नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । सुप्रीम कोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति पर एक बड़ा और दूरगामी फैसला सुनाया है, जिसमें दिवंगत कर्मचारी के परिवार को नौकरी देने के नियमों में अहम बदलाव किए गए हैं। यह निर्णय उन लाखों परिवारों के लिए महत्वपूर्ण है जो सरकारी सेवा में रहते हुए अपने प्रियजनों को खो देते हैं और अनुकंपा नियुक्ति (Compassionate Appointment) की उम्मीद करते हैं। इस फैसले से अब यह स्पष्ट हो गया है कि केवल आर्थिक तंगी ही नौकरी का आधार नहीं होगी, बल्कि कई अन्य पहलुओं पर भी विचार किया जाएगा।
सरकारी नौकरी, खासकर जब कोई अनहोनी हो जाए, एक परिवार के लिए कितनी बड़ी उम्मीद होती है, ये हम सब जानते हैं। अब कल्पना कीजिए कि सुप्रीम कोर्ट एक ऐसा फैसला दे दे, जो इस उम्मीद की परिभाषा ही बदल दे। मंगलवार 17 June 2025 को आए सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक निर्णय ने अनुकंपा नियुक्ति (Compassionate Appointment) के नियमों को लेकर कई पुरानी धारणाओं को तोड़ दिया है। यह सिर्फ एक कानूनी फैसला नहीं, बल्कि उन हजारों परिवारों के सपनों से जुड़ा है जो अपने प्रियजन को खोने के बाद सरकारी नौकरी के सहारे जीवन को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश करते हैं।
राजस्थान केस ने बदला तस्वीर
याचिकाकर्ता रवि कुमार जेफ के पिता सेंट्रल एक्साइज में प्रधान आयुक्त थे। अगस्त 2015 में उनका निधन हो गया था। अब रवि ने CGST और सेंट्रल एक्साइज (जयपुर जोन) राजस्थान में मुख्य आयुक्त के कार्यालय में अनुकंपा नियुक्ति की मांग की है। जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस मनमोहन ने याचिका खारिज कर दी है।
खास बात है कि याचिकाकर्ता के पिता दो घर, 33 एकड़ जमीन और 85 हजार रुपये परिवार को मासिक पेंशन छोड़ गए हैं। राजस्थान हाईकोर्ट और सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्युनल की तरफ से रवि की अनुकंपा नियुक्ति की याचिका को खारिज कर दिया था। उन्होंने डिपार्टमेंट के इस दावे को बरकरार रखा कि परिवार के पास सुविधाओं के साथ रहने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट के पहुंचा।
सुप्रीम अदालत के फैसले ने बताया अधिकार
इस मामले में एक ऐसा ही वाकया सामने आया जहां एक दिवंगत कमिश्नर के बेटे को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने से इनकार कर दिया गया। ये सुनने में शायद अटपटा लगे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि अनुकंपा नियुक्ति का मकसद केवल परिवार को अचानक आई आर्थिक तंगी से उबारना है, न कि मृतक कर्मचारी के पद की विरासत सौंपना। यानी, अब सिर्फ इस आधार पर नौकरी नहीं मिलेगी कि कोई सरकारी कर्मचारी का बेटा या बेटी है। कोर्ट ने साफ कहा कि अनुकंपा नियुक्ति कोई अधिकार नहीं है, बल्कि यह एक रियायत है, जो अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में परिवार को सहारा देने के लिए दी जाती है।
न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए इस बात पर जोर दिया कि सरकारी खजाने से वेतन देना जनता के पैसे का इस्तेमाल है और ऐसे में अनुकंपा नियुक्ति के लिए कठोर दिशानिर्देशों का पालन करना बेहद जरूरी है। पीठ ने यह भी कहा कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का मूल उद्देश्य परिवार को अचानक आए संकट से बाहर निकालना है। इसका अर्थ यह नहीं कि मृतक कर्मचारी के परिवार के सदस्य को उसकी योग्यता के बावजूद नौकरी दी जाए, या फिर पद पर दावा करने का कोई "वंशानुगत अधिकार" बन जाए।
अनुकंपा नियुक्ति का मुख्य आधार आर्थिक स्थिति
पहले, कई मामलों में ऐसा देखा जाता था कि सिर्फ परिवार की आर्थिक स्थिति को मुख्य आधार मानकर अनुकंपा नियुक्ति दे दी जाती थी। लेकिन इस फैसले से अब ये तस्वीर बदल जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि अब केवल आर्थिक तंगी ही एकमात्र मानदंड नहीं होगी। अन्य कारकों, जैसे कि परिवार के सदस्यों की शिक्षा, अन्य आय स्रोत और आश्रितों की संख्या को भी ध्यान में रखा जाएगा। यह एक संतुलित दृष्टिकोण है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि जरूरतमंदों को ही मदद मिले और व्यवस्था का दुरुपयोग न हो।
इस फैसले के बाद सरकारी विभागों को अपनी अनुकंपा नियुक्ति नीतियों में बदलाव करने पड़ सकते हैं। अब उन्हें अधिक पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ आवेदनों की जांच करनी होगी। इसका सीधा असर उन लाखों लोगों पर पड़ेगा जो भविष्य में अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन करेंगे। यह फैसला एक नजीर बनेगा और अन्य मामलों में भी इसे आधार बनाया जा सकेगा।
यह समझने वाली बात है कि अनुकंपा नियुक्ति (Compassionate Appointment) का पूरा विचार ही संकट में पड़े परिवार को तत्काल सहारा देना है। यह कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो किसी को विरासत में मिले। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर मुहर लगाकर यह सुनिश्चित किया है कि सरकारी खजाने का इस्तेमाल सही तरीके से हो और केवल उन्हीं लोगों को मदद मिले जिन्हें वास्तव में इसकी सख्त जरूरत है। यह उन सभी के लिए एक महत्वपूर्ण सीख है जो सरकारी नौकरी को सिर्फ एक सुविधा समझते हैं।
अंत में, यह फैसला सिर्फ एक कानूनी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि समाज में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह दिखाता है कि हमारी न्यायपालिका कितनी सक्रियता से उन मामलों पर ध्यान दे रही है जो सीधे आम जनता को प्रभावित करते हैं।
क्या आप सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले से सहमत हैं? हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं!
supreme court | rajasthan |