/young-bharat-news/media/media_files/2025/07/21/mumbai-local-trail-blast-case-2006-2025-07-21-13-22-58.jpg)
"साल 2006 में 11 मिनट में 7 बम धमाके—189 मौतें—800+ घायल—अब 12 आरोपी बरी... तो खून से सनी मुंबई लोकल का गुनहगार कौन है?" | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । मुंबई की लोकल ट्रेनों में 11 जुलाई 2006 को हुए सीरियल ब्लास्ट का वो भयावह दिन, जब एक झटके में 189 लोगों की जान चली गई थी और सैकड़ों लोग घायल हुए थे। 18 साल बाद, बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले के 12 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। जिससे जांच एजेंसियों की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। सवाल यह है कि 13 आरोपियों में से एक पहले बरी हुआ था और 12 आरोपियों को बाम्बे हाईकोर्ट ने बरी कर दिया तो सवाल उठता है कि आखिर इतने बड़े बम कांड या यूं कहें सुनियोजित नरसंहार का आरोपी कौन है। आखिर कहां चूक हुई और क्या असली गुनहगार अब भी आजाद हैं? इस विस्तृत रिपोर्ट में हम इस पूरे मामले की परतें खोलेंगे।
2006 मुंबई लोकल ट्रेन विस्फोट: दर्द - साजिश और इंसाफ का अधूरा सफर
मुंबई की धड़कन, उसकी लोकल ट्रेनें, 11 जुलाई 2006 की शाम मातम में बदल गईं। महज 11 मिनट के भीतर सात अलग-अलग ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों ने देश को हिला कर रख दिया था। पश्चिमी रेलवे लाइन पर हुए इन विस्फोटों ने मुंबई को खून से रंग दिया। हर तरफ चीख-पुकार, अफरा-तफरी और दर्दनाक मंजर था। लोग समझ ही नहीं पाए कि आखिर हुआ क्या है। यह मुंबई पर हुआ अब तक का सबसे भीषण आतंकवादी हमला था, जिसने न सिर्फ हजारों जिंदगियां प्रभावित कीं बल्कि पूरे देश के दिल को झकझोर कर रख दिया।
धमाकों का समय ऐसा था जब ट्रेनें यात्रियों से खचाखच भरी होती थीं। काम से घर लौटते लोग, अपने परिवार से मिलने की खुशी में डूबे लोग, और रोजमर्रा की जिंदगी जी रहे आम नागरिक, अचानक मौत के मुंह में समा गए। 189 बेकसूर लोगों ने अपनी जान गंवाई और 800 से ज़्यादा घायल हुए थे। यह सिर्फ एक हमला नहीं था, यह मुंबई की आत्मा पर सीधा वार था। इस घटना ने न सिर्फ मरने वालों के परिवारों को तबाह किया, बल्कि मुंबईकरों के दिलों में एक गहरा जख्म छोड़ दिया जो आज भी हरा है।
/filters:format(webp)/young-bharat-news/media/media_files/2025/07/21/mumbai-blast-2006-2025-07-21-13-23-24.jpg)
जांच का जाल और संदिग्धों की गिरफ्तारी
इस भीषण हमले के बाद, महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ता (एटीएस) ने तुरंत जांच शुरू की। देशभर की प्रमुख जांच एजेंसियां, जिनमें राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) भी शामिल थीं, जांच में जुट गईं। जल्द ही, एटीएस ने इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) जैसे आतंकवादी संगठनों पर शक जताया।
जांच एजेंसियों ने तेजी से कार्रवाई करते हुए कई लोगों को गिरफ्तार किया। 2006 से 2008 के बीच कुल 13 लोगों को मुख्य आरोपी बनाया गया। इनमें से कुछ को मास्टरमाइंड और कुछ पर साजिश में शामिल होने का आरोप लगा। एटीएस ने दावा किया कि इन धमाकों के पीछे लश्कर-ए-तैयबा और सिमी का हाथ था, जिन्होंने भारत में अपने नेटवर्क का इस्तेमाल करके इन हमलों को अंजाम दिया।
इन गिरफ्तारियों के बाद, जांच एजेंसियों ने पुख्ता सबूत जुटाने का दावा किया। उन्होंने कॉल रिकॉर्ड्स, लोकेशन डेटा, गवाहों के बयान और कथित कबूलनामे के आधार पर चार्जशीट दाखिल की। लेकिन, क्या ये सबूत वाकई इतने मजबूत थे कि वे अदालत में टिक पाते? यह सवाल आज भी अनुत्तरित है, खासकर बॉम्बे हाई कोर्ट के हालिया फैसले के बाद।
18 साल का लंबा कानूनी संघर्ष और बरी हुए 12 आरोपी
धमाकों के 18 साल बाद, मुंबई लोकल ट्रेन विस्फोट मामले ने एक नया मोड़ लिया है। 19 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले के 12 आरोपियों को बरी कर दिया है। इन आरोपियों को निचली अदालत ने दोषी ठहराया था और कुछ को मौत की सजा भी सुनाई गई थी, जबकि अन्य को आजीवन कारावास मिला था।
न्यायमूर्ति न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति एस. चांडक की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष इन आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत पेश करने में विफल रहा। अदालत ने पाया कि प्रस्तुत किए गए सबूत पर्याप्त नहीं थे और संदेह का लाभ इन आरोपियों को दिया जाना चाहिए।
/filters:format(webp)/young-bharat-news/media/media_files/2025/07/21/mumbai-blast-case-2025-07-21-13-23-57.jpg)
बरी हुए 12 आरोपी और उनके वकील के तर्क
- कमल अंसारी: इनके वकील ने दावा किया कि कमल अंसारी के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं था और उन्हें झूठा फंसाया गया था।
- डॉ. तनवीर अहमद अंसारी: इनके वकील ने दलील दी कि डॉ. तनवीर एक सामान्य डॉक्टर थे और उनकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं थी।
- मोहम्मद फैसल शेख: इनके वकील ने भी सबूतों की कमी पर जोर दिया।
- एहतेशाम सिद्दीकी: इन्हें पहले मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन वकील ने साबित किया कि उनके खिलाफ कोई ठोस प्रत्यक्ष सबूत नहीं था।
- नवीद हुसैन खान: वकील ने तर्क दिया कि नवीद का धमाकों से सीधा कोई संबंध नहीं था।
- असितुल्ला मंसूर अली: इनके खिलाफ भी पर्याप्त सबूतों का अभाव पाया गया।
- मजहर हुसैन: इनके वकील ने बताया कि उनके खिलाफ भी परिस्थितिजन्य साक्ष्य कमजोर थे।
- मोहम्मद साजिद अंसारी: सबूतों की कमी के कारण इन्हें भी बरी कर दिया गया।
- मुजम्मिल शेख: इनके खिलाफ भी ठोस सबूत नहीं मिले।
- सोहेल महमूद शेख: इनके वकील ने भी अभियोजन पक्ष के सबूतों की कमजोरी उजागर की।
- जफर बशर शेख: इन्हें भी सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।
- मोहम्मद अली: इनके खिलाफ भी आरोप साबित नहीं हो सके।
इस फैसले ने उन परिवारों को और भी निराश किया है जिन्होंने 18 साल तक न्याय का इंतजार किया। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि अगर ये 12 लोग बेकसूर थे, तो असली गुनहगार कौन हैं और वे कब पकड़े जाएंगे?
कहां चूक गईं जांच एजेंसियां? साक्ष्यों का अभाव बना बड़ी चुनौती
बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले ने भारतीय जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त और विश्वसनीय सबूत पेश करने में असफल रहा। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर जांच एजेंसियां कहां चूक गईं?
मुख्य बिंदु जहां जांच एजेंसियां कमजोर पड़ गईं
कमजोर सबूत: कई आरोपियों के खिलाफ प्रत्यक्ष सबूतों का अभाव था। जो सबूत पेश किए गए, वे परिस्थितिजन्य थे और अदालत में टिक नहीं पाए।
कथित कबूलनामे: कुछ आरोपियों के कथित कबूलनामों पर सवाल उठाए गए। अक्सर, इस तरह के कबूलनामे दबाव में लिए जाने के आरोप लगते हैं, और अगर इन्हें सही ढंग से रिकॉर्ड न किया गया हो तो अदालत इन्हें स्वीकार नहीं करती।
फॉरेंसिक साक्ष्यों की कमी: घटनास्थल से जुटाए गए फॉरेंसिक सबूतों को पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं माना गया। डीएनए, फिंगरप्रिंट या अन्य तकनीकी साक्ष्य जो आरोपियों को सीधे घटना से जोड़ सकें, उनकी कमी महसूस की गई।
गवाहों के बयानों में विसंगतियां: कुछ गवाहों के बयानों में विरोधाभास पाए गए, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे।
पूरी साजिश का पर्दाफाश न होना: जांच एजेंसियां शायद पूरी साजिश और उसके पीछे के असली मास्टरमाइंड को बेनकाब करने में विफल रहीं, जिससे छोटे आरोपियों के खिलाफ भी पुख्ता मामला बनाना मुश्किल हो गया।
यह स्पष्ट है कि एक बड़ी साजिश को उजागर करने में एजेंसियां कहीं न कहीं पिछड़ गईं, जिससे बेकसूर लोगों को वर्षों तक जेल में रहना पड़ा और असली अपराधियों को सजा नहीं मिल पाई।
किस संगठन ने ली थी जिम्मेदारी और किसे मिली थी सजा?
धमाकों के तुरंत बाद, इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) और लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) जैसे आतंकवादी संगठनों पर संदेह गहराया था। बाद में, भारतीय खुफिया एजेंसियों ने दावा किया कि इन हमलों के पीछे लश्कर-ए-तैयबा का हाथ था, जिसे स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) और कुछ स्थानीय मॉड्यूल का समर्थन मिला था।
हालांकि किसी भी बड़े आतंकवादी संगठन ने सीधे तौर पर इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली थी, लेकिन जांच एजेंसियों ने अपनी रिपोर्ट में लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख सदस्यों और पाकिस्तान स्थित हैंडलर्स को मास्टरमाइंड बताया था।
निचली अदालत ने 2015 में इस मामले में 13 आरोपियों में से 12 को दोषी ठहराया था। इनमें से 5 को मौत की सजा और 7 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
अब निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए और सजा पाए लोग (जिनमें से 12 अब बरी हो चुके हैं)
मृत्युदंड प्राप्त करने वाले
- एहतेशाम सिद्दीकी (अब बरी)
- कमल अंसारी (अब बरी)
- मोहम्मद फैसल शेख (अब बरी)
- नवीद हुसैन खान (अब बरी)
- असितुल्ला मंसूर अली (अब बरी)
आजीवन कारावास प्राप्त करने वाले
- डॉ. तनवीर अहमद अंसारी (अब बरी)
- मोहम्मद साजिद अंसारी (अब बरी)
- मुजम्मिल शेख (अब बरी)
- सोहेल महमूद शेख (अब बरी)
- जफर बशर शेख (अब बरी)
- मोहम्मद अली (अब बरी)
- मजहर हुसैन (अब बरी)
केवल एक आरोपी, अब्दुल वहीद दीन मोहम्मद शेख, को निचली अदालत ने 2015 में बरी कर दिया था, लेकिन अब बॉम्बे हाई कोर्ट ने बाकी 12 को भी बरी कर दिया है, जिससे यह मामला फिर से सवालों के घेरे में आ गया है।
/filters:format(webp)/young-bharat-news/media/media_files/2025/07/21/mumbai-blast-2025-07-21-13-24-42.jpg)
इंसाफ का इंतजार और आगे की राह
मुंबई लोकल ट्रेन विस्फोट मामला एक बार फिर से न्याय प्रणाली की चुनौतियों को उजागर करता है। 18 साल तक जेल में रहने के बाद, जब 12 आरोपी बरी होते हैं, तो यह न सिर्फ उन पर बल्कि पूरे देश की न्याय व्यवस्था पर एक गहरा सवाल खड़ा करता है। पीड़ितों के परिवारों का क्या, जिन्होंने न्याय की उम्मीद में इतने साल बिता दिए?
जांच एजेंसियों को इस फैसले से सबक सीखना होगा। यह समय है कि वे अपनी कार्यप्रणाली की समीक्षा करें, सबूत जुटाने की प्रक्रियाओं को मजबूत करें और सुनिश्चित करें कि कोई भी बेकसूर व्यक्ति सालों तक जेल में न रहे, और कोई भी असली अपराधी सजा से बच न पाए।
यह मामला दर्शाता है कि आतंकवाद से लड़ना कितना जटिल है। सिर्फ गिरफ्तारियां करने से काम नहीं चलता, बल्कि पुख्ता सबूतों के साथ अदालत में मजबूत मामला पेश करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। मुंबई के लोग और पूरे देश के लोग, आज भी उस भयावह दिन को नहीं भूले हैं, और वे असली गुनहगारों को सजा मिलते देखना चाहते हैं। अब देखना यह होगा कि क्या जांच एजेंसियां इस मामले को फिर से खोलेंगी और उन असली अपराधियों को पकड़ पाएंगी जिन्होंने मुंबई की धड़कन पर हमला किया था।
mumbai serial train blast case 2006 | bombay high court | judgement