नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने अंतरिम राहत पर अपना आदेश सुरक्षित रखने से पहले तीन दिनों तक सभी पक्षों की जिरह सुनी। सरकार का पक्ष सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा जबकि विरोधी पक्ष की तरफ से कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी समेत दूसरे सीनियर एडवोकेट थे।
संसद से पारित संशोधित एक्ट को जब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई तो इसके कुछ प्रावधानों पर स्टे लगा दिया गया था। ये फैसला तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना की बेंच ने लिया था। हालांकि बाद में संजीव खन्ना ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था और इसे वर्तमान सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच को भेज दिया था। ये बेंच अब मामले की सुनवाई कर रही है।
लोकसभा ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 3 अप्रैल को पारित किया था, जबकि राज्यसभा ने इसे 4 अप्रैल को मंजूरी दी थी। संशोधन अधिनियम को 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली। इस नए कानून ने वक्फ अधिनियम 1995 में संशोधन किया है। संशोधन की वैधता को चुनौती देने के लिए कई याचिकाएं शीर्ष अदालत में दायर की गई थीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केवल पांच याचिकाओं को मुख्य याचिका माना। बाकी रिटों को हस्तक्षेप के तौर पर शामिल किया गया।
याचिकाकर्ताओं ने अदालत में दलील दी कि संशोधन मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव है। संशोधन चुनिंदा रूप से मुस्लिम धार्मिक बंदोबस्तों पर निशाना साधता है। ये समुदाय के अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने के संवैधानिक अधिकार में हस्तक्षेप करता है। छह भाजपा शासित राज्यों ने भी संशोधन के समर्थन में सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था। हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम ने हस्तक्षेप याचिका दायर की थी। इन राज्यों का तर्क है कि संशोधन की संवैधानिकता के साथ छेड़छाड़ की जाती है तो वो भी प्रभावित होंगे।
केंद्र सरकार ने कहा है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 वक्फ प्रावधानों के दुरुपयोग को रोकने के लिए लाया गया था। वक्फ के जरिये निजी और सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण किया जा रहा था।
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