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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः भारत की राजनीति में चुनाव आयोग एक बड़ा मुद्दा बना जा रहा है। वो जो कुछ भी करता है वो गैर बीजेपी दलों को गलत ही लगता है। अभी केंद्र में मतदाता सूचियां हैं। बिहार में इनको लेकर माहौल सरगर्म हो चुका है। अब बारी पश्चिम बंगाल की है। चुनाव आयोग वहां भी मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण की तैयारी कर रहा है। ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग की कार्यवाही को पिछले दरवाजे से एनआरसी (National Register of Citizens) की कवायद बताकर 2026 का चुनावी एजेंडा सेट कर दिया है।
ममता ने मार्च निकालकर किया एनआरसी के मुद्दे को जिंदा
सीएम ममता बनर्जी ने आज बारिश के बीच कोलकाता में भाजपा शासित राज्यों में बंगाली भाषियों के उत्पीड़न के विरोध में एक मार्च निकाला। भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र और राज्य सरकारों पर बंगाली प्रवासियों को निशाना बनाने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि बंगाल ने भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी। लेकिन यहीं के बाशिंदों को अब तंग किया जा रहा है। उनका कहना था कि ऐसा करने के लिए भाजपा सरकारों को शर्म आनी चाहिए। उसके बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि जिन लोगों के नाम मतदाता सूची में नहीं हैं, उन्हें जेल भेजा जाएगा। उन्होंने लोगों से आग्रह किया है कि वो सुनिश्चित करें कि उनका नाम सूची में हो। भले ही उन्हें इसके लिए अपना काम छोड़ना पड़े। उनका सवाल था कि क्या मतदाता सूची संशोधन एनआरसी को बैकडोर से एनआरसी को लागू करने का एक प्रयास है। ममता बनर्जी ने आरोप लगाया है कि यह वैध मतदाताओं, खासकर प्रवासियों और गरीबों के नाम हटाने की साजिश है।
ममता का सवाल था कि भाजपा क्या सोचती है कि वो बंगालियों को नुकसान पहुंचाएंगे? वो उन्हें रोहिंग्या कह रहे हैं। रोहिंग्या म्यांमार में हैं, यहां नहीं। 22 लाख गरीब प्रवासी मजदूरों को निशाना बनाया जा रहा है। मैं उनसे घर लौटने की अपील करती हूं। वो यहां सुरक्षित रहेंगे। भाजपा बंगाली भाषियों को डिटेंशन कैंपों में भेज रही है। क्या पश्चिम बंगाल भारत में नहीं है। बांग्लादेशी घुसपैठियों का समर्थन करने के बीजेपी के आरोप का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि सीमा गृह मंत्रालय के अधीन है। वो घुसपैठियों को क्यों नहीं रोक रहे हैं?
ममता के लिए चुनौती है एंटी इनकबेंसी के साथ करप्शन और क्राइम
बंगाल की सत्ता पर तीसरी बार काबिज ममता अगले साल अपना अगला चुनावी मुकाबला लड़ेंगी। सत्ता विरोधी लहर के अलावा, उनकी सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों का भी सामना कर रही है। आरजी कर अस्पताल में बलात्कार-हत्या और एक कानून की छात्रा के यौन उत्पीड़न जैसी घटनाओं के चलते तृणमूल सरकार विपक्षी दलों खासकर बीजेपी के निशाने पर है। ममता को पता है कि तमाम आरोपों को ठंडे बस्ते में भेजना है तो कुछ बड़ा करना होगा। इस वजह से तृणमूल भाजपा के खिलाफ अपने आजमाए हुए 'बाहरी' के दांव पर भरोसा कर रही है। इसमें भाषाई प्रोफाइलिंग, गैरकानूनी हिरासत और बंगाली भाषियों को अवैध प्रवासी करार देने के प्रयासों के एक पैटर्न बनाने का आरोप लगाया गया है। ये आरोप ओडिशा में कुछ प्रवासी कामगारों की हिरासत, दिल्ली में बेदखली अभियान और असम विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा बंगाल के एक किसान को नोटिस जारी करने के बाद लगाए गए हैं। चुनावों से एक साल पहले हो रही यह रैली तृणमूल के अभियान की दिशा को दर्शाती है, क्योंकि यह भाजपा पर हावी होने के लिए पहचान की राजनीति का सहारा ले रही है।
शुभेंदु अधिकारी बोले- असल मुद्दों से ध्यान हटा रही हैं सीएम
बीजेपी ममता बनर्जी के दांव को बखूबी समझ रही है। तभी विधानसभा में विपक्ष के नेता भाजपा के शुभेंदु अधिकारी ने सवाल उठाया है कि क्या बंगाली अस्मिता का दिखावा बंगाली भाषी रोहिंग्याओं और अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की मौजूदगी को छुपाने के लिए किया जा रहा है। उनका सवाल है कि अगर उन्हें बंगाली पहचान की इतनी ही चिंता है तो आप उन हजारों बंगालियों की चीखें क्यों नहीं सुनते, जिन्होंने आपके भ्रष्टाचार के कारण अपनी नौकरियां खो दीं और सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं? तब बंगाली पहचान कहां चली जाती है, जब आपकी सरकार और प्रशासन, सक्षम और कुशल बंगाली अधिकारियों के होते हुए भी ऐसे बाहरी लोगों को ढूंढ़ते हैं जो सिर्फ आपके आदेशों का पालन करेंगे? उनका कहना है कि ममता बनर्जी मुद्दों पर से ध्यान हटाने के लिए ये मुद्दा उठा रही हैं। उन्हें पता है कि लोग उनसे सवाल कर रहे हैं। उनके पास जवाब तो है नहीं तो वो उनका ध्यान दूसरी तरफ खींचने की कोशिश में हैं।
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