बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, राज्य की राजनीति में हलचल और गहराती जा रही है। विपक्षी महागठबंधन अब भी अपने अंदरूनी समीकरणों को अंतिम रूप नहीं दे पाया है, खासकर सीट बंटवारे को लेकर स्थिति लगातार पेचीदा बनी हुई है।
महागठबंधन में शामिल प्रमुख दलों — राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस, लेफ्ट पार्टियों और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) — के बीच अब तक स्पष्ट सहमति नहीं बन पाई है। हाल ही में पटना स्थित सदाकत आश्रम में एक अहम बैठक हुई थी, जिसमें कांग्रेस ने अगुवाई की। बैठक में RJD ने अपना सीट बंटवारे का प्रस्ताव रखा, लेकिन इस पर ठोस चर्चा नहीं हो सकी।
RJD का दबदबा और 135 सीटों की मांग
सूत्रों के मुताबिक, आरजेडी विधानसभा की कुल 243 सीटों में से 135 सीटों पर दावा कर रही है। पार्टी चाहती है कि उसकी भूमिका गठबंधन में सबसे बड़ी और निर्णायक बनी रहे। तेजस्वी यादव की अगुवाई में आरजेडी खुद को स्वाभाविक नेतृत्वकर्ता मानती है और इसी आधार पर अधिकतम सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है।
Congress की असमंजस में स्थिति
कांग्रेस पर सबसे अधिक दबाव है। पिछली बार के चुनाव में पार्टी ने 70 सीटों पर दावेदारी की थी, लेकिन इस बार सूत्रों के अनुसार उसे 42 से 55 सीटों का ही प्रस्ताव मिल सकता है। ऐसे में पार्टी के भीतर असंतोष पनप रहा है। पार्टी का यह भी कहना है कि यदि वह आरजेडी के नेतृत्व में चुनाव लड़ती है, तो सम्मानजनक सीटों की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए।
VIP और लेफ्ट पार्टियों की नाराज़गी
विकासशील इंसान पार्टी को 15+3 सीटों का प्रस्ताव मिला है, जिसमें ‘+3’ के फॉर्मूले को लेकर अभी स्पष्टता नहीं है। VIP ने पिछली बार एनडीए के साथ मिलकर 11 सीटों पर चुनाव लड़ा था और इस बार गठबंधन बदलने के बावजूद उसे कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा। वहीं लेफ्ट पार्टियां — खासकर माले (CPI-ML), सीपीआई और सीपीएम — भी सीटों को लेकर असंतुष्ट हैं। माले बिहार में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन कर रही है और 30 सीटों की मांग कर रही है, लेकिन महागठबंधन ने उन्हें कुल मिलाकर 23 से 25 सीटें देने की बात कही है। इससे उनके कार्यकर्ताओं में नाराज़गी बढ़ सकती है।
RJD की ‘25 रिजर्व सीटों’ की रणनीति
दिलचस्प बात यह है कि आरजेडी ने लगभग 25 सीटें फिलहाल रिजर्व रखी हैं। सूत्रों की मानें तो यह सीटें उन संभावित उम्मीदवारों और छोटे दलों के लिए बचाकर रखी गई हैं, जो चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन में शामिल हो सकते हैं। इस रणनीति से बाकी सहयोगी दल खुद को हाशिए पर महसूस कर रहे हैं।
महागठबंधन फिलहाल नेतृत्व, रणनीति और सीट शेयरिंग के स्पष्ट फॉर्मूले के अभाव में भ्रम की स्थिति में है। यदि जल्द ही सभी दलों के बीच आपसी सहमति नहीं बनती, तो इसका सीधा असर गठबंधन की एकता और चुनावी प्रदर्शन पर पड़ सकता है। आरजेडी की अगुवाई में चल रही यह कवायद तभी सफल हो सकती है जब सभी घटक दलों को बराबरी का सम्मान और संतुलन मिल सके।