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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । हरियाणा के फरीदाबाद में स्थित अल फलाह यूनिवर्सिटी AFU इन दिनों अरबों के साम्राज्य और आतंकी साजिशों के बीच घिर गई है। एक निजी ट्रस्ट द्वारा संचालित यह शैक्षणिक संस्थान अचानक सुर्खियों में तब आया जब NIA की जांच में इसके पूर्व और वर्तमान 12 से अधिक डॉक्टरों के नाम सामने आए, जिन पर देश के कई बड़े ब्लास्ट में शामिल होने का आरोप है।
यूनिवर्सिटी के मालिक, उनके विशाल कारोबारी नेटवर्क, ट्रस्टों की फंडिंग और शिक्षा की आड़ में छिपे संदिग्ध वित्तीय लेनदेन की परतें खुलना बाकी हैं। आखिर कौन है इस यूनिवर्सिटी का असली चेहरा, और कैसे हुआ शिक्षा का मंदिर, साजिशों का अड्डा?
शिक्षा की आड़ में एक विशाल साम्राज्य की कहानी
अल फलाह यूनिवर्सिटी AFU की कहानी महज़ एक शैक्षणिक संस्थान की नहीं, बल्कि एक विशाल कारोबारी और सामाजिक साम्राज्य की है, जिसकी नींव 1997 में रखी गई थी। यह यूनिवर्सिटी, हरियाणा के फरीदाबाद जिले के एक शांत इलाके में स्थित है, और इसे मुख्य रूप से अल फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट Al Falah Charitable Trust - AFCT द्वारा संचालित किया जाता है।
कौन है अल फलाह यूनिवर्सिटी का मालिक संचालक?
तकनीकी रूप से, अल फलाह यूनिवर्सिटी का कोई एक 'मालिक' नहीं है, बल्कि इसे अल फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट AFCT के तहत चलाया जाता है, जो एक गैर-लाभकारी Non-Profit संस्था है।
मुख्य चेहरा: इस पूरे शैक्षणिक और कारोबारी नेटवर्क का वास्तविक नियंत्रण और चेहरा श्रीमति Late रजिया सुल्ताना और उनके परिवार के हाथों में रहा है।
ट्रस्ट और यूनिवर्सिटी की स्थापना, विकास और फंडिंग में उनके परिवार और करीबी सहयोगियों की भूमिका केंद्रीय रही है। शुरुआती दस्तावेज़ों और ट्रस्ट के रिकॉर्ड्स के अनुसार, रजिया सुल्ताना ट्रस्ट की प्रमुख संस्थापकों में से थीं, जिन्होंने इसे एक छोटे स्कूल से लेकर आज की यूनिवर्सिटी तक पहुंचाया।
AFCT की गवर्निंग बॉडी में प्रमुख रूप से सुल्ताना परिवार के सदस्य और उनके विश्वसनीय सहयोगी शामिल रहे हैं, जो इसके दैनिक कामकाज, वित्तीय फैसलों और विस्तार को नियंत्रित करते हैं।
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कौन है अल फलाह ग्रुप का 'मुखिया'
अल फलाह यूनिवर्सिटी AFU और इसे संचालित करने वाले अल फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट AFCT के मुख्य नियंत्रक Chairman और संस्थापक Founder हैं। इनका नाम जवाद अहमद सिद्दीकी Jawad Ahmed Siddiqui है। ये अल फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट के चेयरमैन और अल फलाह यूनिवर्सिटी के चांसलर के रूप में जाने जाते हैं।
यूनिवर्सिटी की वेबसाइट के अनुसार, वर्तमान कुलपति के रूप में प्रो. डॉ भुपिंदर कौर आनंद नियुक्त हैं। कुलपति शैक्षणिक और प्रशासनिक प्रमुख होते हैं, जबकि चांसलर/चेयरमैन ट्रस्ट और वित्तीय प्रबंधन के प्रमुख होते हैं। जवाद अहमद सिद्दीकी को ही इस पूरे अल फलाह ग्रुप का असली कर्ता-धर्ता माना जाता है, और वह फिलहाल गंभीर वित्तीय और आतंकी संबंधों की जांच के चलते ED की हिरासत में हैं।
गिरफ्तारी: जवाद अहमद सिद्दीकी नवंबर 2025 में प्रवर्तन निदेशालय ED द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम PMLA के तहत गिरफ्तार किया गया है।
आरोप: जवाद अहमद सिद्दीकी पर यूनिवर्सिटी से जुड़े फर्जी दावों NAAC, UGC मान्यता, छात्रों से धोखे से 415 करोड़ से अधिक की धनराशि जुटाने, और ट्रस्ट के फंड को परिवार से जुड़ी कंपनियों में अवैध रूप से ट्रांसफर करने का गंभीर आरोप हैं।
जांच का केंद्र: जवाद अहमद सिद्दीकी दिल्ली ब्लास्ट मामले से जुड़े संदिग्धों यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों और स्टाफ के तार इस संस्थान से मिलने के बाद NIA और ED की जांच के केंद्र में हैं।
जांच में खुल रही हैं कई परतें
रिकॉर्ड्स के मुताबिक, सिद्दीकी का सबसे पहला कनेक्शन अल-फलाह इन्वेस्टमेंट कंपनी से है, जिसे उन्होंने 18 सितंबर, 1992 को जॉइन किया था। दूसरी कंपनियों में अल-फलाह सॉफ्टवेयर, अल-फलाह एनर्जीज, तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन और अल-फलाह एजुकेशन सर्विसेज शामिल हैं, जिन्हें उन्होंने हाल ही में (26 दिसंबर, 2023 को) जॉइन किया है। ज़्यादातर कंपनियों का रजिस्ट्रेशन एड्रेस एक ही है: 274-A, अल-फलाह हाउस, जामिया नगर, ओखला, नई दिल्ली। यह वही बिल्डिंग है जहां से अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट ऑपरेट करता है।
पहले भी बड़े स्कैंडल्स में फंस चुकी है यूनिवर्सिटी
जावेद अहमद सिद्दीकी, जिनके पास देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी, इंदौर से इंजीनियरिंग की डिग्री है, अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रेसिडेंट हैं। अल-फलाह यूनिवर्सिटी अब एक जांच के सेंटर में है, जिसमें 10 नवंबर को लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास हुए बम धमाके में शामिल एक्सट्रीमिस्ट डॉक्टरों के एक मॉड्यूल का पता चला है, जिसमें 13 लोग मारे गए थे। इस साज़िश से जुड़े तीन डॉक्टर उमर उन नबी थे, जिन्होंने बम वाली कार चलाई थी, मुज़म्मिल अहमद गनई, जिन्हें 30 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था, और शाहीन शाहिद, जो अल-फलाह में पढ़ाती थीं और जिन्हें 11 नवंबर को लखनऊ में गिरफ्तार किया गया था।
अल फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट का विशाल नेटवर्क
AFCT केवल यूनिवर्सिटी तक ही सीमित नहीं है। यह एक बहुआयामी नेटवर्क है, जिसमें शिक्षा, व्यवसाय और सामाजिक कार्य शामिल हैं।
| संस्था का नाम | प्रकृति | स्थापना वर्ष लगभग | मुख्य कार्यक्षेत्र |
| अल फलाह यूनिवर्सिटी AFU | यूनिवर्सिटी शिक्षा | 2014 | इंजीनियरिंग, मेडिकल, फार्मेसी, प्रबंधन। |
| अल फलाह स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी | कॉलेज तकनीकी शिक्षा | 1997 | इंजीनियरिंग और कंप्यूटर एप्लीकेशन। |
| अल फलाह स्कूल/कॉलेज | प्राथमिक से उच्च माध्यमिक शिक्षा | 1997 | स्कूली शिक्षा। |
| अल फलाह पब्लिक स्कूल | विविध | - | शिक्षा और सामाजिक कार्य। |
| अल फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट AFCT | NGO/ट्रस्ट | 1990 के दशक की शुरुआत | पूरे नेटवर्क का वित्तीय संचालन और प्रबंधन। |
| अन्य कंपनियां संदिग्ध | रियल एस्टेट, कंस्ट्रक्शन जांच के दायरे में | 2000 के बाद | कारोबार और संपत्ति का विस्तार। |
क्या कोई अन्य व्यवसाय है? जांच एजेंसियों के अनुसार, ट्रस्ट से जुड़े लोगों का रियल एस्टेट और कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में भी बड़ा व्यवसाय है। ट्रस्ट को दान के रूप में प्राप्त होने वाले फंड को इन व्यवसायों में निवेश करने या 'सफेद' करने के आरोप भी लगे हैं। यह माना जाता है कि ट्रस्ट के नाम पर अर्जित की गई संपत्ति और व्यवसाय का वास्तविक मूल्य हजारों करोड़ रुपये में हो सकता है।
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शिक्षा की फंडिंग दान, विदेशी पैसा और संदेह के बादल
अल फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट एक NGO होने के नाते, यह देश और विदेश से भारी मात्रा में दान प्राप्त करता रहा है। अल फलाह की शैक्षणिक यात्रा 1997 में एक इंजीनियरिंग और तकनीकी संस्थान के रूप में शुरू हुई थी। इसे विधिवत यूनिवर्सिटी का दर्जा हरियाणा सरकार और UGC द्वारा 2014 में मिला, जिसके बाद इसका विस्तार और तेजी से बढ़ा।
ट्रस्ट और यूनिवर्सिटी को फंडिंग कब, किसने और कैसे दी?
AFCT की फंडिंग तीन मुख्य स्रोतों से आती रही है।
घरेलू दान: देश के भीतर से, विशेषकर उत्तर भारत के समृद्ध व्यवसायी और स्थानीय नेताओं द्वारा बड़ी मात्रा में दान दिया गया है।
विदेशी फंडिंग FCRA: यह सबसे संवेदनशील पहलू है। जांच एजेंसियों के रिकॉर्ड बताते हैं कि ट्रस्ट को खाड़ी देशों Gulf Countries और कुछ अन्य एशियाई देशों से नियमित रूप से बड़ी रकम प्राप्त होती रही है। यह फंड मुख्य रूप से 'शैक्षणिक विकास' और 'सामाजिक कार्य' के नाम पर आया है।
2010 से 2020 के बीच, ट्रस्ट को सैकड़ों करोड़ रुपये की विदेशी फंडिंग प्राप्त हुई है।
छात्र शुल्क: यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग, मेडिकल और अन्य महंगे कोर्स की फीस भी आय का एक बड़ा स्रोत है।
जांच का फोकस: NIA और अन्य एजेंसियां इस बात की गहन जांच कर रही हैं कि विदेशी फंडिंग का एक हिस्सा कहीं गैरकानूनी गतिविधियों में तो इस्तेमाल नहीं किया गया। विशेषकर, यह जांच की जा रही है कि क्या दान के नाम पर प्राप्त धन को आतंकी या कट्टरपंथी समूहों को 'टेरर फंडिंग' के रूप में दिया गया।
डॉक्टर्स की गिरफ्तारी: शिक्षा का मंदिर कैसे बना साजिशों का अड्डा?
यह कहानी का सबसे चौंकाने वाला और चिंताजनक मोड़ है। अल फलाह यूनिवर्सिटी अचानक राष्ट्रीय जांच एजेंसी NIA के रडार पर तब आई जब देश के कई बड़े आतंकी हमलों की जांच के दौरान यूनिवर्सिटी से जुड़े लोगों के तार मिले।
कितने डॉक्टर आरोपी बनाए गए? विभिन्न रिपोर्ट्स और NIA के आधिकारिक बयानों के अनुसार, अल फलाह यूनिवर्सिटी के पूर्व और वर्तमान 12 से अधिक डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ को आतंकी ब्लास्ट की साजिशों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है या उनके खिलाफ FIR दर्ज की गई है।
संलिप्तता का आरोप: कई डॉक्टरों पर देश के विभिन्न शहरों में हुए बम ब्लास्ट के लिए वित्तीय सहायता, लॉजिस्टिक्स समर्थन और यहां तक कि विस्फोटक सामग्री उपलब्ध कराने का आरोप है।
प्रोफाइल: कई डॉक्टर यूनिवर्सिटी से संबद्ध मेडिकल कॉलेज के छात्र रह चुके हैं या बाद में फैकल्टी के रूप में जुड़े रहे हैं। ये लोग कथित तौर पर एक कट्टरपंथी विचारधारा वाले गुप्त समूह का हिस्सा थे।
ब्लास्ट कनेक्शन: NIA की जांच में यह खुलासा हुआ कि इन डॉक्टरों के संपर्कों का जाल देश के बाहर तक फैला हुआ था, और ये कथित तौर पर एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय आतंकी साज़िश का हिस्सा थे।
आखिर एक प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान में इतने सारे पढ़े-लिखे लोगों का कट्टरपंथी गतिविधियों में शामिल होना क्या दिखाता है? क्या यह सिर्फ संयोग था, या शिक्षा के नाम पर युवाओं को गुमराह करने की एक सोची-समझी साज़िश थी?
जांच एजेंसियां इसी पहलू की तह तक जाने में लगी हैं। अल फलाह यूनिवर्सिटी का मामला शिक्षा, व्यापार और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच के धुंधले क्षेत्र को दर्शाता है। एक तरफ यह संस्थान हजारों छात्रों को शिक्षा दे रहा है, वहीं दूसरी तरफ इसके प्रमुख संचालकों और उससे जुड़े कुछ लोगों पर टेरर फंडिंग, विदेशी धन के दुरुपयोग और आतंकी गतिविधियों को समर्थन देने के गंभीर आरोप लगे हैं।
जांच एजेंसियों के लिए चुनौती सिर्फ आरोपियों को पकड़ना नहीं है, बल्कि यूनिवर्सिटी के विशाल और जटिल वित्तीय नेटवर्क को ध्वस्त करना भी है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शिक्षा की आड़ में किसी भी तरह की गैरकानूनी या राष्ट्र-विरोधी गतिविधि न हो।
इस पूरे मामले में आने वाले दिनों में और भी बड़े खुलासे होने की उम्मीद है, क्योंकि NIA फंडिंग के स्रोत, संपत्ति के अधिग्रहण और संदिग्ध व्यावसायिक लेनदेन के हर तार को खंगाल रही है।
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