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बांग्लादेश से आने वाले इन सामानों पर लगा प्रतिबंध, क्या आम आदमी पर होगा असर?

भारत ने बांग्लादेश से कुछ जूट उत्पादों के आयात पर सख्त प्रतिबंध लगाया है। अब जूट कपड़े, रस्सी और बोरियां सिर्फ मुंबई के न्हावा शेवा बंदरगाह से ही आएंगी। यह फैसला भारतीय जूट उद्योग को बचाने और अवैध व्यापार रोकने के लिए लिया गया है।

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Ajit Kumar Pandey
बांग्लादेश से आने वाले इन सामानों पर लगा प्रतिबंध, जानें क्या आम आदमी पर होगा असर? | यंग भारत न्यूज

बांग्लादेश से आने वाले इन सामानों पर लगा प्रतिबंध, जानें क्या आम आदमी पर होगा असर? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।भारत सरकार ने पड़ोसी देश बांग्लादेश से आने वाले कुछ जूट उत्पादों के आयात पर 11 अगस्त 2025 को सख्त प्रतिबंध लगा दिए हैं। सोमवार को एक नई अधिसूचना के अनुसार, ब्लीचड और बिना ब्लीचड जूट कपड़े, जूट की रस्सी, सुतली और बोरी जैसे सामान अब भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित किसी भी बंदरगाह से आयात नहीं किए जा सकेंगे। हालांकि, इन सामानों का आयात केवल मुंबई के न्हावा शेवा बंदरगाह के माध्यम से ही किया जा सकेगा। यह फैसला भारतीय जूट उद्योग को मजबूती देने और व्यापार में पारदर्शिता लाने के मकसद से लिया गया है।

सरकार के इस अचानक लिए गए फैसले ने जूट उद्योग से जुड़े लोगों में हलचल मचा दी है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) द्वारा जारी अधिसूचना (Notification No. 24/2025-26) में साफ तौर पर कहा गया है कि कुछ खास जूट उत्पादों को आयात करने के लिए अब सिर्फ समुद्री मार्ग का ही इस्तेमाल किया जाएगा। यह कदम क्यों उठाया गया और इसका असर भारत के जूट व्यापारियों और किसानों पर क्या होगा, यह जानना बेहद जरूरी है। आइए, इस पूरी खबर को विस्तार से समझते हैं।

बांग्लादेश से जूट आयात पर क्यों लगा प्रतिबंध?

भारत लंबे समय से बांग्लादेश से जूट उत्पादों का आयात करता रहा है। लेकिन, हाल के वर्षों में सीमा पार व्यापार में कई तरह की अनियमितताएं सामने आई हैं। सरकार का मानना है कि इस तरह की सख्ती से न केवल तस्करी और अवैध व्यापार पर रोक लगेगी, बल्कि भारतीय जूट उद्योग को भी सुरक्षा मिलेगी। जूट एक महत्वपूर्ण कृषि उपज है और भारत में लाखों किसान और श्रमिक इससे जुड़े हुए हैं। सस्ते आयात के कारण अक्सर भारतीय उत्पादों को बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। इस प्रतिबंध का उद्देश्य घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना और हमारे किसानों की आजीविका सुरक्षित करना है।

क्या बदलेगा व्यापार का तरीका?

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अब तक, बांग्लादेश से जूट के सामान अक्सर सड़क मार्ग से सीमावर्ती राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के बंदरगाहों के माध्यम से आते थे। यह प्रक्रिया आसान और कम खर्चीली थी। लेकिन, नए नियमों के मुताबिक अब सारे आयातित जूट उत्पाद सिर्फ मुंबई के न्हावा शेवा बंदरगाह से ही लाए जा सकेंगे। इसका मतलब है कि अब व्यापारियों को लंबी समुद्री यात्रा और मुंबई से देश के भीतर सामान भेजने की अतिरिक्त लागत वहन करनी पड़ेगी।

आम आदमी पर क्या होगा असर?

क्या इस फैसले से जूट के सामान महंगे हो जाएंगे? यह एक अहम सवाल है। शुरुआत में परिवहन लागत बढ़ने के कारण आयातित जूट उत्पादों की कीमतों में मामूली वृद्धि हो सकती है। हालांकि, सरकार का मानना है कि यह कदम लंबे समय में घरेलू जूट उद्योग को मजबूत करेगा, जिससे अंततः उपभोक्ताओं को लाभ मिलेगा। भारत में बनने वाले जूट के सामान की गुणवत्ता और उपलब्धता में सुधार होगा, जो आयात पर निर्भरता को कम करेगा।

नए नियमों के मुख्य बिंदु

प्रभावित उत्पाद: ब्लीचड और बिना ब्लीचड जूट के बुने हुए कपड़े, जूट के धागे, सुतली, रस्सी और जूट की बोरियां।

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प्रतिबंध: भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित किसी भी भूमि बंदरगाह से आयात पर रोक।

एकमात्र मार्ग: अब केवल मुंबई के न्हावा शेवा समुद्री बंदरगाह से ही आयात की अनुमति।

उद्देश्य: भारतीय जूट उद्योग को समर्थन देना और अवैध व्यापार पर अंकुश लगाना।

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यह फैसला भारत सरकार की "आत्मनिर्भर भारत" नीति के अनुरूप है, जिसका लक्ष्य देश को सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाना है। जूट उद्योग में भारत का इतिहास बहुत समृद्ध रहा है और इस तरह के कदम से इसे पुनर्जीवित करने में मदद मिल सकती है। हालांकि, व्यापारियों को नए नियमों के साथ तालमेल बिठाने में कुछ समय लग सकता है।

इस फैसले का असर आने वाले दिनों में दिखने लगेगा। सरकार की नजर इस बात पर होगी कि क्या यह कदम वाकई जूट उद्योग के लिए फायदेमंद साबित होता है। व्यापारियों और उद्योग संघों की ओर से भी इस फैसले पर प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कुछ लोग इसे सही कदम बता रहे हैं, जबकि कुछ लोग लागत बढ़ने की चिंता जता रहे हैं। लेकिन, एक बात तो तय है कि अब भारत-बांग्लादेश के बीच जूट व्यापार का चेहरा पूरी तरह बदल जाएगा।

यह बदलाव न केवल आर्थिक बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। सरकार का यह कदम साफ संदेश देता है कि वह घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।

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