों का मजबूत समन्वय करना होगा। क्या आप जानते हैं?
राघोपुर चारों तरफ से गंगा और उसकी सहायक नदियों से घिरा है, जिससे यह क्षेत्र प्राकृतिक रूप से लगभग एक 'द्वीप' बन जाता है। अब यह द्वीप राजनीतिक तौर पर भी 'घिरा हुआ' महसूस कर रहा है, जहां तेजस्वी यादव चार सियासी धाराओं के बीच अपनी नैया पार लगाने की कोशिश कर रहे हैं।
समीकरणों का चक्रव्यूह कौन किस पर भारी?
राघोपुर विधानसभा क्षेत्र सामान्य सीट है। यहां की जातीय संरचना और उनके संभावित झुकाव को समझना जरूरी है।
| समूह | अनुमानित प्रतिशत | पारंपरिक रुझान | 2025 में चुनौती |
| यादव | 32% | RJD तेजस्वी | BJP सतीश यादव और JJD प्रेम कुमार द्वारा विभाजन। |
| राजपूत अधिक, यादवों के बाद सबसे ज्यादा | 20% | NDA/जन सुराज | जन सुराज के चंचल सिंह मजबूत दावेदार, वोट गोलबंदी का प्रयास। |
| भूमिहार पर्याप्त संख्या | 28% | NDA | NDA के पक्ष में लामबंद या जन सुराज की ओर झुकाव। |
| पासवान और दलित | 24% | बिखराव/बदलाव | रोजगार और विकास के मुद्दों पर युवा मतदाताओं का रुझान निर्णायक। |
आपको बता दें कि बीजेपी उम्मीदवार सतीश यादव, साल 2010 में राबड़ी देवी को हरा चुके हैं। यह उनकी ताकत है। वहीं, जन सुराज के चंचल सिंह एक नए और मजबूत राजपूत चेहरे के रूप में उभरे हैं। तेज प्रताप के उम्मीदवार प्रेम कुमार यादव वोट बैंक में 'डिस्ट्रैक्शन' पैदा करेंगे।
सीधा सवाल क्या तेजस्वी यादव इन तीनों घेराबंदियों को भेदकर अपने 'यादव-मुस्लिम-ओबीसी' समीकरण को एकजुट रख पाएंगे? या फिर एनडीए का 'यादव-प्लस' समीकरण और जन सुराज का 'अगड़ा' दांव मिलकर इस किले को ढहा देगा? यह सीट बिहार चुनाव का सबसे बड़ा 'टेस्ट केस' क्यों है?
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि राघोपुर विधानसभा सीट का मुकाबला इस बार बिहार चुनाव का सबसे दिलचस्प 'टेस्ट केस' है।
विरासत की परीक्षा: अगर तेजस्वी यादव यह सीट बड़े अंतर से बरकरार रखते हैं, तो यह उनकी नेतृत्व क्षमता और 'लालू विरासत' पर उनकी पकड़ की पुष्टि होगी।
सियासी झटका: लेकिन अगर लहर उलटी पड़ी, और उन्हें कड़ा मुकाबला या हार का सामना करना पड़ा, तो यह 2025 के बिहार चुनाव का सबसे बड़ा सियासी उलटफेर साबित हो सकता है। यह न सिर्फ आरजेडी के लिए, बल्कि उनके व्यक्तिगत राजनीतिक भविष्य के लिए भी एक गंभीर झटका होगा।
गंगा की धार के बीच राघोपुर की धरती हर चुनाव में एक नई कहानी लिखती है। इस बार, यह कहानी सिर्फ जीत-हार की नहीं, बल्कि एक युवा नेता के नेतृत्व की निर्णायक परीक्षा की है, जो चार मोर्चों से घिरी अपनी राजनीतिक पहचान बचाने की जुगत में लगा है।
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