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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः The Indian Express की तेजतर्रार पत्रकार शिवानी भटनागर की जब हत्या होती है तो लोग आश्चर्य चकित हो जाते हैं। हत्या 23 जनवरी 1999 को होती है और पहली अरेस्ट होने तक यानि 30 जुलाई 2002 तक लोग ये मान चुके होते हैं कि ये मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया। साढ़े तीन साल बाद दिल्ली पुलिस जैसे ही पहले आरोपी को अरेस्ट करती है उसके 15 दिनों के भीतर ही देश की राजनीति पूरी तरह से हिल जाती है।
पहले शिवानी के पति राकेश थे पुलिस के निशाने पर
23 जनवरी को जब शिवानी की हत्या होती है तो वो अपने 2 माह के बच्चे के साथ ईस्ट दिल्ली के फ्लैट में अकेली थीं। कोई उनसे मिलने आया था। शिवानी उसे जानती थीं। तभी फ्लैट में फोर्स एंट्री का कोई निशान पुलिस को नहीं मिला। वारदात के बाद पुलिस राजीव नाम के उस शख्स को तलाश कर रही थी जो शिवानी से मिलने उनके फ्लैट में गया था। विजिटर्स रजिस्टर में उसका पता हरियाणा के पंचकूला का दर्ज था। पुलिस ने उस पते और रजिस्टर में दर्ज नंबर को खंगाला लेकिन जैसी की उम्मीद थी दोनों फर्जी निकले। हत्या के वक्त शिवानी के पति राकेश भटनागर अपने दफ्तर में थे। वो शिवानी की तरह से ही पत्रकार थे और टाइम्स आफ इंडिया में काम करते थे। पुलिस ने जब पति पत्नी के रिश्ते को खंगाला तो राकेश भटनागर निशाने पर आ गए।
राकेश ने पुलिस को बताई शिवानी और IPS के रिश्ते की सच्चाई
इसकी वजह ये थी कि राकेश ने खुद माना था कि शिवानी के साथ उनके रिश्ते तनावपूर्ण थे। दोनों के बीच लड़ाई झगड़े यहां तक कि कभी कभार हाथापाई भी हो जाती थी। पुलिस मान चली थी कि केस साल्व होने के कगार पर है। यही वजह थी कि 23 जनवरी के बाद से राकेश को 70 बार इंटेरोगेट किया गया। पुलिस ने हर एंगल से राकेश पर दबाव बनाया कि वो अपना जुर्म कबूल करके शिवानी की हत्या की बात मान लें, क्योंकि शिवानी की हत्या के एंगल में पुलिस को कुछ और दिखाई दे ही नहीं रहा था। राकेश हर बार खुद को बेकसूर बता दिया करते थे। हालांकि एक दिन की पूछताछ में उन्होंने शिवानी से जुड़े कुछ राज पुलिस को बताए। उनका कहना था कि हरियाणा कैडर के आईपीएस रवि कांत शर्मा से शिवानी के अंतरंग संबंध थे। ये संबंध अपनी मर्यादाओं को लांघ चुके थे लेकिन राकेश चुप थे क्योंकि वो बखेड़ा खड़ा नहीं करना चाहते थे।
रविकांत का काल डिटेल खंगाले तो हुआ ब्लास्ट
हालांकि दिल्ली पुलिस ने उनकी बात तो सुनी पर पहले दौर में रविकांत को आरोपी मानने से इन्कार कर दिया। इधर राकेश टूट नहीं रहे थे और उधर पुलिस के हाथ कुछ और लग नहीं पा रहा था। ऐसे में गाल बजा रही पुलिस ने रविकांत को ही अपना निशाना बनाया। चुपचाप आईपीएस के फोन नंबर का पता लगाया गया। फिर उसे सर्विलांस पर लिया गया। दिल्ली पुलिस जब उनके नंबर को खंगाल रही थी तो पता लगा कि जिस दिन शिवानी की हत्या हुई उस दिन रविकांत पुणे में थे। पुलिस लाख हाथ पैर मारकर भी खाली हाथ थी। लेकिन रविकांत के नंबर को बारीकी से खंगाला गया तो कुछ ऐसा पता लगा जो एक बड़े विस्फोट की तरह से थे।
हत्या के दिन रविकांत ने जिनसे बात की उनमें से 1 था शिवानी के घर
जिस दिन रविकांत पुणे में थे उन्होंने चार लोगों से लंबी बात की थी। पुलिस ने चारों नंबरों को सर्विलांस पर लिया तो हैरतअंगेज सच सामने आया। चार में से एक नंबर प्रदीप शर्मा नामके शख्स का था। ये नंबर हत्या वाले दिन दिल्ली के उस पटपड़गंज इलाके में एक्टिव था जहां शिवानी की हत्या हुई थी। पुलिस को अब यकीन हो गया कि हो न हो रविकांत कहीं न कहीं तो इस मामले से जुड़े हैं। पुलिस ने प्रदीप शर्मा को ट्रेस किया। उसे फिजिकली उस सोसायटी में लेकर आया गया जहां शिवानी रहती थी। उस दिन जो गार्ड विजिटर रजिस्टर मैनटेन कर रहा था उसका प्रदीप से आमना सामना कराया गया तो ये साफ हो गया कि प्रदीप ही वो राजीव था जो शादी का कार्ड देने के बहाने शिवानी से मिलने 23 जनवरी को उसके फ्लैट में गया था।
प्रदीप शर्मा के फिंगर प्रिंट कर गए मैच
फारेंसिंक टीम ने फ्लैट के भीतर से जो फिंगर प्रिंट जुटाए थे वो सारे प्रदीप की उंगलियों से मेल खा गए। पुलिस अपनी सफलता पर अचंभित थी। उसके बाद के दौर में पुलिस ने प्रदीप के अलावा श्रीभगवान, सत्यप्रकाश और वेद शर्मा को अरेस्ट किया। शिवानी की हत्या के मामले में पहली अरेस्ट श्रीभगवान की दिखाई गई। ये तारीख 30 जुलाई 2002 की है। फिर पुलिस रविकांत के पीछे पड़ जाती है। रविकांत उस वक्त हरियाणा के डीजी जेल बन चुके थे। रविकांत को जब पता चला कि दिल्ली पुलिस उनके पीछे है तो वो बगैर आफिशियल सूचना दिए गायब हो गए।
रविकांत की पत्नी ने जब लिया प्रमोद महाज का नाम
पुलिस उनको हर हाल में अरेस्ट करने पर आमादा थी। उनको फरार घोषित करते 50 हजार का ईनाम भी घोषित कर दिया गया। तभी ऐसा विस्फोट हुआ जिसने पूरे देश को हिला दिया। रविकांत की पत्नी मधु ने 15 अगस्त को प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि शिवानी की हत्या प्रमोद महाजन ने कराई है। महाजन उस वक्त की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का नंबर तीन का चेहरा माने जाते थे। वो बेहद ताकतवर थे। मधु का कहना था कि शिवानी के बच्चे का डीएनए टेस्ट कराया जाए तो पता चल जाएगा कि शिवानी से उसका कितना गहरा रिश्ता था।
एक दिन के भीतर ही पुलिस ने दे दी महाजन को क्लीन चिट
हालांकि दिल्ली पुलिस ने 16 अगस्त को ही मधु के दावे की हवा निकाल दी। पुलिस ने 16 अगस्त को मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि महाजन का शिवानी की हत्या से कोई लेना देना नहीं है। डीएनए टेस्ट की बात हवा हवाई हो गई। इसके दो दिन बाद ही रविकांत की पत्नी और बेटियों के साथ एक हादसा पेश आता है। यानि दाल में कुछ न कुछ काला नहीं था बल्कि पूरी दाल ही काली थी। रविकांत अरेस्ट से बचने के लिए एंटीसिपेटरी बेल की दरखास्त करते हैं। पर कोर्ट नहीं मानती। आखिरकार वो 27 सितंबर को हरियाणा के अंबाला की कोर्ट में सरेंडर कर देते हैं।
कत्ल हुआ, कातिल भी मिला पर क्यों हुआ ये पता नहीं चला
8 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस आफिशियली मानती है कि रविकांत ने शिवानी की हत्या में हाथ होने की बात कबूल कर ली है। पुलिस चार्जशीट दाखिल करती है और फिर केस का ट्रायल शुरू होता है। 18 मार्च 2008 को ट्रायल कोर्ट रविकांत को दोषी मानकर सजा सुनाती है। उनके साथ बाकी के चारों आरोपियों को उम्र कैद की सजा दी जाती है। लेकिन एक हैरत अंगेज अंदाज में दिल्ली हाईकोर्ट 12 अक्टूबर 2011 को रविकांत और बाकी के 3 आरोपियों को बरी कर देता है। हाईकोर्ट कहता है कि पुलिस ने जिस काल डिटेल को अहम सबूत माना उनमें छेड़छाड़ की गई है। केवल उस प्रदीप शर्मा की सजा बहाल रखी जाती है जिसने शिवानी का कत्ल किया था। यानि कत्ल हुआ, कातिल भी पकड़ा गया अलबत्ता कत्ल क्यों हुआ ये नहीं पता लगा। ट्रायल कोर्ट अपने फैसले में ये बात कहती भी है कि कत्ल क्यों हुआ ये बात उसकी भी समझ में नहीं आई।
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