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क्या 'तालिबान' सच में हिंदू-सिख भाइयों को वापस बुला रहा है? 'बड़ी वजह' आई सामने

अफगान मंत्री ने भारतीय निवेश और अफगान हिंदू-सिखों की वतन वापसी को प्रोत्साहित किया है। यह पहल आर्थिक मजबूरी और अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता हासिल करने की तालिबानी कोशिश है। क्या सुरक्षा का वादा सच होगा?

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Ajit Kumar Pandey
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AFGANISTAN KI TALIBAN SARKAR

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । क्या भारत में शरण लिए अफगान हिंदू-सिख समुदाय की अपने वतन वापसी की गुंजाइश है? तालिबान सरकार के वाणिज्य मंत्री अलहाज नूरुद्दीन अजीजी ने भारत दौरे पर भारतीय कंपनियों को अफगानिस्तान में निवेश का निमंत्रण दिया है। उन्होंने बेहतर माहौल और सुविधाओं का वादा किया है, लेकिन इस दौरान अफगान हिंदू-सिखों की सहभागिता को प्रोत्साहित करने की बात पर सवाल खड़े हो गए हैं। तालिबान का यह कदम महज़ कूटनीतिक है या इसके पीछे कोई गहरा आर्थिक और राजनीतिक मकसद छिपा है? आइए जानते हैं यंग भारत न्यूज के इस एक्सप्लेनर में ...आखिर क्या है पूरा मामला।

भारत-अफगानिस्तान संबंध, तालिबान के बदल रहे सुर और हिंदू-सिखों की वापसी की पहल। पिछले कुछ दिनों से अफगानिस्तान की तालिबान सरकार एक नई और हैरान कर देने वाली कूटनीतिक चाल चल रही है। नई दिल्ली में अफगानिस्तान के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री अलहाज नूरुद्दीन अजीजी ने भारतीय कंपनियों को अपने देश में निवेश करने का खुला निमंत्रण दिया है। यह निमंत्रण तब आया है, जब कुछ ही साल पहले तालिबान के सत्ता में आने के बाद हजारों अफगान नागरिक, खासकर हिंदू और सिख समुदाय के लोग, अपनी जान बचाकर भारत में शरण लेने को मजबूर हुए थे। 

अजीजी का यह दौरा केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक संकेत भी दे रहा है। उन्होंने द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए "अनुकूल माहौल" बनाने का वादा किया है। मगर, इस सबके बीच सबसे दिलचस्प और भावनात्मक पहलू यह है, जिसमें मंत्री अजीजी ने अफगानिस्तान के सिख और हिंदू समुदाय के लोगों की ज्यादा सहभागिता को प्रोत्साहित करने की बात कही।

क्या तालिबान सच में अपने पूर्व नागरिकों के प्रति सद्भावना दिखा रहा है? या इसके पीछे अफगानिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और भू-राजनीतिक मजबूरी है? तालिबान को क्यों चाहिए भारत का साथ? 5 बड़े कारण क्या हैं। 

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अफगानिस्तान इस समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगभग अकेला पड़ चुका है। भारत हमेशा से ही अफगानिस्तान का एक विश्वसनीय सहयोगी रहा है। तालिबान को पता है कि उसके आर्थिक पुनरुद्धार के लिए भारतीय निवेश और विशेषज्ञता बहुत जरूरी है। यहां वह बड़ी वजहें हैं, जो तालिबान को भारत की तरफ खींच रही हैं। 

गिरती अर्थव्यवस्था को 'ऑक्सीजन' की जरूरत: तालिबान के कब्जे के बाद से ही अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। पश्चिमी देशों की मदद रुक गई है और बैंकिंग प्रणाली लगभग ठप है। ऐसे में भारत जैसे बड़े बाज़ार और निवेशक से हाथ मिलाना उनके लिए 'ऑक्सीजन' के समान है। भारतीय निवेश खनन, आईटी और कृषि जैसे क्षेत्रों को तुरंत सहारा दे सकता है। 

महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विशेषज्ञता और पूंजी का अभाव: मंत्री अजीजी ने विशेष रूप से माइनिंग खनन, एग्रीकल्चर कृषि, हेल्थ एंड मेडिसिन, आईटी सूचना प्रौद्योगिकी, एनर्जी ऊर्जा और वस्त्र उद्योग में निवेश के मौके गिनाए हैं। इन सभी क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों के पास विशेषज्ञता, अनुभव और बड़ी पूंजी है, जिसकी अफगानिस्तान को सख्त जरूरत है। 

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भारत का 'सॉफ्ट पावर' और अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता: भारत के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित करने से तालिबान को वैश्विक स्तर पर थोड़ी अंतर्राष्ट्रीय वैधता और विश्वसनीयता मिलेगी। भारत एक बड़ा लोकतांत्रिक देश है और उसका व्यापारिक समर्थन अन्य देशों को भी निवेश के लिए प्रेरित कर सकता है। 

हिंदू-सिख वापसी की अपील का छिपा मकसद 

हिंदू और सिख समुदाय अफगानिस्तान में ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण व्यापारिक नेटवर्क और वित्तीय दक्षता रखते थे। उनकी वापसी की अपील एक भावनात्मक पहल से ज्यादा, उनके व्यापारिक कौशल का इस्तेमाल करने की मंशा हो सकती है। इन समुदायों के लोग देश के भीतर और बाहर भी मजबूत व्यावसायिक संबंध रखते हैं, जो अफगानिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को फिर से जोड़ने में मदद कर सकते हैं। 

याद रखें तालिबान ने इन नए बिजनेस के लिए कई प्रोत्साहन भी दिए हैं, जिनमें कच्चे माल और मशीनरी पर एक प्रतिशत शुल्क, मुफ्त भूमि आवंटन, और पांच साल की टैक्स छूट शामिल है। यह साफ़ दर्शाता है कि आर्थिक हित सर्वोपरि हैं। 

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भारत के साथ 1 बिलियन के व्यापार को बढ़ाना

वर्तमान में भारत-अफगानिस्तान द्विपक्षीय व्यापार लगभग 1 अरब अमेरिकी डॉलर का है। दोनों देश इसे और बढ़ाना चाहते हैं, और इसके लिए जल्द ही हवाई मालवाहक सेवाओं Air Cargo Services को फिर से शुरू करने पर भी सहमति बनी है। व्यापार बढ़ाने के लिए भरोसे का माहौल बनाना जरूरी है। सवाल जो हवा में तैर रहे हैं क्या अफगान अल्पसंख्यक सुरक्षित हैं? 

यह सच है कि तालिबान ने व्यापार के लिए अनुकूल और 'समावेशी, शांतिपूर्ण' माहौल देने का वादा किया है, लेकिन उन अफगान हिंदू और सिख परिवारों का क्या, जिन्होंने अत्याचारों के कारण अपना घर छोड़ा? क्या उन्हें वास्तव में सुरक्षा की गारंटी दी जा रही है? क्या तालिबान उनके धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों का सम्मान करेगा? या यह सिर्फ निवेश आकर्षित करने के लिए एक कूटनीतिक कार्ड है, या तालिबान की विचारधारा में सचमुच बदलाव आया है? 

इन सवालों का जवाब केवल वादों में नहीं, बल्कि जमीन पर दिखने वाले बदलावों में छिपा होगा। तालिबान की मजबूरी 'बदलने' का नाटक या नई शुरुआत? 

तालिबान को यह अच्छी तरह से पता है कि जब तक वह अंतर्राष्ट्रीय नियमों और मानवीय मूल्यों का सम्मान नहीं करेगा, तब तक उसे वैश्विक मदद नहीं मिलेगी। हिंदू-सिख समुदाय को वापस बुलाने का कदम एक तरह से दुनिया को यह दिखाना है कि तालिबान अब 'बदल' रहा है और सभी समुदायों के लिए जगह बना रहा है। तालिबान का भारत प्रेम और अल्पसंख्यक समुदाय के लिए अचानक से आया निमंत्रण किसी भावनात्मक लगाव से नहीं, बल्कि आर्थिक अनिवार्यता से प्रेरित है।

अफगानिस्तान को भारत के पैसों और बाजार की सख्त जरूरत है। अगर तालिबान वादे पूरे करता है, तो यह दक्षिण एशिया में एक नई व्यापारिक साझेदारी की शुरुआत हो सकती है। लेकिन अगर यह सिर्फ दिखावा साबित हुआ, तो यह एक और कूटनीतिक विफलता होगी। 

Afghanistan India Relations | Hindu Sikhs In Afghanistan | Taliban Economy | Minority Safety 

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