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India का 'दुबई' कनेक्शन : क्या चीन का विकल्प बन रहा है UAE? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । भारतीय कंपनियों का दुबई की ओर अचानक बढ़ता रुझान व्यापार जगत में एक नई हलचल पैदा कर रहा है। जहां एक तरफ देश में विदेशी निवेश तेजी से बढ़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ टाटा से लेकर लेंसकार्ट तक जैसी भारतीय दिग्गज कंपनियां अपनी जड़ें यूएई में जमा रही हैं। क्या दुबई सिर्फ एक नया व्यापारिक ठिकाना है, या यह भारत की चीन पर निर्भरता कम करने की एक रणनीतिक चाल है? इस बदलाव के पीछे के चौंकाने वाले कारणों को जानना दिलचस्प होगा।
भारतीय कंपनियों के लिए दुबई का आकर्षण लगातार बढ़ रहा है। बीते कुछ सालों में भारत और यूएई के बीच का व्यापार 100 अरब डॉलर के पार पहुंच गया है, जो एक बड़ा रिकॉर्ड है। यह वही समय है जब चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 100 अरब डॉलर के करीब पहुंच चुका है। यही कारण है कि भारतीय कंपनियों के लिए दुबई चीन की जगह एक सुरक्षित और फायदेमंद ठिकाना बनता जा रहा है। ‘मेक इन अमीरात और मेक फॉर वर्ल्ड’ का नारा सिर्फ यूएई का नहीं, बल्कि भारतीय कंपनियों का भी बन गया है।
क्यों बदल रही है भारत की व्यापार नीति?
चीन के साथ व्यापार में भारत को लगातार घाटा हो रहा है। 128 अरब डॉलर के कुल व्यापार में भारत का व्यापार घाटा करीब 100 अरब डॉलर का है। दूसरी ओर, यूएई के साथ 100 अरब डॉलर से अधिक के व्यापार में यह घाटा सिर्फ 30 अरब डॉलर से कम है। यह एक साफ संकेत है कि यूएई के साथ व्यापार करना भारत के लिए आर्थिक रूप से ज्यादा फायदेमंद है। दोनों देशों के बीच हुए व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) ने इस बदलाव को और भी गति दी है।
भारतीय कंपनियों को क्या खींच रहा है दुबई की ओर?
दुबई में व्यापार करने के कई फायदे हैं जो भारतीय कंपनियों को लुभा रहे हैं।
फ्री ट्रेड ज़ोन्स: यूएई में 40 से अधिक फ्री ट्रेड ज़ोन्स हैं, जिनमें करीब 2,00,000 कंपनियां काम कर रही हैं। यहां टैक्स में छूट, विदेशियों के लिए 100% स्वामित्व और आसान व्यापारिक नियम भारतीय कंपनियों को आकर्षित करते हैं। भारत में मौजूद 276 स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन्स (SEZ) की तुलना में यह कहीं बेहतर है।
रणनीतिक स्थान: दुबई का मध्य पूर्व, अफ्रीका और यूरोप के बाजारों तक सीधी पहुंच प्रदान करना इसे एक वैश्विक व्यापार केंद्र बनाता है। यहां से भारतीय कंपनियां अपने उत्पादों को दुनिया के कोने-कोने तक आसानी से पहुंचा सकती हैं।
बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर: दुबई का विश्व स्तरीय पोर्ट, हवाई अड्डे और आधुनिक लॉजिस्टिक्स सुविधाएं व्यापार को आसान बनाती हैं।
सरकार का सहयोग: यूएई सरकार 'मेक इन अमीरात' जैसे अभियानों के जरिए विदेशी कंपनियों को अपने यहां निवेश के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
कौन-कौन सी कंपनियां दुबई में जमा रही हैं जड़ें?
भारतीय कंपनियों ने दुबई को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है। टाटा समूह, डाबर और लेंसकार्ट जैसी बड़ी कंपनियां पहले से ही यूएई में सक्रिय हैं। टाटा स्टील मिडिल ईस्ट और ताज एक्सोटिका जैसे उनके वेंचर्स यहां मजबूती से स्थापित हैं।
वहीं, हिमालय वेलनेस, इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता ओमेगा सेकी मोबिलिटी (ओएसएम), स्विच मोबिलिटी और जिंदल जैसी कंपनियां भी यूएई में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स लगाने की योजना बना रही हैं। ओमेगा सेकी मोबिलिटी के संस्थापक उदय नारंग के मुताबिक, "हम यूएई को खाड़ी क्षेत्र में विस्तार के लिए अपने प्राथमिक केंद्र के रूप में स्थापित कर रहे हैं।"
क्या है चीन से कनेक्शन?
भारतीय कंपनियों का यूएई की तरफ शिफ्ट होना चीन के लिए एक सीधी चुनौती है। जहां चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है, वहीं यूएई के साथ व्यापार संतुलन बेहतर हो रहा है। यूएई चीन की तुलना में राजनीतिक रूप से भी ज्यादा स्थिर और व्यापार के अनुकूल माहौल प्रदान करता है।
कई भारतीय कंपनियां अब चीन के बजाय यूएई को अपनी सप्लाई चेन का हिस्सा बना रही हैं। इससे भारत की चीन पर निर्भरता कम हो रही है, और यह देश के लिए रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यह सिर्फ व्यापारिक फैसला नहीं, बल्कि एक भू-राजनीतिक बदलाव का भी हिस्सा है।
क्या यूएई भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनेगा?
जिस तरह से भारत और यूएई के बीच व्यापार और निवेश बढ़ रहा है, यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले सालों में यूएई भारत के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार बन सकता है। भारतीय कंपनियों का दुबई में ठिकाना बनाना सिर्फ एक शुरुआत है। यह बदलाव भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे सकता है और उसे वैश्विक पटल पर और मजबूत बना सकता है।
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