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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । बिहार में एनडीए सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार का बयान सुर्खियां बटोर रहा है। राजनीति से दूर रहने वाले निशांत ने कहा, "जनता ने एनडीए परिवार को खुशी दी है।" इस संक्षिप्त, लेकिन मार्मिक टिप्पणी ने राजनीतिक गलियारों में एक नई बहस छेड़ दी है। यह सिर्फ एक बधाई संदेश नहीं, बल्कि एक बेटे की उस सादगी और भावनात्मक जुड़ाव को दर्शाता है, जो उन्हें अन्य राजनीतिक परिवारों से अलग करती है।
#WATCH पटना: बिहार में NDA सरकार के शपथ ग्रहण समारोह पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार ने कहा, "हमें बहुत खुशी है। जनता ने NDA परिवार को खुशी दी है। मैं पिताजी(नीतीश कुमार) को बधाई देता हूं कि वे मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे हैं। मैं सभी को बहुत-बहुत बधाई… pic.twitter.com/sZ5Vsebm35
— ANI_HindiNews (@AHindinews) November 20, 2025
बेटे की सादगी जब राजनीति के मंच पर भावनाएं बोलती हैं
पटना में जब नीतीश कुमार 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, उस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने उनके बेटे, निशांत कुमार। निशांत का शांत, संयमित और पूरी तरह से राजनीतिक बयानबाजी से रहित बयान एक ताजी हवा के झोंके जैसा था। उनका यह कहना कि "हमें बहुत खुशी है। जनता ने एनडीए परिवार को खुशी दी है, "महज एक औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं है यह उस पारिवारिक पृष्ठभूमि का प्रतिबिंब है, जिसने हमेशा सत्ता की चकाचौंध से दूरी बनाए रखी है।
बिहार की राजनीति में कई दशकों बाद ऐसा मौका आया है जब शपथ ग्रहण समारोह से ज्यादा फोकस एक नेता के परिवार पर रहा है—और वह भी उसकी सादगी के कारण। कौन हैं निशांत कुमार? राजनीति से क्यों बनाई दूरी?
अक्सर देखा जाता है कि बड़े नेताओं के बच्चे कम उम्र में ही राजनीतिक पिच पर उतर जाते हैं, लेकिन निशांत कुमार ने इस चलन को पूरी तरह से ठुकराया है। पटना साहिब इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की डिग्री लेने वाले निशांत ने आईआईटी की तैयारी भी की थी। वे एक साधारण जीवन जीते हैं और उन्हें अध्यात्म, किताबें पढ़ने और विज्ञान में गहरी रुचि है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि निशांत का राजनीति से दूर रहना, नीतीश कुमार की अपनी 'शुद्ध' राजनीति की छवि को और मजबूत करता है। यह दिखाता है कि सत्ता का मोह परिवार तक नहीं फैला है। जब उनसे राजनीति में आने को लेकर सवाल किया गया, तो उनका जवाब हमेशा सीधा रहा "मुझे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है। मेरा काम अलग है।"
यह टिप्पणी अपने आप में एक संदेश है कि हर नेता के बेटे को नेता बनना जरूरी नहीं। यह बिहार की जनता के बीच उनकी और उनके पिता की स्वीकार्यता को भी बढ़ाता है।
शपथ ग्रहण समारोह एक बेटे की आंखों से खुशी का पल
शपथ ग्रहण समारोह एक बड़ा राजनीतिक आयोजन था, जहां सत्ता का प्रदर्शन साफ दिख रहा था। लेकिन, निशांत के चेहरे पर जो भाव थे, वे राजनीतिक नहीं, बल्कि व्यक्तिगत थे। उन्होंने अपने पिता को बधाई दी और एनडीए कार्यकर्ताओं को भी सराहा।
सादगी का संदेश: उनके कपड़े, उनका उठना-बैठना, और बात करने का तरीका, सब कुछ एक साधारण नागरिक जैसा था।
परिवार की खुशी: उन्होंने एनडीए को नहीं, बल्कि "एनडीए परिवार" को खुशी मिलने की बात कही, जो उनके भावनात्मक जुड़ाव को दर्शाता है।
जनता को श्रेय: सबसे महत्वपूर्ण बात, उन्होंने इस खुशी का श्रेय 'जनता' को दिया। यह दर्शाता है कि वे सत्ता को जनता का दिया हुआ प्रसाद मानते हैं, न कि अपना निजी अधिकार।
एक भावनात्मक क्षण: बिहार के राजनीतिक इतिहास में यह पहला मौका नहीं है, जब नीतीश कुमार ने शपथ ली है, लेकिन हर बार निशांत की उपस्थिति और उनकी सादगी दर्शकों को आकर्षित करती है।
यह दृश्य दशकों की राजनीतिक लड़ाई के बाद एक पिता-पुत्र के बीच सहज, प्रेमपूर्ण रिश्ते को दिखाता है।
वैसे नीतीश कुमार का राजनीतिक जीवन हमेशा शुचिता और सादगी पर आधारित रहा है। निशांत का राजनीति से दूर रहकर भी अपने पिता को समर्थन देना, इस विरासत को आगे बढ़ाता है। जब देश भर में परिवारवाद Dynasty Politics पर बहस चल रही है, ऐसे में निशांत का यह कदम एक दमदार संदेश देता है।
निशांत का यह कहना कि "मैं सभी को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। मैं एनडीए के सभी कार्यकर्ताओं को बधाई देता हूं..." बताता है कि वे सिर्फ अपने पिता की सफलता पर ही खुश नहीं हैं, बल्कि पूरी पार्टी और उसके जमीनी कार्यकर्ताओं की मेहनत को भी पहचानते हैं। यह एक परिपक्व और संतुलित दृष्टिकोण है, जो अक्सर राजनीतिक उत्तराधिकारियों में कम ही देखने को मिलता है।
शपथ ग्रहण के राजनीतिक शोर में निशांत कुमार की सादगी भरी आवाज़ ने एक गहरी छाप छोड़ी है। यह दिखाता है कि सत्ता के शिखर पर होने के बावजूद, ज़मीन से जुड़ाव अभी भी बरकरार है।
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