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बदायूं: आस्‍था का संगम है खितौरा का यह प्राचीन मंदिर, सुबह से ही लगती है भक्‍तों की लाइन

बदायूं के सहसवान क्षेत्र के गांव खितौरा के प्राचीन तीन देवियो के मंदिर का संगम देवी भक्तों की अटूट श्रद्धा का केंद्र है। सैकड़ों साल पुराने इन तीन देवियों के मंदिर पर हर साल नवरात्रो पर भक्तों की भारी भीड़ रहती है।

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Manoj Verma
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खितौरा गांव के ऐतिहासिक देवी मंदिर का फाइल फोटो Photograph: (self)

बदायूं, वाईबीएन नेटवर्क

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बदायूं के सहसवान क्षेत्र के गांव खितौरा के प्राचीन तीन देवियो के मंदिर का संगम देवी भक्तों की अटूट श्रद्धा का केंद्र है। सैकड़ों साल पुराने इन तीन देवियों के मंदिर पर हर साल नवरात्रो पर भक्तों की भारी भीड़ रहती है। नवरात्र भर जहां पैर रखने की जगह नहीं होती तो आज रामनवमी पर भी दूर-दराज से श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामना पूरी होने की आस्‍था से यहां पहुंचते हैं। 

तीनों देवियों ने सपने में बताया था कि हम यहां हैं

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खितौरा गांव के मंदिर में विराजमान तीनों देवी Photograph: (self)
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खितौरा गांव के सैकडों साल पुराने इन तीन देवियों के मंदिर पर हर साल नवरात्रो पर भक्तों की भारी भीड़ जुटती हैं। यहां पर जरीफनगर के गांव कादराबाद बुलंदशहर के कर्णवास व अलीगढ़ के बैलोन की प्रसिद्ध देवी पीठ का संगम है। हालांकि तीनों देवी कितने सालों से यहां विराजमान हैं, इसका कोई ऐतहासिक प्रमाण नहीं है। मगर, गांव वालों का मानना है कि खितौरा के ठाकुर स्व.डंंबर सिंह को एक रात तीन देवियों ने स्वप्न दिया कि वह एक पुराने कुआं में हैं। उनको निकालो तब भक्तो का लाभ होगा। सुबह उठकर उन्होंने ग्रामीणों को यह बात बताई तब सभी अचंभित रह गए ।किसी को विश्वास नही हुआ कि यह सपना सच हो सकता है। सपने के अनुसार सभी लोगो ने कुएं की खोदाई शुरू कर दी लेकिन दो दिनों तक कुछ भी हाथ नही आया । उत्सुक लोग मायूस हो चले। सभी लोग सपने को झूठा मानकर घर लौटने वाले थे कि अचानक दो मूर्तियां नजर आ गईंं।इसके बाद पूरे गांव में हर्ष की लहर दौड गई। इसके बाद उसी जमीन पर मंदिर बना दिया गया। 


आषाढ़ में लगती देवी की जात

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हिंदी महीने के आषाढ महीने के शुक्ल पक्ष में देवी मंदिर पर लाखों श्रद्धालु देवियों के दर्शन कर जात लगाते हैं। मैया का पूरी साज सज्जा के साथ श्रंगार कर नारियल भेंट किए जाते हैं। इन दिनों मंदिर परिसर में भारी मेला लगता है। इसके साथ ही लगातार यहां धार्मिक अनुष्‍ठान होते रहते हैं, समय-समय पर भंडारे और हवन पूजन के साथ कीर्तन भी होते हैं। 

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