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बिहार चुनाव 2025 : RJD में वापसी नहीं 'मरना मंजूर' क्यों कह रहे हैं तेज प्रताप? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।बिहार चुनाव 2025 के दौरान लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने 'जनशक्ति जनता दल' के सुप्रीमो के रूप में आरजेडी में वापसी को लेकर चौंकाने वाला बयान दिया है। उन्होंने कहा कि उन्हें मरना मंज़ूर है, लेकिन राष्ट्रीय जनता दल RJD में जाना नहीं। आत्मसम्मान को सर्वोपरि बताते हुए उन्होंने छोटे भाई तेजस्वी यादव के सीएम फेस होने पर भी तल्ख़ टिप्पणी की है, जिससे बिहार के राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बजने के साथ ही राज्य की राजनीति में भूचाल आ गया है। इस भूचाल के केंद्र में हैं लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे और 'जनशक्ति जनता दल' के सुप्रीमो तेज प्रताप यादव। एक हालिया इंटरव्यू में उन्होंने अपनी पुरानी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल RJD में वापसी को लेकर जो दो टूक बयान दिया है, उसने न सिर्फ आरजेडी के भीतर बल्कि पूरे प्रदेश की सियासत को गरमा दिया है।
तेज प्रताप ने साफ शब्दों में कहा, "आरजेडी में वापस जाने से बेहतर हम मरना मंजूर करेंगे।" यह बयान महज़ एक राजनीतिक जुमला नहीं है, बल्कि यह लालू परिवार के भीतर चल रहे गहरे मतभेदों और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की एक परत खोलता है।
राजनीति में 'घर वापसी' की अटकलों के बीच, यह 'मौत' वाला बयान यह स्पष्ट करता है कि तेज प्रताप अब अपने लिए एक नई राजनीतिक राह चुनने का मन बना चुके हैं, जहां आत्मसम्मान सर्वोपरि है।
सत्ता का लालच नहीं, सिद्धांत सर्वोपरि जब उनसे आरजेडी में दोबारा लौटने का सवाल किया गया तो तेज प्रताप यादव ने बड़ी भावुकता से इसका जवाब दिया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि वह सत्ता के लालची नहीं हैं। उनके लिए, किसी भी पद या सत्ता से ऊपर उनके सिद्धांत और आत्मसम्मान मायने रखते हैं। "मेरी पार्टी जनशक्ति जनता दल है। मैं सत्ता का लालची नहीं हूं। मेरे लिये सिद्धांत और आत्मसम्मान सर्वोपरि है। मैं सत्ता का भूखा नहीं हूं, "उन्होंने कहा।
यह वक्तव्य दरअसल, उनकी पिछले कुछ वर्षों की राजनीतिक यात्रा का निचोड़ है। आरजेडी में हाशिए पर जाने के बाद, उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई और अब वह अपनी ज़मीन मजबूत करने में लगे हैं। उनका यह कहना कि जनता की सेवा करना उनके लिए सबसे बड़ी बात है, उन्हें एक 'जन-सेवक' के रूप में स्थापित करने की कोशिश है, न कि महज़ एक 'राजनेता' के रूप में।
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महुआ विधानसभा से चुनावी हुंकार क्या फिर होगा कोई बड़ा उलटफेर?
तेज प्रताप यादव ने अपनी पुरानी सीट महुआ विधानसभा से ताल ठोंकने का ऐलान कर दिया है। वह लगातार अपने विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय हैं और जनता के बीच अपनी पैठ मजबूत करने में जुटे हैं। उनकी चुनावी तैयारियों को देखकर यह साफ है कि वह महज़ दिखावे के लिए मैदान में नहीं हैं, बल्कि उनका इरादा इस बार महुआ में एक बड़ा उलटफेर करने का है।
उन्होंने दावा किया कि उन्हें महुआ में लोगों का भरपूर समर्थन मिल रहा है। "मैं राजनीति में आने से बहुत पहले से इस क्षेत्र से जुड़ा रहा हूं। यहां की जनता मुझ पर भरोसा करती है।"
वर्तमान में इस सीट पर आरजेडी के विधायक मुकेश रौशन काबिज हैं, लेकिन तेज प्रताप यादव ने उन्हें किसी बड़ी चुनौती के रूप में देखने से इनकार कर दिया।
यह दिखाता है कि वह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को कम आंक रहे हैं या फिर उन्हें अपनी ज़मीनी पकड़ पर पूरा भरोसा है। महुआ की यह लड़ाई सिर्फ एक सीट की नहीं, बल्कि लालू परिवार के भीतर की वर्चस्व की जंग का मैदान भी बनने वाली है।
छोटे भाई तेजस्वी पर 'बड़ा भाई' खूब बरसा सत्ता का असली हकदार कौन?
आरजेडी से अलग होने के बाद भी तेज प्रताप और उनके छोटे भाई तेजस्वी यादव के बीच राजनीतिक तकरार कम नहीं हुई है। महागठबंधन की तरफ से तेजस्वी यादव को सीएम फेस बनाए जाने के सवाल पर तेज प्रताप ने तीखा हमला बोला। उन्होंने एक अनुभवी राजनेता की तरह प्रतिक्रिया देते हुए कहा "सत्ता उसी को मिलती है जिसे जनता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।"
यह बयान महज़ भाई-भतीजावाद पर टिप्पणी नहीं है, बल्कि यह तेजस्वी की दावेदारी पर एक सवालिया निशान लगाता है। तेज प्रताप का यह कहना कि वह तेजस्वी को केवल आशीर्वाद ही दे सकते हैं, और वह 'सुदर्शन चक्र' नहीं चला सकते, यह संकेत देता है कि उन्हें तेजस्वी की राजनीतिक रणनीति और नेतृत्व क्षमता पर संदेह है।
यह तल्ख़ टिप्पणी यह भी दर्शाती है कि परिवार के भीतर नेतृत्व को लेकर जो अनसुलझा संघर्ष है, वह अभी भी जिंदा है। तेज प्रताप खुद को लालू की राजनीतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण दावेदार मानते हैं और तेजस्वी को सीएम फेस बनाने की कवायद को वह केवल "राजनीति में तरह-तरह की घोषणाएं" मानते हैं।
पिता लालू और मां राबड़ी का आशीर्वाद परिवार से दूरी क्यों?
लालू-राबड़ी के सबसे बड़े बेटे होने के नाते, यह सवाल बार-बार उठता है कि क्या उनका अपने माता-पिता से संपर्क है? इस पर तेज प्रताप यादव का जवाब थोड़ा भावुक करने वाला था। उन्होंने स्वीकार किया कि लालू यादव और राबड़ी देवी से उनकी बातचीत नहीं होती है, लेकिन साथ ही उन्होंने तुरंत जोड़ा "लेकिन उनका आशीर्वाद मेरे साथ है।"
राजनीतिक लड़ाई के बावजूद, तेज प्रताप अपने माता-पिता के आशीर्वाद को खुद के लिए सबसे बड़ी पूंजी मानते हैं। यह जगजाहिर है कि विवाद के बाद लालू यादव ने तेज प्रताप को परिवार और पार्टी से निष्कासित कर दिया था। यह निष्कासन आज भी राजनीतिक दूरी का कारण बना हुआ है।
पारिवारिक अलगाव: तेज प्रताप और आरजेडी के बीच की खाई अब सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि व्यक्तिगत भी हो गई है।
लालू की विरासत: तेज प्रताप खुद को लालू की विरासत का असली उत्तराधिकारी मानते हैं, जबकि तेजस्वी को आरजेडी का निर्विवाद नेता बनाया जा चुका है।
आत्मसम्मान की लड़ाई: तेज प्रताप का 'मरना मंजूर' वाला बयान उनकी आत्मसम्मान की लड़ाई को दर्शाता है, जहां वह किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करना चाहते।
बिहार की जनता का मूड क्या तेज प्रताप बनेंगे 'किंगमेकर'?
साल 2025 के चुनाव में तेज प्रताप यादव की भूमिका बेहद अहम हो सकती है। भले ही उनकी 'जनशक्ति जनता दल' एक छोटी पार्टी हो, लेकिन उनका हर कदम आरजेडी और महागठबंधन के वोट बैंक को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। तेज प्रताप यादव, जो अक्सर अपने अनोखे अंदाज, धार्मिक कार्यक्रमों और भगवान कृष्ण के भक्त होने की पहचान के कारण मीडिया में रहते हैं, उनकी लोकप्रियता बिहार के ग्रामीण इलाकों में अब भी बरकरार है।
अगर वह अपनी पार्टी के माध्यम से कई सीटों पर मजबूती से चुनाव लड़ते हैं, तो वह किंगमेकर भले न बनें, लेकिन वह वोट-कटवा की भूमिका निभाकर बड़े दलों का गणित बिगाड़ने की ताकत जरूर रखते हैं।
बिहार की राजनीति में, जहां भावनात्मक अपील का बड़ा महत्व है, तेज प्रताप का 'आत्मसम्मान' और 'जनसेवा' पर ज़ोर देना, उन्हें एक अलग पहचान देता है। तेज प्रताप यादव का यह 'मरना मंजूर' वाला बयान केवल एक खबर नहीं है, बल्कि यह बिहार की राजनीतिक बिसात पर एक बड़ा दांव है।
यह साफ है कि तेज प्रताप अब आरजेडी की छाया से बाहर निकलकर अपनी एक स्वतंत्र पहचान बनाना चाहते हैं। आने वाला चुनाव उनके और उनकी नई पार्टी के लिए एक 'करो या मरो' की स्थिति होगी, जहां वह अपने राजनीतिक वजूद को साबित करने की हर संभव कोशिश करेंगे।
इस बयान ने न सिर्फ लालू परिवार के भीतर की दरार को गहरा किया है, बल्कि बिहार की राजनीति को एक नया मोड़ दे दिया है।
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