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DELHI POLICE
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः 5 जुलाई को तकरीबन 50 साल के एक शख्स को NDPS एक्ट के मामले में पटियाला हाउस कोर्ट में पेश होना था। पुलिस की एक टीम उसका बेसब्री से इंतजार कर रही थी। उन्हें यकीन नहीं था कि वह आएगा या नहीं। लेकिन पुलिस का दिन उस दिन अच्छा था। जिसका इंतजार था वो आया। जैसे ही वह कोर्ट परिसर से बाहर निकला, टीम ने से गिरफ्तार कर लिया। जिस अफसर ने उसे पकड़ा उसके चेहरे की चमक बता रही थी कि उसने कोई बड़ा कारनामा करके दिखाया है। trending not present in content
शातिर अजय लांबा को सालों से तलाश रही थी पुलिस
जो हत्थे चढ़ा वह कोई साधारण अपराधी नहीं था। वह अजय लांबा उर्फबंशी था। एक सीरियल किलर जिसकी उन्हें 25 साल से तलाश थी। उसने 1999 और 2001 के बीच दिल्ली और उत्तराखंड में चार टैक्सी ड्राइवरों को लूटा और फिर मार डाला था। पुलिस को उसकी टिप मिली थी बंशी के सहयोगी धीरेंद्र सिंह तोमर से। तोमर पकड़ा गया तो उससे गिरोह के बारे में पूछताछ हुई। उसने पुलिस को बताया कि जिस किलर को पुलिस तलाश कर रही थी वो अजय लांबा है। पुलिस ने उस पर नजर रखना शुरू किया। पता चला कि लांबा अपनी पहचान बदलकर रह रहा है। वो कोर्ट में पेशी के लिए आएगा।
कैब चालकों को बनाता थे निशाना, लाश को फेंकते थे नाले में
डीसीपी (क्राइम ब्रांच) आदित्य गौतम ने बताया कि अजय लांबा उर्फबंशी 2001 में न्यू अशोक नगर पुलिस स्टेशन में दर्ज एक हत्या के मामले में वांछित था। लांबा दिल्ली के कृष्णा नगर में रहता था। उसने छठी कक्षा के बाद स्कूल छोड़ दिया और अपराध की दुनिया में उतर गया। उसे विकासपुरी पुलिस ने 'बंशी' का नाम दिया था। उसने 1996 में अपना नाम बदलकर अजय लांबा रख लिया और यूपी के बरेली चला गया। वहां, दो अन्य लोगों तोमर और दिलीप नेगी के साथ मिलकर उसने सीरियल किलिंग का खौफनाक आपरेशन चलाया। गिरोह टाटा सूमो और टोयोटा क्वालिस जैसी बड़ी कारों को निशाना बनाता था। वे टैक्सी स्टैंड पर पहुंचते और ड्राइवर से उन्हें एक खास जगह पर ले जाने के लिए कहते। रास्ते में उसे क्लोरोफॉर्म से बेहोश करते और फिर उसका गला घोंटकर लाश को नाले में फेंक देते।
नेपाल में जाकर गिरोह बेच देता था कार
गिरोह नेपाल में चोरी की कारों को बेच देता था। 2001 में दिल्ली पुलिस को गिरोह की भनक लगी। उस साल 17 मार्च को न्यू अशोक नगर पुलिस स्टेशन को एक पीसीआर कॉल मिली। कॉलर ने कहा था कि दो लोग मयूर विहार III में एक डंप यार्ड के पास पड़े हैं। उन्हें अस्पताल में ले जाया गया। उनमें से एक कैब चालक की मृत्यु हो गई। पुलिस ने मामला दर्ज किया और उत्तरजीवी नाम के शख्स से पूछताछ की। उत्तरजीवी कैब का एक यात्री निकला। उसने पुलिस को बताया कि चार लोगों ने जयपुर से टैक्सी किराए पर ली थी। लांबा को पुलिस जांच की भनक लगी तो वो 2008 में नेपाल चला गया। 10 साल (2018 तक) वो वहीं रहा। फिर देहरादून में बस गया। 2020 में वो ओडिशा से मारिजुआना की तस्करी करने लगा। 2021 में उसे दिल्ली के सागरपुर पुलिस स्टेशन में NDPS एक्ट के तहत दर्ज एक मामले में गिरफ्तार किया गया था। 2024 में उसे ओडिशा के ब्रह्मपुर में एक ज्वैलरी शॉप डकैती मामले में भी गिरफ्तार किया गया था। वह इन मामलों में जमानत पर था।
लांबा ने तब्दील कर दी थी पहचान, उसके खासमखास ने दी टिप
डीसीपी ने बताया कि पुलिस को लांबा के सीरियल किलर होने पर शक नहीं था। क्योंकि उसने पहचान के दस्तावेजों में अपना और अपने पिता का नाम दोनों बदल दिया था। दिल्ली पुलिस के रिकार्ड 2008-2009 में डिजिटल किए गए थे। उससे पहले के मामले ऑनलाइन नहीं डाले गए थे। तोमर की टिप के बाद पुलिस ने रिकॉर्ड खंगालना शुरू किया। पता चला कि लांबा को हाल ही में दो मामलों में गिरफ्तार किया गया था। वह फरवरी 2025 में ओडिशा डकैती मामले में जमानत पर बाहर आया था। पीछा हुआ तो देहरादून में उसका पता मिला। एक टीम वहां भेजी गई लेकिन वो नहीं मिला। पुलिस ने अदालती दस्तावेजों को स्कैन किया तो पता लगा कि उसे 5 जुलाई को पटियाला हाउस कोर्ट में सुनवाई के लिए पेश होना था। लेकिन एक दिक्कत यहां भी थी। वो अपनी पिछली सुनवाई में शामिल नहीं हुआ था, इसलिए पुलिस को यकीन नहीं था कि वो आएगा या नहीं। एक टीम ने उसके आने का इंतजार किया और जैसे ही वह अदालत परिसर से बाहर निकल रहा था, उसे हिरासत में ले लिया गया।
गिरोह में थे चार सदस्य, एक अभी तक फरार
पुलिस ने कहा कि गिरोह में चार लोग शामिल थे। लांबा, तोमर, दिलीप नेगी और धीरज। नेगी को 2007 और 2008 के बीच गिरफ्तार किया गया था। 2010 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और अभी वो दिल्ली की जेल में बंद है। तोमर को 2001 में गिरफ्तार किया गया था। उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। 2011 में उसने एक महीने की पैरोल के लिए आवेदन किया। बाहर निकला तो वापस नहीं आया। उसे 25 मई को दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया। धीरज अभी तक फरार है।
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