नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः हत्या के मामले में संदिग्ध आरोपी को महज इस वजह से उम्र कैद की सजा दे दी गई, क्योंकि जिस हथियार से हत्या हुई थी उस पर उसका खून लगा था। ट्रायल कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद माना था कि हथियार पर लगा खून एक अहम साक्ष्य है। कोर्ट ने आरोपी को उम्र कैद की सजा 2008 में दे डाली। दोषी ने हाईकोर्ट का रुख किया। उसे राहत मिली पर फाइनल इंसाफ 17 साल बाद तब मिला जब सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगाई।
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि किसी को इस वजह से सजा नहीं दी जा सकती, क्योंकि जिस हथियार से कत्ल हुआ उस पर उसका खून लगा था। टाप कोर्ट ने राज नायकर बनाम छत्तीसगढ़ सरकार के अपने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उस मामले में भी इसी तरह के हालात थे। तब भी ये माना गया था कि हथियार पर लगे खून को सजा देने का आधार नहीं बनाया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने दोषी को बाइज्जत बरी कर दिया।
पहले केस था अज्ञात के खिलाफ, फिर पुलिस ने पकड़ा हनुमान को
हत्या का ये मामला 1 और 2 मार्च की दरम्यानी रात का था। एक शख्स छोटू लाल की हत्या राजस्थान में हुई थी। पुलिस को खबर मिली तो आईपीसी की धारा 302 के तहत केस दर्ज करके विवेचना शुरू की गई। पहले मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज किया गया था लेकिन बाद में पुलिस ने हनुमान (दोषी) को गिरफ्तार कर लिया। कुछ समय बाद पुलिस ने उस हथियार को भी बरामद कर लिया जिससे छोटू लाल का कत्ल हुआ था। पुलिस ने हथियार को फारेंसिक लैब में भेजा, क्योंकि उस पर खून लगा हुआ था। लैब ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ये खून हनुमान का था। पुलिस ने अपनी जो थ्योरी बनाई उसमें कहा गया कि छोटू लाल की बीवी पर हनुमान की बुरी नजर थी। लिहाजा उसने उसे पाने के लिए छोटू लाल को मौत के घाट उतार दिया। Judiciary | Indian Judiciary not present in content
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के सिखाया कि कैसे देखे जाते हैं साक्ष्य
ट्रायल कोर्ट ने 2008 में हनुमान को उम्र कैद के साथ 100 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। हनुमान ने फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की तो उसे रिहाई मिल गई। लेकिन सरकार हाईकोर्ट के फैसले से इत्तेफाक नहीं रखती थी। लिहाजा उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 2015 में ही ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। हनुमान के केस की सुनवाई पर फैसला आने में 10 साल लग गए। जस्टिस संदीप मेहता और प्रसन्ना बी वराले ने अपने फैसले में कहा कि ट्रायल कोर्ट का फैसला गलत था। हाईकोर्ट ने फारेंसिक रिपोर्ट को नजरंदाज किया पर उसका फैसला ठीक था। हथियार पर आरोपी का खून मिलने भर से ही उसे दोषी नहीं माना जा सकता।
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