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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । 3 जून 1947 का दिन भारतीय इतिहास का वो मोड़ था जिसने लाखों जिंदगियों की तकदीर बदल दी। कांग्रेस समर्थित रेडक्लिफ प्लान के तहत भारत-पाक का विभाजन तय हुआ, लेकिन क्या यह फैसला निष्पक्ष था? हिंदू-मुस्लिम द्वैधता के बीच कांग्रेस की सहमति से ब्रिटिश राज के इस नक्शे ने देश को कैसे झकझोरा? जानिए उस दिन की कहानी जो आज भी हमारे बीच सवाल खड़े करती है।
साल 1947 में भारत की आज़ादी की आस हर तरफ थी, लेकिन ब्रिटिश शासन छोड़ने के साथ ही एक भयंकर समस्या सामने आई – देश को कैसे बांटा जाए? हिंदू और मुसलमानों के बीच बढ़ते सांप्रदायिक तनाव ने विभाजन की मांग को और ज़ोरदार कर दिया। इस जटिल परिस्थिति में लॉर्ड माउंटबेटन ने एक ब्रिटिश जज सायरिल रेडक्लिफ को पंजाब और बंगाल के लिए विभाजन का नक्शा तैयार करने का जिम्मा सौंपा।
रेडक्लिफ के पास महज कुछ हफ्ते थे, बिना क्षेत्र की गहरी समझ के, बिना स्थानीय भाषाओं को जाने, एक ऐसा नक्शा तैयार करना जो दो देशों की सीमा तय करे। यह निर्णय महज़ एक प्रशासनिक कदम नहीं था, बल्कि लाखों लोगों के जीवन से जुड़ा हुआ था।
रेडक्लिफ प्लान: कैसे बना विवादास्पद नक्शा?
रेडक्लिफ प्लान का मकसद था पंजाब और बंगाल को धार्मिक आधार पर विभाजित करना। लेकिन इस नक्शे में मुसलमानों के पक्ष में ज्यादा जमीन देने की कोशिश की गई।
यह निर्णय इतना विवादास्पद था कि इतिहासकारों ने इसे ‘रेडक्लिफ की बेईमानी’ तक कहा। लाहौर जैसे बड़े शहर, जो मुस्लिम बहुल होने के बावजूद हिंदुओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण थे, मुस्लिम बहुल हिस्से में डाले गए।
इसी वजह से लाखों हिंदू, सिख और मुसलमान अपने-अपने घरों को छोड़ने को मजबूर हुए।
विभाजन के बाद का दर्द: विस्थापन और हिंसा
- 3 जून 1947 को जब रेडक्लिफ ने अपना नक्शा पेश किया, तब पंजाब और बंगाल में जो सांप्रदायिक तनाव था, वह चरम पर था।
- लाखों लोगों को अपनी जान बचाने के लिए पलायन करना पड़ा। परिवार बिखर गए, रिश्ते टूटे, और हिंसा ने पूरे इलाके को घेर लिया।
- इतिहास में इस विस्थापन को सबसे बड़ा मानव जनित त्रासदी माना जाता है। लाखों लोगों ने अपने घर, जायदाद और सपनों को छोड़ दिया।
रेडक्लिफ की जल्दबाजी और नाकाफी तैयारी
रेडक्लिफ के पास नक्शा तैयार करने के लिए केवल 5 सप्ताह थे। स्थानीय लोगों से बातचीत नहीं हुई, क्षेत्र की भौगोलिक और सांस्कृतिक जटिलताओं को समझने का मौका नहीं मिला। यह नहीं मालूम कि कांग्रेस पार्टी ने इसका विरोध करना मुनासिब नहीं समझा।
इतनी जल्दी में बनाया गया यह नक्शा विवादास्पद हुआ और आज भी इतिहास में आलोचना का विषय है।
क्या रेडक्लिफ प्लान ने मुस्लिमों का पक्ष ज्यादा लिया?
- रेडक्लिफ ने खुद स्वीकार किया था कि उन्होंने मुसलमानों के पक्ष में अधिक झुकाव दिखाया। यह कारण बना हिंदू-सिख समुदायों के विस्थापन का।
- यह झुकाव उस वक्त की राजनीतिक परिस्थितियों और ब्रिटिश सरकार की रणनीति का नतीजा था, लेकिन इसकी कीमत लाखों लोगों ने चुकाई।
भारत और पाकिस्तान: दो राष्ट्र, एक दर्दनाक जन्म
- विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान दो स्वतंत्र राष्ट्र बने, लेकिन दोनों के बीच दुश्मनी की जड़ें वहीं से शुरू हुईं।
- रेडक्लिफ प्लान ने जो तनाव पैदा किया, वह आज भी सीमा विवादों और रिश्तों में दिखाई देता है।
महात्मा गांधी की विभाजन पर चुप्पी अखरती है!
जो महात्मा गांधी यह कहते रहे कि भारत का विभाजन हमारी लाश पर होगा, अचानक वही मौन हो गए। भारत का विभाजन भी हो गया और पाकिस्तान भी बन गया। मजे की बात यह रही उनके सामने सबकुछ होता रहा और गांधी जी मौन होकर देखते रहे। उनकी इस रणनीति को आज तक देश को नहीं समझ पाया।
विभाजन के 78 साल बाद भी असर
आज जब हम उस ऐतिहासिक दिन को याद करते हैं, तो हमें समझना चाहिए कि रेडक्लिफ प्लान सिर्फ एक नक्शा नहीं था, बल्कि उसने भारतीय उपमहाद्वीप की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक धारणाओं को बदल दिया।
इतिहास से सीख: क्या हम दोबारा ऐसी गलती दोहराएंगे?
इतिहास हमें सिखाता है कि बिना समझ और बिना संवेदनाओं को देखे हुए फैसले कितने विनाशकारी हो सकते हैं।
रेडक्लिफ प्लान ने हमें यह भी बताया कि जब सत्ता के फैसले आम आदमी की जिंदगी पर भारी पड़ें, तो उसकी सच्चाई को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
आज की पीढ़ी के लिए संदेश
3 जून 1947 का दिन हमें याद दिलाता है कि शांति, भाईचारा और सहिष्णुता से ही देश की असली ताकत बनती है। हमें विभाजन की त्रासदी को समझना होगा ताकि हम एक बेहतर भारत का निर्माण कर सकें।
क्या आप सहमत हैं कि रेडक्लिफ प्लान ने भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास को गलत दिशा दी? नीचे कमेंट करें और अपनी राय साझा करें।
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