/young-bharat-news/media/media_files/2025/07/03/bihar-congress-president-rajesh-ram-2025-07-03-16-46-43.jpg)
बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक चार महीने पहले वोटर लिस्ट के Special Intensive Revision (SIR) का विषय एक बार फिर सियासी बहस का केंद्र बन गया है। कांग्रेस बिहार प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने इस प्रक्रिया को “20 साल में पहली बार ऐसा बड़ा और असमय निर्णय” बताया, और सीधे तौर पर इसे ‘vote-bandi’ करार दिया है।
राजेश राम ने सवाल उठाए कि क्या BLO (Booth Level Officers) के पास इतना बड़ा कार्यभार और संसाधन हैं? उन्होंने यह भी पूछा है कि जब बिहार में लगभग 4 लाख सरकारी पद रिक्त हैं, तो नामों का सत्यापन कैसे किया जाएगा? क्या दस्तावेज़ उपलब्ध न होने पर 8 करोड़ वोटर को वोट डालने से रोकने की रणनीति बन रही है, खासकर उन इलाकों में जो बाहरी राज्यों में गए मज़दूरों या बाढ़ प्रभावित हैं?
केंद्रीय चुनाव आयोग (ECI) ने हर मतदाता के घर जाकर तीन बार फॉर्म भरने और फिर सामने जाकर दस्तावेज चेक करने की व्यवस्था की है। लेकिन विपक्ष का तर्क है कि ऐसी जटिल और समयबद्ध प्रक्रिया मॉनसून के मौसम में अमान्य है—खासकर बिहार जैसे प्रदेश में जहाँ 73% क्षेत्र बाढ़ प्रभावित है।
साथ ही, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने कहा कि कार्यरत अधिकारी और कर्मचारी इतने बड़े अभियान को चलाने के लिए पर्याप्त संख्या में नहीं हैं, जिससे SIR की पारदर्शिता पर भी सवाल उठते हैं।
INDIA ब्लॉक ने भी इस प्रक्रिया को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है—जिसमें RJD, CPI‑ML और CPI समेत 11 विपक्षी पार्टियाँ शामिल हैं। उन्होंने इसे ‘Vote‑Bandi’ करार देते हुए चुनाव आयोग पर महासत्ता द्वारा मतदाताओं को हटाने का आरोप लगाया ।
इस बवाल के बीच चुनाव आयोग ने दोहराया है कि यह कार्रवाई संविधान और Representation of People Act, 1950 के तहत हो रही है, जिसमें प्रत्येक मतदाता को दस्तावेजों के साथ स्वयं प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर मिलेगा ।