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AIIMS कर रहा था चौधराहट, जज को आया गया गुस्सा, ठिकाने लगाया दिमाग

एक रेप पीड़िता को एम्स ले जाया गया था। पहले उसका अल्ट्रासाउंड करने से मना कर दिया 13 दिनों की देरी के बाद अल्ट्रासाउंड किया गया तो पाया गया कि पीड़िता के गर्भ में पल रहा बच्चा 25 सप्ताह से अधिक का था।

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Shailendra Gautam
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Photograph: (Google)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः एक 17 वर्षीय बलात्कार पीड़िता के साथ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने जो बर्ताव किया उससे दिल्ली हाईकोर्ट बुरी तरह से भड़क गया। इतना कि जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने न केवल एम्स को फटकार लगाई बल्कि कानून का एक ऐसा पुलिंदा पुलिस और एम्स को थमा दिया जिससे भविष्य में किसी रेप विक्टिम से बदसलूकी का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो गया। : Judiciary | Delhi AIIMS | Indian Judiciary

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रेप पीड़िता के साथ एम्स की बदसलूकी पर चढ़ा कोर्ट का पारा

दरअसल, रेप पीड़िता को मेडिकल जांच और एमटीपी के लिए एम्स ले जाया गया था। अस्पताल ने पहले उसका अल्ट्रासाउंड करने से मना कर दिया क्योंकि उसके पास कोई पहचान पत्र नहीं था। हालांकि पुलिस उसके साथ थी पर डाक्टर नहीं माने। जब 13 दिनों की देरी के बाद अल्ट्रासाउंड किया गया तो पाया गया कि पीड़िता के गर्भ में पल रहा बच्चा 25 सप्ताह से अधिक का था। फिर मेडिकल बोर्ड ने उसकी जांच नहीं की क्योंकि डॉक्टर ने कहा कि गर्भावस्था कानूनी सीमा को पार कर चुकी थी, लिहाजा अदालत के आदेश की आवश्यकता होगी। अदालत के आदेश पर एक मेडिकल बोर्ड ने उसकी जांच की और पाया कि वह केवल 24 सप्ताह की गर्भवती थी। उसकी जांच के लिए अदालत के आदेश की कोई आवश्यकता नहीं थी। दिल्ली हाईकोर्ट के सामने ये केस आया तो जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने माथा पकड़ लिया। फिर उनको लगा कि कुछ ऐसा करने की जरूरत है जिससे भविष्य में इस तरह का बखेड़ा न खड़ा हो।

पुलिस और एम्स के लिए गढ़ दिया नया कानून

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जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने आदेश दिया कि ऐसे सभी मामलों में जहां यौन उत्पीड़न की पीड़िता गर्भवती पाई जाती है, बिना किसी देरी के चिकित्सकीय जांच कराई जानी चाहिए। जांच अधिकारी की जिम्मेदारी होगी कि वह पीड़िता की पहचान करे और यह सुनिश्चित करे कि जब उसे मेडिकल बोर्ड के समक्ष पेश किया जाए तो आवश्यक दस्तावेज, केस फाइल साथ में हों। कोर्ट ने कहा कि बलात्कार पीड़ितों के मामले में जहां गर्भावधि अवधि 24 सप्ताह से अधिक है, वहां न्यायालय से किसी विशेष निर्देश की प्रतीक्षा किए बिना तत्काल मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाएगा। उन सभी मामलों में जहां बलात्कार पीड़िता का एमटीपी किया जाता है, भ्रूण को उचित तरीके से संरक्षित किया जाएगा ताकि भविष्य में उसे डीएनए टेस्ट के लिए भेजा जा सके।

रजिस्ट्रार जनरल से कहा- खुद भेजे आदेश

हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में एम्स का रवैया परेशान करने वाला है। कोर्ट ने अपने रजिस्ट्रार जनरल को आदेश दिया कि वो फैसले की कापी लीगल एड सर्विसेज, दिल्ली पुलिस आयुक्त, दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार को भेजें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दिशा-निर्देश सभी के पास पहुंच चुके हैं।
Delhi High Court, victims of sexual assault, Justice Swarana Kanta Sharma, AIIMS

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