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DABUR COLGATE HINDI NEWS
भारत की दो दिग्गज उपभोक्ता उत्पाद कंपनियां, डाबर इंडिया लिमिटेड और कोलगेट-पामोलिव, एक बार फिर कानूनी अखाड़े में आमने-सामने हैं। इस बार विवाद का केंद्र है फ्लोराइड-युक्त टूथपेस्ट, जिसके बारे में डाबर के विज्ञापनों में किए गए दावों को कोलगेट ने भ्रामक और अपनी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाला बताया है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में डाबर को अपने दावों के समर्थन में वैज्ञानिक सबूत पेश करने का आदेश दिया है। यह मामला न केवल दोनों कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा को उजागर करता है, बल्कि उपभोक्ताओं के बीच फ्लोराइड के उपयोग को लेकर भ्रम और जागरूकता जैसे मुद्दों को भी सामने लाता है। इस लेख में हम इस विवाद के हर पहलू, इसके इतिहास, कानूनी पक्ष, और इसके व्यापक प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
विवाद की शुरुआत: डाबर के विज्ञापन और कोलगेट की आपत्ति
Latest Business News | business update : 11 अप्रैल 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस अमित बंसल की एकल पीठ ने डाबर इंडिया लिमिटेड को निर्देश दिया कि वह अपने उन विज्ञापनों में किए गए दावों को वैज्ञानिक आधार पर सिद्ध करे, जिनमें फ्लोराइड-युक्त टूथपेस्ट को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया गया है।
डाबर ने अपने एक प्रचार अभियान में दावा किया था कि फ्लोराइड के उपयोग से बच्चों का बौद्धिक स्तर (IQ) कम हो सकता है, हड्डियां कमजोर हो सकती हैं, दांतों पर धब्बे पड़ सकते हैं, और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
यह मामला तब और गंभीर हो गया जब कोलगेट-पामोलिव ने इन विज्ञापनों को भ्रामक और अपनी व्यावसायिक छवि को नुकसान पहुंचाने वाला करार देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
कोलगेट का कहना है कि डाबर का यह अभियान न केवल फ्लोराइड-युक्त टूथपेस्ट की पूरी श्रेणी को बदनाम करता है, बल्कि परोक्ष रूप से कोलगेट के उत्पादों को निशाना बनाता है, जो भारत में टूथपेस्ट बाजार में अग्रणी हैं। कोलगेट ने विशेष रूप से डाबर के उस प्रिंट विज्ञापन पर आपत्ति जताई, जो वर्ल्ड ओरल हेल्थ डे के मौके पर टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित हुआ था।
इस विज्ञापन की टैगलाइन थी, "क्या आपके पसंदीदा टूथपेस्ट में फ्लोराइड है?" कोलगेट का तर्क है कि यह टैगलाइन उनके उत्पादों पर अप्रत्यक्ष हमला है, क्योंकि उसी दिन कोलगेट ने अपने फ्लोराइड-युक्त टूथपेस्ट का प्रचार किया था।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है, और मामले की अगली सुनवाई 27 मई 2025 को निर्धारित की गई है। इस बीच, यह विवाद उपभोक्ताओं, स्वास्थ्य विशेषज्ञों, और उद्योग विश्लेषकों के बीच चर्चा का विषय बन गया है।
क्या है फ्लोराइड का विज्ञान
फ्लोराइड एक खनिज है, जिसे दांतों की सड़न (डेंटल कैरीज) को रोकने के लिए दशकों से टूथपेस्ट में इस्तेमाल किया जाता रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), अमेरिकन डेंटल एसोसिएशन (ADA), और भारत की स्वास्थ्य संस्थाओं सहित कई वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों ने फ्लोराइड के नियंत्रित उपयोग को सुरक्षित और प्रभावी माना है।
टूथपेस्ट में फ्लोराइड की मात्रा आमतौर पर 1000-1500 पार्ट्स पर मिलियन (ppm) तक सीमित होती है, जो दांतों के इनेमल को मजबूत करने और बैक्टीरिया के हमले से बचाने में मदद करती है।
कोलगेट ने अपने तर्क में यही बात दोहराई कि वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों ने फ्लोराइड के नियंत्रित उपयोग को मंजूरी दी है। कंपनी ने कहा कि डाबर का अभियान उपभोक्ताओं में भय और भ्रम पैदा करता है, जिससे न केवल कोलगेट बल्कि पूरी टूथपेस्ट इंडस्ट्री की विश्वसनीयता पर सवाल उठता है। कोलगेट ने यह भी तर्क दिया कि डाबर का अभियान प्रतिस्पर्धी उत्पादों की तुलना करने के बजाय फ्लोराइड-युक्त टूथपेस्ट की पूरी श्रेणी को निशाना बनाता है, जो अनुचित व्यापार प्रथाओं का उदाहरण है।
दूसरी ओर, डाबर ने अपने बचाव में कहा कि उनके विज्ञापन वैज्ञानिक अध्ययनों पर आधारित हैं, जो फ्लोराइड के अत्यधिक उपयोग से होने वाले संभावित जोखिमों को उजागर करते हैं।
डाबर ने यह भी घोषणा की कि वह अपने विज्ञापनों से "पसंदीदा" शब्द हटा देगा, ताकि यह किसी विशेष ब्रांड पर हमला न माना जाए। हालांकि, कंपनी ने अपने अभियान को पूरी तरह वापस लेने से इनकार किया और कहा कि उपभोक्ताओं को फ्लोराइड के संभावित दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करना उनका अधिकार है।
डाबर और कोलगेट में पहले भी हुए हैं टकराव
यह पहली बार नहीं है जब डाबर और कोलगेट कानूनी रूप से एक-दूसरे के सामने आए हैं। 2019 में दिल्ली हाईकोर्ट ने डाबर को अपने उन विज्ञापनों में बदलाव करने का आदेश दिया था, जो कोलगेट की पैकेजिंग की नकल करते पाए गए थे।
उस समय डाबर ने अपने विज्ञापनों में दृश्यात्मक बदलाव किए और विवाद को सुलझा लिया। लेकिन इस बार का मामला अधिक जटिल है, क्योंकि यह न केवल दोनों कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा का सवाल है, बल्कि फ्लोराइड जैसे वैज्ञानिक मुद्दे पर उपभोक्ताओं की धारणा को प्रभावित करने का भी मामला है।
कोलगेट, जो दशकों से भारत में टूथपेस्ट बाजार का नेतृत्व कर रहा है, अपनी विश्वसनीयता और वैज्ञानिक आधार पर जोर देता है। दूसरी ओर, डाबर, जो आयुर्वेदिक और प्राकृतिक उत्पादों के लिए जाना जाता है, उपभोक्ताओं के बीच "प्राकृतिक और सुरक्षित" विकल्पों की छवि को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
यह विवाद इस बात का भी उदाहरण है कि कैसे कंपनियाँ विज्ञापन के माध्यम से उपभोक्ताओं की भावनाओं और धारणाओं को प्रभावित करने की रणनीति अपनाती हैं।
कानून और नैतिकता पर उठे सवाल
यह मामला कई कानूनी और नैतिक सवाल उठाता है। पहला सवाल यह है कि क्या डाबर के विज्ञापन वास्तव में भ्रामक हैं? विज्ञापन में किए गए दावे यदि वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं हो पाते, तो यह उपभोक्ता संरक्षण कानूनों का उल्लंघन माना जा सकता है।
दूसरा सवाल यह है कि क्या कंपनियां अपने प्रतिस्पर्धियों के उत्पादों की पूरी श्रेणी को निशाना बनाने का अधिकार रखती हैं? कोलगेट का तर्क है कि डाबर का अभियान अनुचित व्यापार प्रथाओं के दायरे में आता है, क्योंकि यह उनकी बाजार स्थिति को नुकसान पहुंचाता है।
नैतिक दृष्टिकोण से, यह मामला उपभोक्ताओं के सूचनाओं तक पहुंचने के अधिकार और कंपनियों की जिम्मेदारी के बीच संतुलन का सवाल उठाता है। एक ओर, डाबर का कहना है कि वह उपभोक्ताओं को संभावित जोखिमों के बारे में जागरूक कर रहा है।
दूसरी ओर, कोलगेट का मानना है कि इस तरह के दावे बिना ठोस सबूतों के उपभोक्ताओं में भय पैदा करते हैं और वैज्ञानिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं।
उपभोक्ताओं को सतर्क रहने की जरूरत
यह विवाद उपभोक्ताओं के लिए कई सवाल खड़े करता है। क्या फ्लोराइड वास्तव में हानिकारक है? क्या उन्हें अपने टूथपेस्ट का चयन बदलना चाहिए? विशेषज्ञों का कहना है कि फ्लोराइड का नियंत्रित उपयोग दांतों की सड़न को रोकने में प्रभावी है, लेकिन अत्यधिक मात्रा में इसका सेवन नुकसानदायक हो सकता है।
उदाहरण के लिए, फ्लोराइड की अधिकता से डेंटल फ्लोरोसिस (दांतों पर धब्बे) जैसी समस्याएं हो सकती हैं, लेकिन यह आमतौर पर उन क्षेत्रों में देखा जाता है जहां पानी में फ्लोराइड की मात्रा प्राकृतिक रूप से बहुत अधिक होती है।
उपभोक्ताओं के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि टूथपेस्ट में फ्लोराइड की मात्रा सख्ती से नियंत्रित होती है। भारत में ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत टूथपेस्ट को कॉस्मेटिक उत्पाद माना जाता है, और इसकी सामग्री को भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार जांचा जाता है।
इसलिए, उपभोक्ताओं को विज्ञापनों के दावों पर आँख मूंदकर भरोसा करने के बजाय वैज्ञानिक जानकारी और विशेषज्ञों की सलाह पर ध्यान देना चाहिए।
दिग्गज कंपनियों के आपसी तकरार से उद्योग पर प्रभाव
यह विवाद न केवल डाबर और कोलगेट के बीच की लड़ाई है, बल्कि यह पूरे टूथपेस्ट उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है। भारत में टूथपेस्ट बाजार करीब 12,000 करोड़ रुपये का है, जिसमें कोलगेट की हिस्सेदारी लगभग 50% है। डाबर, जो हाल के वर्षों में अपने आयुर्वेदिक टूथपेस्ट के साथ बाजार में अपनी पैठ बढ़ा रहा है, कोलगेट जैसे स्थापित ब्रांडों के लिए चुनौती बन रहा है।
इस विवाद का परिणाम अन्य कंपनियों के लिए भी एक मिसाल कायम कर सकता है। यदि डाबर अपने दावों को सिद्ध करने में असफल रहता है, तो यह भविष्य में विज्ञापन रणनीतियों पर सख्ती बरतने का कारण बन सकता है। दूसरी ओर, यदि डाबर वैज्ञानिक सबूत पेश करने में सफल होता है, तो यह फ्लोराइड-मुक्त टूथपेस्ट की मांग को बढ़ा सकता है, जिसका असर पूरे उद्योग पर पड़ेगा।
दिल्ली हाईकोर्ट का अंतिम फैसला इस विवाद को एक निश्चित दिशा देगा। यदि कोर्ट डाबर के दावों को भ्रामक पाता है, तो कंपनी को अपने विज्ञापन अभियान में बड़े बदलाव करने पड़ सकते हैं।
इसके अलावा, कोलगेट को नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजे की मांग करने का भी अधिकार होगा। दूसरी ओर, यदि डाबर अपने दावों को सिद्ध कर देता है, तो यह फ्लोराइड-युक्त टूथपेस्ट के उपयोग पर नए सवाल खड़े करेगा और उपभोक्ताओं के बीच प्राकृतिक और आयुर्वेदिक उत्पादों की मांग को बढ़ावा देगा।
इसके अलावा, यह मामला विज्ञापन नियामक संस्थाओं, जैसे कि एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI), के लिए भी एक सबक हो सकता है। ASCI पहले ही भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ सख्त दिशानिर्देश जारी कर चुका है, और इस मामले का परिणाम इन नियमों को और मजबूत करने का कारण बन सकता है।
यह दो कंपनियों की लड़ाई नहीं है...
डाबर और कोलगेट के बीच फ्लोराइड टूथपेस्ट को लेकर चल रहा विवाद केवल दो कंपनियों की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह उपभोक्ता जागरूकता, वैज्ञानिक विश्वसनीयता, और व्यावसायिक नैतिकता का एक जटिल मसला है। दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला न केवल इस विवाद को सुलझाएगा, बल्कि भविष्य में विज्ञापन रणनीतियों और उपभोक्ता उत्पादों की विश्वसनीयता पर भी गहरा प्रभाव डालेगा।
उपभोक्ताओं के लिए यह चेतावनी
उपभोक्ताओं के लिए यह एक अवसर है कि वे अपने उत्पादों का चयन सोच-समझकर करें और विज्ञापनों के दावों को वैज्ञानिक तथ्यों की कसौटी पर परखें। वहीं, उद्योग के लिए यह एक चेतावनी है कि प्रतिस्पर्धा में नैतिकता और पारदर्शिता को प्राथमिकता देनी होगी। इस मामले का अंतिम परिणाम चाहे जो हो, यह निश्चित रूप से भारत के उपभोक्ता बाजार और स्वास्थ्य जागरूकता के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ेगा।