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नए कार्यवाहक डीजीपी राजीव कृष्ण।
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः 31 मई को उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने राजीव कृष्ण को सूबे का नया कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक (DGP) नियुक्त किया। कृष्णा ने प्रशांत कुमार की जगह ली। वो 5वें ऐसे IPS हैं जो यूपी के एक्टिंग डीजीपी बने हैं। एक ऐसा पैटर्न जिसकी विपक्ष और पुराने अफसर लगातार निंदा कर रहे हैं। लेकिन सरकार परवाह तक नहीं कर रही। योगी आदित्यनाथ एक्टिंग डीजीपी बनाकर खुद को मजबूत साबित करते आ रहे हैं।
2022 से शुरू हुआ एक्टिंग डीजीपी बनाने का पैटर्न
गौतम बुद्ध नगर (नोएडा) के रहने वाले राजीव कृष्ण पहले इंजीनियर थे। एक्टिंग डीजीपी बनने से पहले वो विजिलेंस और पुलिस भर्ती बोर्ड के चीफ रह चुके थे। 1991 बैच के IPS अधिकारी कृष्णा की बतौर डीजीपी नियुक्ति उस पैटर्न का नतीजा है जो मई 2022 में शुरू हुआ था। पहली दफा मुकुल गोयल को हटाए जाने के बाद देवेंद्र सिंह चौहान ने एक्टिंग डीजीपी का पद संभाला था। चौहान के बाद आरके विश्वकर्मा, विजय कुमार और प्रशांत कुमार आए। ये सभी टेंपरेरी तौर पर डीजीपी बनाए गए थे। दिल्ली के तल्ख तेवरों और विपक्ष की आलोचनाओं को दरकिनार कर योगी अपने पसंदीदा अफसरों को डीजीपी बनाते रहे। दिल्ली और लखनऊ के बीच वर्चस्व की ऐसी जंग छिड़ी कि देश की सबसे ज्यादा आबादी वाला सूबा परमानेंट डीजीपी की बाट जोहते जोहते थकता दिख रहा है। सिस्टम बदहाल है पर योगी का ध्यान दिल्ली को निपटाने पर है।
5वें डीजीपी की नियुक्ति दिखाती है कि योगी को दिल्ली की परवाह नहीं
इस विवाद ने उत्तर प्रदेश सरकार और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के बीच संबंधों पर बहस को फिर से हवा दे दी है। प्रशांत कुमार को एक्सटेंशन मिलने की उम्मीद थी। वो योगी आदित्यनाथ के पसंदीदा उम्मीदवार थे। लेकिन मोदी- शाह की जोड़ी अटक गई और केंद्र सरकार ने सेवा विस्तार को मंजूरी नहीं दी। सूत्रों का कहना है कि यह गतिरोध केंद्र और राज्य के बीच महत्वपूर्ण नियुक्तियों पर आम सहमति की कमी को दर्शाता है। कृष्णा को कार्यवाहक डीजीपी के रूप में नियुक्त करने का फैसला साफ दर्शाता है कि सीएम योगी और केंद्रीय नेतृत्व के बीच गड़बड़ है। यही वजह है कि यूपी के सीएम स्थायी डीजीपी की नियुक्ति से बचते रहे हैं। हालांकि ये तनातनी पुलिस विभाग तक ही सीमित नहीं है। इससे पहले योगी सरकार ने चीफ सेक्रेट्री जैसे अन्य महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियों में देरी की थी। ये दिखाता है कि मुख्यमंत्री ताकतवर पद पर ऐसे किसी अफसर को नहीं चाहते जिसे वो नियंत्रित न कर सकें। अगर केंद्र ऐसे डीजीपी को नियुक्त करता है, जिसे वह पसंद नहीं करते तो उस अधिकारी को हटाना राजनीतिक रूप से पेंचीदा हो जाएगा। योगी को ये भी पता है कि दिल्ली से चलने वाला अफसर उनकी सुनेगा भी नहीं। वो अक्सर अमित शाह के फरमान को ज्यादा तवज्जो देगा।
IPS प्रकाश सिंह केस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बनाया था कानून
सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी प्रकाश सिंह ने पुलिस संगठनों में राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होने और पुलिस सुधारों की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया और पुलिस सुधारों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए। इन दिशा-निर्देशों में डीजीपी की नियुक्ति और पदोन्नति, पुलिस अधिकारियों के तबादलों और पोस्टिंग, और पुलिस के कामकाज में पारदर्शिता के लिए कदम शामिल थे। उत्तर प्रदेश में एक और कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार के 2006 के मामले में 8 एससीसी 1 में दिए गए ऐतिहासिक फैसले पर गंभीरता से पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करती है। फैसले में डीजीपी की नियुक्ति के लिए स्पष्ट और बाध्यकारी मानदंड तय किए गए थे। डीजीपी के चयन के लिए यूपीएससी की तरफ से पैनल बनाया जाना था। इसमें न्यूनतम दो साल के कार्यकाल की बात कही गई थी।
डीजीपी की नियुक्ति के लिए क्या है भारत सरकार का नियम
राज्य सरकार को वर्तमान डीजीपी की सेवानिवृत्ति से तीन महीने पहले UPSC के पास योग्य अफसरों की लिस्ट भेजनी होगी। UPSC सूची की समीक्षा करता है और अंतिम नियुक्ति के लिये तीन उम्मीदवारों की एक सूची राज्य को भेजता है। वैकेंसी क्रिएट होने की तारीख से छह महीने के न्यूनतम कार्यकाल वाले अधिकारी ही डीजीपी के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र होंगे। एक बार नियुक्त होने के पश्चात डीजीपी का न्यूनतम कार्यकाल दो वर्ष का होगा।
2024 में योगी सरकार ने डीजीपी नियुक्ति के लिए बनाए नए नियम
हालांकि प्रकाश सिंह मामले के फैसले की अनदेखी करने पर कोर्ट में अवमानना याचिकाएं दाखिल हुईं तो यूपी सरकार ने राज्य के पुलिस महानिदेशक (DGP) की नियुक्ति के लिये नए नियम बना दिए। 2024 में यूपी कैबिनेट ने पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश चयन एवं नियुक्ति नियमावली को मंज़ूरी दी थी। इसके तहत डीजीपी का चयन अफसर के सर्विस रिकॉर्ड, अनुभव और शेष कार्यकाल पर विचार करते हुए एक समिति करेगी। केवल वो अधिकारी ही इस पद के लिए योग्य हैं जिनकी सेवानिवृत्ति से पहले कम से कम छह महीने की सेवा शेष हो। डीजीपी न्यूनतम दो वर्ष तक पद पर रहेंगे। चयन समिति में हाईकोर्ट के एक रिटायर्ड जज, उत्तर प्रदेश के चीफ सेक्रेट्री और UPSC के प्रतिनिधि शामिल हैं। अस्थायी डीजीपी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं के बाद सुप्रीम कोर्ट के अवमानना नोटिस के जवाब में यूपी सरकार ने ये नियम पेश किए गए थे। याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि अस्थायी नियुक्तियां टाप कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन हैं, जिसका उद्देश्य पुलिस को राजनीतिक प्रभाव से बचाना है।
सिस्टम पर ऐसे फैसलों का पड़ता है प्रतिकूल असर
पुराने पुलिस अधिकारी भी मानते हैं कि जिस राह योगी चल रहे हैं वो सिस्टम के लिए ठीक नहीं है। सुरक्षा बलों का मनोबल बनाए रखने के लिए परमानेंट डीजीपी जरूरी है। राज्य सरकारें अक्सर कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त करना पसंद करती हैं, क्योंकि इससे उन्हें लचीलापन मिलता है। क्योंकि वो राजनीतिक नफे नुकसान के आधार पर कार्यवाहक अधिकारियों के कार्यकाल को बढ़ा या समाप्त कर सकते हैं। लेकिन जब चीफ सेक्रेट्री और डीजीपी जैसे पदों को अस्थायी रूप से भरा जाता है तो सिस्टम को नुकसान होता है। कार्यवाहक अधिकारी साहसिक या संवेदनशील मामलों में मजबूत निर्णय लेने से बचते हैं। उन्हें ये पता होता है कि छोटी सी गलती फंसा सकती है तो ऐसे में वो केवल वो ही काम निपटाते हैं जिसका फरमान उनके आका की तरफ से जारी होता है। अहम फैसलों को वो लटकाकर रखते हैं। उनकी सोच होती है कि गर्दन क्यों बेवजह फंसाएं। सरकारें स्थायी डीजीपी नियुक्त करने से इस वजह से भी बचती हैं, क्योंकि नियमों के अनुसार एक पूर्णकालिक डीजीपी को बिना ठोस औचित्य के दो साल के लिए हटाया नहीं जा सकता है। परमानेंट डीजीपी सरकार की मनमानी पर अंकुश भी लगाता है, क्योंकि उसे पता होता है कि कुर्सी से हटाना इतना आसान नहीं है। यही वजह है कि फील्ड स्तर के अधिकारी कार्यवाहक डीजीपी के साथ गंभीरता से पेश नहीं आते हैं। कभी-कभी जिलों के एसपी भी कार्यवाहक डीजीपी को गंभीरता से नहीं लेते हैं, जिससे पूरे पुलिस बल में अव्यवस्था फैल जाती है।
दिल्ली के असर को खत्म करके 2027 का चुनाव जीतने पर नजरें
हालांकि योगी सरकार के इस पैटर्न पर सुप्रीम कोर्ट के साथ विपक्ष भी हमलावर है। लेकिन योगी जानते हैं कि एक बार गर्दन दिल्ली के शिकंजे में फंस गई तो वो उनको बार बार घुटने पर बैठने के लिए मजबूर करेगी। 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों से पहले जिस तरह से योगी को दरकिनार करने की सियासत दिल्ली दरबार से हुई वो किसी से छिपी नहीं है। योगी जानते हैं कि 2027 का चुनाव दूर नहीं है। इसे जीतना है तो पुलिस में अपनी पकड़ कायम रखनी होगी। डीजीपी परमानेंट होगा तो जिलों के एसपी भी ज्यादातर उसकी मर्जी से होंगे। डीजीपी एक्टिंग होगा तो एसपी को नियुक्त करने का काम योगी आसानी से कर लेंगे। आखिरकार चुनाव के दौरान ये जिलों के अफसर ही तो जीत हार को तय करने में एक अहम भूमिका को निभाते हैं।
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