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रूस के वीटो के बाद इंदिरा के सामने झुकने पर मजबूर हुए थे भुट्टो, जानिए क्या है शिमला एग्रीमेंट

पहलगाम हमले के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने सिंधु जल संधि को खत्म करने का ऐलान किया तो पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (एनएससी) ने भी पलटवार कर सीमा, हवाई क्षेत्र को बंद करने, व्यापार के निलंबन और सबसे अहम शिमला समझौते को रद्द करने का फैसला लिया।

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Shailendra Gautam
Indira gandhi

कैसे पड़ी शिमला समझौते की नींव


1971 में पूर्वी पाकिस्तान से तकरीबन 1 करोड़ शरणार्थियों के भारत में प्रवेश के बाद तत्कालीन सरकार ने वहां के हालात में दखल देने का फैसला किया। भारत की सेना ने घेराबंदी की जिसके चलते 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को हथियार डालने पड़े। लेकिन मामला यहीं पर नहीं रुका। अमेरिका पाकिस्तान  के कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा था। वो मामले को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा काउंसिल में ले गया। अमेरिका पूरी तरह से भारत को झुकाने पर आमादा था तभी रूस ने वीटो का इस्तेमाल कर दिया। अब पाकिस्तान के पास कोई चारा नहीं था सिवाय भारत से समझौता करने के। 

युद्ध के 7 महीने बाद शिमला में इंदिरा गांधी से मिलने आए थे भुट्टो


1971 के युद्ध में भारत ने जीत हासिल की और इसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ। लड़ाई खत्म होने के सात महीने बाद पाकिस्तानी राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिले। ये कवायद अपने संबंधों को सामान्य बनाने के लिए थी। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में दोनों ने मुलाकात की। 

युद्ध विराम रेखा बनी नियंत्रण रेखा 

2 जुलाई, 1972 को हुए समझौते में विवादों का शांतिपूर्ण समाधान और कश्मीर सहित मुद्दों को द्विपक्षीय रूप से हल करना शामिल था। इसमें क्षेत्रीय संप्रभुता, अखंडता, राजनीतिक स्वतंत्रता और आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की बात भी शामिल  है। इसका सबसे अहम पहलू था युद्ध विराम रेखा का नाम बदलकर नियंत्रण रेखा (एलओसी) करना। दोनों देशों ने इसे एकतरफा रूप से न बदलने पर सहमति व्यक्त की।
समझौते के तहत तकरीबन 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को भारत ने रिहा किया। समझौते में कहा गया है कि दोनों देशों के बीच किसी भी समस्या के अंतिम समाधान तक कोई भी पक्ष एकतरफा रूप से स्थिति में बदलाव नहीं करेगा। 2019 में मोदी सरकार ने कश्मीर के स्पेशल स्टेटस  को रद्द कर दिया था। धारा 370 खत्म कर दी गई थी। तब पाकिस्तान ने नई दिल्ली पर शिमला समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया।

कई मर्तबा रद्द हो चुका है शिमला समझौता

दोनों देशों के बीच संबंधों में शिमला समझौते को मील का पत्थर माना जाता है लेकिन तस्वीर का एक पहलू ये भी है कि इस समझौते को कई बार रद्द होना पड़ा। 1971 के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल, पुलवामा और अब पहलगाम के मसले पर सैन्य टकराव हुआ। ये लड़ाईयां 1965 और 1971 सरीखी तो नहीं रहीं अलबत्ता दोनों देशों ने एक दूसरे के खिलाफ जमकर हथियारों का इस्तेमाल किया। 
वैश्विक सामरिक विशेषज्ञों की बात मानें तो शिमला समझौता भारत की कूटनीतिक जीत था। पाकिस्तान बांग्लादेश के गठन के मुद्दे को लेकर संयुक्त राष्ट्र गया था। उसे अमेरिकी समर्थन भी हासिल था। लेकिन इंदिरा गांधी ने उसे शिमला आने के लिए मजबूर कर दिया। 

भारत ने कहा था कश्मीर द्विपक्षीय मसला

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समझौते में भारत ने साफ कर दिया कि कश्मीर दोनों देशों का आपसी विवाद है। इसमें संयुक्त राष्ट्र का कोई लेना देना नहीं है। शिमला समझौते से पाकिस्तान को केवल एक फायदा हुआ। वो ये कि उसे अपने 93 हजार सैनिक वापस मिल गए। जबकि भारत ने बांग्लादेश को अलग राष्ट्र का दर्जा दिलाने के साथ पाकिस्तान को दो टूक बता दिया कि कश्मीर वैश्विक मसला नहीं है। 

संयुक्त राष्ट्र ने सुझाया था जनमत संग्रह का रास्ता 

ध्यान रहे कि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने 1949 में कश्मीर के विवाद के समाधान के लिए 5 राष्ट्रों की समिति बनाई थी। उनकी रिपोर्ट में जनमत संग्रह कराने की बात की गई थी। यानि कश्मीर के लोग जहां जाना चाहें जा सकते हैं पर भारत ने इसे माना ही नहीं। भारत का रवैया इतना अड़ियल रहा कि जिस अमेरिकी को जनमत संग्रह का जिम्मा दिया गया था वो भी निकल भागा। 

bharat vs pakistan 8 May attack india pak tension
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