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बिहार की राजनीति में एक बार फिर सत्ता गठबंधन के भीतर तनाव बढ़ गया है। एनडीए के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे पर सहमति बनने के बावजूद मतभेद खुलकर सामने आने लगे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस समय 9 सीटों को लेकर असंतुष्ट बताए जा रहे हैं और उन्होंने भाजपा से इन पर पुनर्विचार की मांग की है। जदयू का मानना है कि जिन सीटों पर उनकी पारंपरिक पकड़ रही है, उन्हें किसी अन्य सहयोगी पार्टी को देना स्वीकार्य नहीं है।
इस विवाद के बाद अब सियासी गलियारों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के पटना दौरे की चर्चा तेज हो गई है। सूत्रों के अनुसार, शाह मंगलवार को पटना आकर नीतीश कुमार से मुलाकात कर सकते हैं, ताकि सीटों को लेकर जारी गतिरोध को खत्म किया जा सके। हालांकि आधिकारिक पुष्टि अभी नहीं हुई है, लेकिन भाजपा और जदयू दोनों ही इस मुलाकात को लेकर सक्रिय हैं।
जानकारी के मुताबिक, नीतीश कुमार ने पहले ही जदयू के लिए 103 सीटें फाइनल की थीं, जबकि एनडीए के अंतिम बंटवारे में पार्टी को केवल 101 सीटें दी गईं। इनमें से 9 सीटें ऐसी हैं, जिन्हें नीतीश ने “अस्वीकार्य” बताया है। इनमें से कुछ सीटें पहले लोजपा (रामविलास) के खाते में दी गई थीं, जिससे जदयू के भीतर असंतोष गहराया है। नीतीश कुमार का तर्क है कि जहां उनकी पार्टी का पारंपरिक आधार मजबूत है, वहां जदयू को ही उम्मीदवार उतारने का हक मिलना चाहिए।
इस विवाद का असर सोमवार को साफ दिखा जब एनडीए की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस अचानक टाल दी गई। देर रात जदयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा के आवास पर भाजपा और जदयू नेताओं की मैराथन बैठक हुई, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका। नीतीश कुमार ने अपने सहयोगियों को निर्देश दिया है कि वे अब इस मामले पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से सीधे बात करें।
इस पूरे विवाद में सोनबरसा सीट भी चर्चा का केंद्र बनी हुई है। एनडीए की साझा सूची में यह सीट पहले लोजपा (रामविलास) को दी गई थी, लेकिन नीतीश कुमार ने इसे जदयू उम्मीदवार रत्नेश सदा को देकर स्पष्ट कर दिया कि वे पीछे हटने वाले नहीं हैं। सोमवार को खुद मुख्यमंत्री ने रत्नेश सदा को पार्टी सिंबल सौंपा, जिससे संकेत गया कि वे सीटों को लेकर अब किसी दबाव में आने को तैयार नहीं हैं। रत्नेश सदा मंगलवार को नामांकन दाखिल करेंगे, और यह कदम एनडीए की आंतरिक राजनीति में नए तनाव का कारण बन सकता है।
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