नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) अपनी छात्र संघ चुनाव प्रक्रिया में सुधार करने पर विचार कर रहा है और वह वर्तमान प्रत्यक्ष मतदान प्रणाली को अप्रत्यक्ष व दो-स्तरीय मॉडल में बदल सकता है। इस संबंध में एक प्रस्ताव आया है जिसका उद्देश्य "धन और बाहुबल" के प्रभाव पर अंकुश लगाना है। इसका छात्रों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है, तथा ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) इस कदम के खिलाफ प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहा है। कार्यकारी परिषद (ईसी) की बृहस्पतिवार को हुई बैठक के दौरान डीयू प्रशासन ने प्रस्ताव को बैठक के ब्यौरे में शामिल किया।
बैठक में दो स्तयीर मॉडल पर विचार
इसमें एक ऐसी प्रणाली अपनाने का सुझाव दिया गया है, जिसमें कॉलेज और विभाग के प्रतिनिधि विश्वविद्यालय स्तर के पदाधिकारियों का चुनाव करेंगे। हालांकि, विचार-विमर्श स्थगित कर दिया गया तथा इस मामले पर ईसी की अगली बैठक में एक अलग एजेंडा के रूप में विचार करने का विकल्प दिया गया। प्रस्ताव का विरोध करने वाले ईसी के निर्वाचित सदस्य मिथुराज धुसिया ने एक न्यूज एजेंसी को बताया, "आज के बैठक के ब्यौरे में उन्होंने (डीयू प्रशासन ने) दो पैराग्राफ जोड़े हैं जिन पर पिछली बैठक में चर्चा नहीं हुई थी। हमने बैठक के ब्यौरे की पुष्टि नहीं की और यह सहमति बनी कि इस मामले को अगली बैठक में एजेंडा के रूप में रखा जाएगा।"
डूसू को "खोखला" करने के प्रयास
उन्होंने कहा कि लडूसू की चुनाव प्रक्रिया में बदलाव के लिए विश्वविद्यालय को फैसला लेकर बताने का दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए तथा सभी हितधारकों को शामिल करते हुए व्यापक परामर्श किया जाना चाहिए। वामपंथी छात्र संगठन द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, बैठक के बाहर आइसा के सदस्यों और छात्रों ने डूसू को "खोखला" करने के प्रयास के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।
डूसू को एक खोखली संस्था में बदलने की रणनीति
आइसा की डीयू सचिव अंजलि ने कहा, "अप्रत्यक्ष चुनाव कुछ और नहीं बल्कि संघ (डूसू) को एक खोखली संस्था में बदलने की रणनीति है। जब चुनाव को कक्षा तक सीमित कर दिया जाएगा, तो नीतिगत मुद्दे पीछे छूट जाएंगे।" यह प्रस्ताव नवंबर 2024 में दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले के मद्देनजर आया है, जिसमें डूसू चुनाव में अत्यधिक खर्च को रोकने के लिए दो-स्तरीय चुनाव मॉडल अपनाने का सुझाव दिया गया था।