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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।पटना के गांधी मैदान में 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय लिख दिया है। एनडीए की नई सरकार में 26 मंत्रियों को शामिल किया गया है, जिसने जातीय समीकरणों के साथ-साथ भविष्य की राजनीति की बिसात बिछाई है। इस मंत्रिमंडल में बीजेपी का दबदबा साफ़ है, लेकिन चिराग पासवान और मांझी जैसे सहयोगियों को मिली अहमियत 2025 विधानसभा और 2029 लोकसभा चुनाव की रणनीति का स्पष्ट संकेत है। एक कुर्सी, दस बार शपथ क्या है नीतीश के सियासी जादू का राज?
आज 20 नवंगर 2025 गुरुवार को नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री पद की शपथ लेना सिर्फ एक सियासी घटना नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति के इतिहास में दर्ज होने वाला पल था। 10वीं बार सीएम बनना बताता है कि ‘पलटू राम’ कहे जाने वाले नीतीश दरअसल कितने बड़े राजनीतिक खिलाड़ी हैं। उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया कि सत्ता की चाबी उन्हीं के पास है, भले ही इसके लिए उन्हें किसी भी गठबंधन का साथ चुनना पड़े।
लेकिन, इस बार का मंत्रिमंडल गठन पिछले सभी गठनों से अलग और ज़्यादा सूक्ष्म है। यह सिर्फ सत्ता का बंटवारा नहीं है, बल्कि जातीय गोलबंदी, क्षेत्रीय संतुलन और आने वाले चुनावों को साधने की एक रणनीतिक चाल है।
बीजेपी का बढ़ता कद 14 मंत्री, सत्ता का नया केंद्र?
इस मंत्रिमंडल में सबसे बड़ी और निर्णायक हिस्सेदारी भारतीय जनता पार्टी बीजेपी की है। कुल 26 मंत्रियों में से 14 मंत्री अकेले बीजेपी कोटे से हैं, जबकि जेडीयू को सिर्फ 8 मंत्री पद मिले हैं। यह साफ दर्शाता है कि गठबंधन में अब बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में आ चुकी है।
उपमुख्यमंत्री के तौर पर सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा का होना सिर्फ दो पद नहीं, बल्कि बिहार के सामाजिक समीकरणों को साधने का प्रयास है। सम्राट चौधरी ओबीसी चेहरा हैं, तो विजय कुमार सिन्हा सवर्ण वर्ग से आते हैं। यह दोहरे नेतृत्व की रणनीति बीजेपी को राज्य में अपनी जड़ें और मज़बूत करने में मदद करेगी।
नीतीश के 'पुराने सिपाहियों' पर अटूट भरोसा
नीतीश कुमार ने अपने पुराने, भरोसेमंद और दिग्गज नेताओं को मंत्रिमंडल में बनाए रखकर एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। विजय कुमार चौधरी, बिजेंद्र प्रसाद यादव, और श्रवण कुमार जैसे नेता न सिर्फ अनुभव का भंडार हैं, बल्कि ये नीतीश के सबसे करीबी और वफादार माने जाते हैं।
विजय चौधरी अनुभवी और कुशल प्रशासक: सरकार के कामकाज में संतुलन बनाए रखने के लिए ज़रूरी।
बिजेंद्र यादव: नीतीश के सबसे पुराने साथियों में से, विश्वसनीयता और सादगी का प्रतीक।
अशोक चौधरी: जेडीयू का एक मजबूत दलित चेहरा, पार्टी के अंदरूनी समीकरणों को संभालने में माहिर।
यह दिखाता है कि गठबंधन में भले ही बीजेपी का कद बढ़ गया हो, लेकिन नीतीश का कोर टीम अभी भी मज़बूत है और सरकार की दिशा तय करने में इनकी भूमिका अहम रहेगी।
सहयोगी दलों की 'नई ताकत'
मांझी और कुशवाहा के बेटे: इस मंत्रिमंडल की सबसे दिलचस्प बात सहयोगी दलों को मिला प्रतिनिधित्व है। यह सिर्फ संख्या नहीं है, बल्कि राजनीतिक सम्मान है जो एनडीए ने अपने जूनियर पार्टनर्स को दिया है।
चिराग पासवान लोजपा-आर का बढ़ता कद: चिराग पासवान की पार्टी से दो मंत्रियों को शामिल करना साफ दर्शाता है कि उनका राजनीतिक कद बढ़ा है।
2029 लोकसभा चुनाव से पहले यह उनके लिए बड़ा प्रोत्साहन है। यह युवाओं में उनकी लोकप्रियता को भी भुनाने की रणनीति है।
जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की 'संतान-नीति'
पूर्व सीएम जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन और उपेंद्र कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री बनाना महज संयोग नहीं है। यह दोनों नेताओं को अपने पाले में बनाए रखने का एक भावनात्मक दांव है। संतोष सुमन हम सेक्युलर और दीपक प्रकाश रालोमो के कोटे से मंत्री बने हैं। दीपक प्रकाश का विधान परिषद के माध्यम से सदन में आना अभी बाकी है, जो बताता है कि सहयोगी दलों को खुश करने के लिए बीजेपी-जेडीयू किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
यह संकेत देता है कि एनडीए गठबंधन अब सिर्फ जेडीयू और बीजेपी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह छोटे क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर चलने की एक व्यापक रणनीति पर काम कर रहा है।
अनुभव vs युवा: भविष्य की पॉलिटिक्स का मिश्रण इस कैबिनेट में अनुभव और युवा जोश का एक बेहतरीन मिश्रण देखने को मिला है।
रामकृपाल यादव और मंगल पांडेय: इनके जैसे अनुभवी नेताओं के साथ-साथ श्रेयसी सिंह जैसी युवा और ऊर्जावान चेहरा भी शामिल हैं।
रामकृपाल यादव: एक अनुभवी नेता जिनका सामाजिक आधार व्यापक है।
श्रेयसी सिंह: जमुई से विधायक, पूर्व अंतर्राष्ट्रीय निशानेबाज। एक युवा, लोकप्रिय और प्रभावी महिला चेहरा, जो युवाओं और महिलाओं को जोड़ने में मदद करेंगी।
यह संतुलन बताता है कि एनडीए न केवल वर्तमान को संभालना चाहता है, बल्कि भविष्य की पीढ़ी के नेतृत्व को भी तैयार कर रहा है। जातीय और क्षेत्रीय संतुलन हर वर्ग को साधने की कोशिश यह मंत्रिमंडल सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि जातीय समीकरणों का भी एक बारीक गणित है।
दलित और महादलित: इन चेहरों को प्रमुखता दी गई है जैसे अशोक चौधरी, रमा निषाद, संतोष सुमन।
ओबीसी और अति पिछड़ा वर्ग EBC: इनको भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिला है जैसे सम्राट चौधरी, मदन सहनी।
क्षेत्रीय आधार: इस आधार पर देखें तो मिथिलांचल, मगध, भोजपुर और सीमांचल के क्षेत्रों से मंत्रियों को शामिल किया गया है, ताकि पूरे बिहार में गठबंधन की पकड़ मज़बूत हो सके।
2025 में विधानसभा चुनाव में बंपर जीत के बाद नीतीश कुमार का यह मंत्रिमंडल विस्तार 2029 के लोकसभा चुनाव चुनाव की एक मजबूत नींव कही जा सकती है।
बीजेपी ने अपनी बढ़ी हुई शक्ति का प्रदर्शन किया है, तो वहीं नीतीश कुमार ने अपने विश्वसनीय साथियों को बनाए रखकर अपनी पकड़ भी ढीली नहीं होने दी है। यह कैबिनेट बिहार की राजनीतिक भविष्य की दिशा तय करेगी।
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