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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः चीफ जस्टिस आफ इंडिया गुस्से में थे। इतना कि उन्होंने सारे इलाहाबाद हाईकोर्ट को खरी खोटी सुनाने में कोई कसर नहीं बाकी रखी। वो इतना तक कह गए कि यूपी में ये हो क्या रहा है। क्या ऐसे अदालतों को काम चलता है। ऐसे चलता रहा तो न्यायपालिका की साख का क्या होगा। वो मिट्टी में मिल जाएगी।
दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की उस हरकत से खफा था जिसमें एक जमानत मामले में 43 बार सुनवाई स्थगित की गई। रामनाथ मिश्रा बनाम सीबीआई मामले में ये चीज सामने आई।
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को दी जमानत
25 अगस्त को पारित एक आदेश में सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने कहा कि अभियुक्त पहले ही साढ़े तीन साल से ज्यादा समय हिरासत में बिता चुका है। निजी आजादी के मामलों में इस तरह के बार-बार स्थगन को स्वीकार नहीं किया जा सकता। सीजेआई ने कहा कि संवैधानिक अदालतों को जमानत के मामलों पर तुरंत विचार करना चाहिए।
सीजेआई की बेंच ने कहा- हमने बार-बार यह देखा है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित मामलों पर अदालतों को हवा की रफ्तार से विचार करना चाहिए। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में हाईकोर्ट्स से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वो मामले को इतने लंबे समय तक लंबित रखें और सुनवाई स्थगित करने के अलावा कुछ न करें। बेंच ने याचिकाकर्ता को जमानत देने का आदेश दिया।
इसी मामले के दूसरे आरोपी को मिली थीं 27 तारीखें
हालांकि सीजेआई का पारा तभी चढ़ गया था जब ये केस सामने आया। जब उनको पता लगा कि 43 बार एक मामूली से मामले में स्थगन दिया जा चुका है तो वो आग बबूला हो गए। उनका कहना था कि इसी साल मई में उन्होंने इसी मामले के एक सह-अभियुक्त को जमानत दी थी, क्योंकि हाईकोर्ट ने उसकी जमानत याचिका पर 27 बार सुनवाई स्थगित की थी। सीजेआई का गुस्सा इस बात को लेकर भी था कि पिछले मामले की सुनवाई के बाद जो आदेश दिया गया था उसमें साफ था कि उच्च न्यायालय बिना किसी प्रगति के जमानत याचिकाओं को लंबित नहीं रख सकते। न्यायालय ने तब कहा था कि ऐसे मामलों को अधर में लटकाए रखना व्यक्तिगत स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी को कमजोर करता है।
सीजेआई ने कहा कि मौजूदा मामला और भी गंभीर
सीजेआई ने कहा कि एक ही मामले में दो आरोपियों की जमानत याचिका पर हाईकोर्ट ने ये रवैया दिखाया। पिछली बार 27 तारीखें दीं तो इस बार वो उससे भी आगे निकल गया। अब जबकि दोनों अभियुक्त जमानत पर हैं, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि स्वतंत्रता के मामलों में देरी बर्दाश्त नहीं की जा सकती। निचली अदालत को कानून के अनुसार कार्यवाही जारी रखने का निर्देश दिया गया।
Supreme Court, CJI Gavai, Allahabad High Court, 43 dates