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एनडीए में दलित नेतृत्व को लेकर घमासान: जीतनराम मांझी ने चिराग पासवान को बताया 'नासमझ', सियासी सरगर्मी तेज

Bihar Election 2025 से पहले NDA में दलित नेतृत्व को लेकर विवाद, जीतनराम मांझी ने चिराग पासवान की राजनीतिक सोच पर उठाए सवाल। जानिए पूरे घटनाक्रम की गहराई।

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YBN Bihar Desk
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बिहार की राजनीति में दलित वोट बैंक हमेशा से निर्णायक रहा है। 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले यह वर्ग एक बार फिर सियासी हलचलों के केंद्र में आ गया है और इस बार मुकाबला बाहरी नहीं, बल्कि एनडीए के भीतर का है। एनडीए में शामिल दो प्रमुख दलित चेहरे—जीतनराम मांझी और चिराग पासवान—अब एक-दूसरे के खिलाफ सार्वजनिक रूप से मोर्चा खोल चुके हैं। यह टकराव न केवल राजनीतिक महत्वाकांक्षा की झलक देता है, बल्कि आगामी चुनावों में एनडीए की दलित नीति और रणनीति को लेकर उठते सवालों को भी उजागर करता है।

पटना में पत्रकारों से बातचीत के दौरान जब 'हम' प्रमुख और केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी से पूछा गया कि चिराग पासवान खुद को दलितों का सबसे बड़ा हितैषी बता रहे हैं, तो उन्होंने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "चिराग पासवान में समझदारी की कमी है।" मांझी ने कहा कि राजनीति केवल एक वर्ग के लिए नहीं होती, बल्कि सभी समाजों के कल्याण के लिए होनी चाहिए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस तरह की संकीर्ण सोच राजनीतिक अपरिपक्वता को दर्शाती है।

दरअसल, चिराग पासवान ने राजगीर में 'बहुजन भीम संकल्प समागम' नामक रैली में खुद को बाबा साहेब अंबेडकर के विचारों का सच्चा अनुयायी बताया था और कहा था कि एनडीए में वही असली दलित प्रतिनिधि हैं। उन्होंने 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' का नारा देते हुए दावा किया कि उनके रहते संविधान और आरक्षण को कोई खतरा नहीं है। चिराग ने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें बिहार में चुनावी राजनीति से बाहर करने की साजिशें चल रही हैं।

चिराग पासवान की यह आक्रामक बयानबाज़ी एक ओर जहां उनकी लोजपा (रामविलास) को बिहार में दलित राजनीति के केंद्र में स्थापित करने की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है, वहीं मांझी के बयान से साफ है कि 'हम' पार्टी ऐसा कोई स्पेस आसानी से नहीं छोड़ेगी। मांझी खुद भी खुद को दलित वर्ग के परिपक्व और अनुभवी नेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। 

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यह टकराव केवल व्यक्तिगत बयानबाज़ी तक सीमित नहीं, बल्कि यह एनडीए के अंदर दलित वोट बैंक को लेकर चल रही अंदरूनी खींचतान का संकेत है। एनडीए नेतृत्व को यह तय करना होगा कि वह किस चेहरे को आगे करके दलित समुदाय तक अपनी बात पहुंचाएगा। एक ओर चिराग पासवान अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत का सहारा लेते हैं, तो दूसरी ओर जीतनराम मांझी अपने लंबे राजनीतिक अनुभव और सामाजिक कामों को।

यह भी गौर करने वाली बात है कि दोनों नेता केंद्रीय मंत्री हैं और एनडीए का हिस्सा भी। ऐसे में उनके बीच इस तरह की टकरावपूर्ण बयानबाज़ी बीजेपी के लिए असहज स्थिति उत्पन्न कर सकती है, खासकर उस समय जब विपक्षी पार्टियां जातिगत समीकरणों को लेकर पहले से ही रणनीति बनाने में जुटी हैं।

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