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"म्याऊ-म्याऊ" के धंधे में उतरी डी कंपनी, मप्र में मिले निशान

मप्र से एक ऐसा मामला सामने आया जिसने पुलिस की नींद उड़ाकर रख दी। एक कारखाने पर शिकंजा कसने के बाद पुलिस को पता लगा है कि दाऊद इब्राहिम का गिरोह फिलहाल "म्याऊ-म्याऊ" के धंधे में उतर गया है।

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Shailendra Gautam
Dawood Ibrahim, India Pakistan War

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः  अस्सी के दशक में मुंबई के माफिया में एक नाम तेजी से उभरा। वो था डोगरी के दाऊद इब्राहिम कासकर का। एक बार उसने करीम लाला गैंग की रीढ़ तोड़ी तो वह कांट्रेक्ट किलिंग के साथ अवैध कब्जे और तस्करी के धंधे में पूरी तरह से उतर गया। हालांकि मुंबई बम धमाकों के बाद दाऊद ने मुंबई छोड़ दी। वो भारत से बाहर निकल गया लेकिन उसके कारनामे सुनकर पुलिस परेशान रही। वो भारत के बाहर रहकर जरायम को बखूबी कंट्रोल कर रहा था। पुलिस को अक्सर यही खबर मिलती थी कि वो पैसे लेकर लोगों को मरवाने के साथ जमीनों पर कब्जे करने का काम कर रहा है। लेकिन मप्र से एक ऐसा मामला सामने आया जिसने पुलिस की नींद उड़ाकर रख दी। एक कारखाने पर शिकंजा कसने के बाद पुलिस को पता लगा है कि दाऊद इब्राहिम का गिरोह फिलहाल "म्याऊ-म्याऊ" के धंधे में उतर गया है।  

खुफिया एजेंसियों का मानना ​​है कि दाऊद इब्राहिम, सलीम डोला इस्माइल और उम्मेद-उर-रहमान पाकिस्तान और दुबई से मेफेड्रोन के उत्पादन और तस्करी के सबसे लाभदायक रैकेट में से एक में पैसा लगा रहे हैं। इस धंधे को "म्याऊ-म्याऊ" के नाम से जाना जाता है।

भोपाल के जगदीशपुरा गांव में मिली ड्रग फैक्ट्री

दाऊद गैंग के गोरखधंधे का पता तब चला जब 16 अगस्त को राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) ने भोपाल के बाहरी इलाके में बसे जगदीशपुरा गांव में रेड की। मकान नंबर 11 के बंद दरवाजों के पीछे टीम को करोड़ों रुपये की एक सिंथेटिक ड्रग फैक्टरी मिली। ये दाऊद इब्राहिम के सबसे कुख्यात गुर्गों में से एक के इशारे पर चल रही थी।

टीम को मकान के भीतर से 61.20 किलोग्राम तरल मेफेड्रोन (MD) मिला। इसकी कीमत 92 करोड़ है। इसके साथ 541 किलोग्राम रा केमिकल भी मिला, जो पूरे भारत के बाजारों के लिए पर्याप्त था। इस जब्ती ने उजागर किया है कि कैसे डी-कंपनी के जाल मध्य प्रदेश में गहराई तक फैले हुए हैं। डी कंपनी फिलहाल मुंबई से बाहर निकलकर मप्र जैसे सूबे को नशीले पदार्थों के हब में तब्दील कर रही हैं।

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मकान के भीतर का सीन देख हैरान रह गई DRI

जगदीशपुरा स्थित फैक्ट्री में कोई शौकिया सेटअप नहीं था। टीम को मिक्सिंग मशीनें, रासायनिक रिएक्टर और हीट कंट्रोल चेंबर मिले। यह धंधा अशोकनगर निवासी फैसल कुरैशी और उसका सहयोगी विदिशा निवासी रज्जाक खान चला रहा था। फैसल ने गुजरात से फार्मेसी का डिप्लोमा लिया था। सलीम डोला के हुकुम पर भिवंडी और ठाणे से मिनी ट्रकों में भरकर मेथिलीन डाइक्लोराइड, एसीटोन, मोनोमेथिलमाइन, हाइड्रोक्लोरिक एसिड और 2-ब्रोमो जैसे रसायन जगदीशपुर पहुंचे। आरोपियों ने कबूल किया कि 400 किलोग्राम रसायन पहले ही मुंबई से भोपाल भेजे जा चुके थे। ये सारा काम सलीम डोला ने कराया था। 

भिवंडी से मकान नंबर 11 तक पहुंचा था केमिकल

इन लोगों ने स्थानीय निवासियों को भी इसमें शामिल किया था। अजहरुद्दीन इदरीसी को अंजुर फाटा (भिवंडी) से खेप उठाकर मध्य प्रदेश के गांव में पहुंचाने के लिए पैसे देने का वादा किया गया था। यह घर सात साल तक वीरान पड़ा रहा। फिर भी 14 अगस्त को छापे से ठीक दो दिन पहले यहां बिजली का मीटर लगाया गया। अधिकारियों को अब रिश्वतखोरी और मिलीभगत का भी संदेह है, जिसके बिना इतनी हाई-वोल्टेज ड्रग लैब बिना पकड़े नहीं चल सकती थी। टीम जांच कर रही है कि जिन अधिकारियों ने पहले कनेक्शन से इनकार किया था, उन्होंने अचानक हरा की रफ्तार से इसे कैसे मंजूरी दे दी।

एक ही छापे में 100 करोड़ की खेप बरामद

टीम कहती है कि तैयार उत्पाद को मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में उसी नेटवर्क का इस्तेमाल करके भेजा जाना था जिससे रसायनों की तस्करी होती थी। सूरत और मुंबई से 5 और आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, जो डी-गैंग के अधीन काम करने वाले गुर्गे हैं। जानकार कहते हैं कि यह तो झलकी है। एक ही छापे में लगभग 100 करोड़ मूल्य के नशीले पदार्थ जब्त होने से यह डर साफ है कि अंडरवर्ल्ड ने खुद को फिर से गढ़ लिया है। वो गोलियों और खून से केमिकल की ओर बढ़ रहा है।

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सलीम डोला तुर्की से चला रहा ड्रग का नेटवर्क

यह एक गंभीर चेतावनी है कि अंडरवर्ल्ड वास्तव में कभी मरा नहीं, उसने बस अपना व्यवसाय मॉडल बदल दिया। कभी तस्कर इकबाल मिर्ची का राईटहैंड रहा सलीम डोला, मुंबई और गुजरात में डी-कंपनी के पुराने संबंधों का इस्तेमाल करके तुर्की से इस नेटवर्क का संचालन कर रहा है। उसका भतीजा मुस्तफा कुब्बावाला, जिसके खिलाफ इंटरपोल ने रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया है, इस धंधे में उसका दाहिना हाथ है।

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