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कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का बहुप्रतीक्षित बिहार दौरा एक बार फिर से टल गया है। 27 मई को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा में आयोजित होने वाला "अति पिछड़ा सम्मेलन" अब नहीं होगा। कांग्रेस के प्रदेश सूत्रों के अनुसार, इस कार्यक्रम को फिलहाल कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया है। इससे कांग्रेस की बिहार रणनीति (Bihar Congress Strategy) और जमीनी पकड़ को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं।
कांग्रेस की तैयारियों में क्यों दिखा ढीलापन?
बिहार कांग्रेस ने अभी तक नालंदा में कार्यक्रम स्थल तक तय नहीं किया था, न ही जिला प्रशासन को कोई आधिकारिक सूचना दी गई थी। इससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि राहुल गांधी के दौरे को लेकर पार्टी स्तर पर असमंजस और संगठनात्मक कमजोरी बनी हुई है। यह खास इसलिए भी था क्योंकि नालंदा दौरा इस साल का राहुल गांधी का पांचवां बिहार दौरा होता।
दलित और अति पिछड़ा वोट बैंक को साधने की रणनीति पर असर
राहुल गांधी का यह दौरा दलित-अति पिछड़ा वर्ग (Dalit-EBC Vote Bank) को केंद्र में रखकर तैयार किया गया था। बिहार की सामाजिक संरचना में 63% ओबीसी और ईबीसी वोटर हैं, जिनमें से कांग्रेस अपनी खोई जमीन फिर से पाना चाहती है। इसी रणनीति के तहत राहुल गांधी ने हाल ही में राजेश राम को बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया, जो दलित वर्ग से आते हैं।
2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन मात्र 19 सीटों पर सफलता मिली। महागठबंधन (महागठबंधन में RJD, VIP, CPI-M शामिल) में रहते हुए कांग्रेस खुद को सीमित महसूस कर रही है। ऐसे में राहुल गांधी का बार-बार बिहार आना इस बात का संकेत था कि पार्टी इस बार सीट शेयरिंग से पहले अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि नालंदा दौरा पूरी तरह रद्द नहीं बल्कि टाल दिया गया है। अगले कुछ दिनों में नया कार्यक्रम तय किया जाएगा और फिर से राहुल गांधी का आगमन होगा।