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Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः दो दशक पहले की बात है। एक युवक अपनी मंगेतर के साथ बेंगलुरु में डिनर डेट के लिए निकला था। रात के समय दोनों जब लौट रहे थे तो एयरपोर्ट रोड पर आसमान से नीचे उतरते प्लेंस को देखने की ख्वाहिश मन में जाग गई। दोनों एयर व्यू प्वाइंट पर जा पहुंचे। दोनों खड़े थे कि तभी युवक के सिर पर किसी भारी चीज से वार होता है। वो वहीं दम तोड़ देता है। उसके बाद शुरू होती है पुलिस की जद्दोजहद।
बेंगलुरु की एयरपोर्ट रोड पर हुई थी एक हत्या
गिरीश जिसकी हत्या हुई वो महज 27 साल का था। पेशे से एक साफ्टवेयर इंजीनियर। वो Intel.में काम करता था। मोटी तनख्वाह थी। उसका परिवार उसके लिए दुल्हन की तलाश में था। तभी उन्हें पता चलता है कि जाने माने एडवोकेट शंकरनारायन अपनी बेटी शुभा के लिए रिश्ता तलाश कर रहे हैं। दोनों पड़ोसी थे और एक दूसरे से अच्छी तरह से वाकिफ। शुभा 21 साल की लड़की थी। वो कानून की पढ़ाई कर रही थी। दोनों परिवार मिले और शादी तय कर दी गई। 30 नवंबर 2003 को दोनों की सगाई हो गई। शादी की तारीख 11 अप्रैल 2004 मुकर्रर की गई। लेकिन सगाई के महज 4 दिनों बाद ही यानि 3 दिसंबर को रात 9.30 बजे गिरीश का कत्ल हो जाता है।
जब गिरीश की हत्या हुई तब मंगेतर पास में थी मौजूद
जब गिरीश के सिर पर वार किया गया तब शुभा पास ही खड़ी थी। वो चिल्लाती है तो पास से गुजर रहा सेना का एक जवान सुजेश कुमार उनकी मदद को आगे आता है। वो गिरीश को लेकर अस्पताल की तरफ भागता है पर वहां जाते जाते देर हो जाती है। गिरीश दम तोड़ देता है। उधर शुभा रात 10.30 बजे विवेक नगर थाने पहुंचती है और ड्यूटी पर मौजूद इंस्पेक्टर के नानाइया को सारी बात बताती हैं। वो कहती है कि उसने सोने के जेवर पहन रखे थे। उसको लगता है कि लूटपाट के लिए गिरीश की हत्या की गई। लेकिन नानाइया को अंदाजा हो जाता है कि जिस केस की तफ्तीश वो करने जा रहे हैं वो एक हाईप्रोफाइल केस है।
लहूलुहान मंगेतर को गाड़ी की पीछे की सीट पर डालकर आगे बैठती है शुभा
पुलिस को शुभा पर पहली बार तब शक होता है जब सुजेश कुमार पुलिस के सामने आता है। वो कहता है कि जब लहूलुहान गिरीश को उसने गाड़ी की पिछली सीट पर डाला तो शुभा उसके साथ गाड़ी की अगली सीट पर बैठ गई। उसे ये अटपटा लगा कि जिसका मंगेतर ऐसी हालत में है वो अपनी सहूलियत को देख रही थी। मामला बड़ा था क्योंकि शुभा के पिता जानेमाने वकील थे। नानाइया पर उनके अफसरों का भी दबाव था कि केस को जल्दी सुलझाया जाए। वो अपनी जांच शुरू कर देते हैं पर कोई सबूत नहीं मिलता।
पुलिस करती रहती है जांच पर नहीं मिलता कोई सुराग
पुलिस की टीम गिरीश के दफ्तर भी जाती है। उसके संगी साथियों के साथ परिवार के लोगों से भी बात करती है पर सारे कहते हैं कि उसका कोई बैरी नहीं था। वो शांत स्वभाव का शख्स था। जब पुलिस को कोई क्लू नहीं मिलता तो वो फैसला करती है कि गिरीश और शुभा के काल डिटेल खंगाले जाए। पुलिस जब दोनों के फोन रिकार्ड को देखती है तो उसे दाल में काला नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आती है। शुभा अपने मंगेतर के साथ दिन में दो बार बात करती थी लेकिन ला कालेज के अपने एक जूनियर अरुण के साथ वो दिन में 15 से 20 बार संपर्क करती थी। पुलिस चुपचाप शुभा और अरुण को फालो करती है। एक दिन पता लगता है कि दोनों रिलेशनशिप में थे।
शुभा का काल रिकार्ड पुलिस को दिखाता है पहली उम्मीद
लेकिन पुलिस को तब भी ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे गुत्थी सुलझ सके। काल रिकार्ड को तो खंगाल लिया गया था अब पुलिस मैसेज बाक्स को देखना शुरू कर देती है। यहीं उसे क्लू मिल जाता है। वारदात वाले दिन शुभा और अरुण के बीच दो संदेशों का आदान प्रदान हुआ था। एक संदेश 3 दिसंबर की दोपहर 2 बजे का था तो दूसरा हत्या के अगले दिन यानि 4 दिसंबर को सुबह तकरीबन 10.30 बजे का। 4 दिसंबर वाले मैसेज में अरुण लिखता है कि मुझे चिंता हो रही है क्या वहां सबकुछ ठीक है। शुभा जवाब देती है कि हर चीज नियंत्रण में है।
फिर मिला 1 एसएमएस जो गुत्थी को सुलझा देता है
अगले 1 महीने तक पुलिस पड़ताल में जुटी रहती है। फिर एक दिन शुभा के साथ अरुण को गिरफ्तार कर लिया जाता है। तब पता चलता है कि शुभा शादी से खुश नहीं थी। उसने अरुण के साथ मिलकर गिरीश की हत्या करा दी। जिन बदमाशों ने वारदात को अंजाम दिया उनमें दिनेश के साथ वेंकटेश शामिल था। मुकदमे की जब सुनवाई शुरू होती है तो पुलिस साक्ष्य के तौर पर केवल काल रिकार्ड और दो एसएमएस अदालत में पेश करती है। अदालत उनको एडमिट करके सारे आरोपियों को सजा सुनाती है।
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