Advertisment

बांग्लादेशियों को वापस भेजने के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट नहीं करेगा सुनवाई, जानें क्या बोला सर्वोच्च अदालत?

असम सरकार की पुशबैक नीति पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार किया। बिना सुनवाई निर्वासन पर चिंता, याचिकाकर्ताओं से हाईकोर्ट जाने को कहा गया। मामला अब गुवाहाटी हाईकोर्ट में पहुंचेगा।

author-image
Ajit Kumar Pandey
SUPREME COURT, BANGLADESH NEWS
Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।असम में कथित बांग्लादेशी नागरिकों पर एक और विवाद। बिना सुनवाई, सीधे निर्वासन? छात्रों ने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की पुशबैक नीति पर सीधा जवाब दिया। याचिका खारिज नहीं, लेकिन हाईकोर्ट जाने की सलाह दी गई। क्या मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है?

सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार की विवादित "पुशबैक नीति" पर दाखिल जनहित याचिका पर सीधे दखल देने से इनकार करते हुए साफ कहा है कि यह व्यक्तिगत मामलों से जुड़ा मसला है, जिसकी सुनवाई गुवाहाटी हाईकोर्ट में होनी चाहिए। ऑल बीटीसी माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन द्वारा दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि असम में विदेशी होने के संदेह मात्र पर लोगों को बिना न्यायिक प्रक्रिया के नो-मैन्स लैंड में जबरन भेजा जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

देश की सर्वोच्च अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह इस स्तर पर नीतिगत फैसले को चुनौती देने वाले मामले में दखल नहीं देगी। अदालत ने कहा कि, “चूंकि इसमें व्यक्तिगत अधिकारों का मामला है, इसलिए प्रत्येक पीड़ित को उचित न्याय के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए।”

Advertisment

याचिकाकर्ताओं का क्या आरोप है?

ऑल बीटीसी माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन का आरोप है कि असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश की गलत व्याख्या करते हुए एक ऐसी पुशबैक नीति बना दी है, जिसके तहत लोगों को अंधाधुंध तरीके से हिरासत में लिया जा रहा है और बिना विदेशी ट्राइब्यूनल की प्रक्रिया के ही उन्हें बांग्लादेश सीमा की ओर धकेला जा रहा है।

Advertisment

सुप्रीम कोर्ट का पुराना आदेश क्या कहता है?

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में यह आदेश दिया था कि –

“यदि कोई व्यक्ति विदेशी घोषित किया गया है और वह पहले से हिरासत केंद्र में है, तो उसे बांग्लादेश भेजा जा सकता है, अन्यथा उसके खिलाफ लंबित कार्यवाहियों का निपटारा होना चाहिए।”

Advertisment

लेकिन याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य सरकार ने इस आदेश की गलत व्याख्या की और बिना उचित प्रक्रिया के ही निर्वासन शुरू कर दिया।

क्या हो रही है मानवाधिकारों की अनदेखी?

मामले की संवेदनशीलता इस बात से समझी जा सकती है कि जिन लोगों को निर्वासित किया गया है, उनमें कई के पास पहचान पत्र, परिवार और स्थानीय दस्तावेज मौजूद थे।

याचिका में यह भी कहा गया कि अंधाधुंध निर्वासन से मानवाधिकारों का हनन हो रहा है।

अगला कदम क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को यह सलाह दी है कि वे गुवाहाटी हाईकोर्ट में जाकर व्यक्तिगत मामलों के आधार पर चुनौती दें। इससे यह साफ हो गया कि सुप्रीम कोर्ट का फोकस प्रक्रियात्मक न्याय पर है और हर केस की जांच स्थानीय स्तर पर होनी चाहिए।

इस फैसले ने एक बार फिर इस संवेदनशील मुद्दे को चर्चा में ला दिया है कि – क्या कोई भी सरकार, बिना कानूनी प्रक्रिया के, किसी व्यक्ति को निर्वासित कर सकती है?

क्या यह संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है?

क्या आप इससे सहमत हैं? कमेंट कर बताएं कि न्याय की प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए या नहीं। 

Assam | Assam news | supreme court | Bangladeshi Deportation | action on Bangladeshi immigrants |

supreme court action on Bangladeshi immigrants Assam news Assam Bangladeshi Deportation
Advertisment
Advertisment