इतना ही नहीं अदालत ने उनको 1 लाख रुपये की चपत भी लगाई है। भारत के भावी सीजेआई बीआर गवई ने तीखे लहजे में डिप्टी कमिश्नर से कहा कि आपने हमारे हाईकोर्ट को आंखें दिखाई थीं। हम आपको बताते हैं कि इसका नतीजा क्या होता है। India | court decision | Court contempt
स्टे के बावजूद चलाई थी डिमोलिशन ड्राइव
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आंध्र प्रदेश के डिप्टी कलेक्टर टाटा मोहन राव को पदावनत करने का आदेश दिया। उन्होंने तहसीलदार रहते गुंटूर जिले में झुग्गी-झोपड़ियों को गिराने का काम किया था, जबकि हाई कोर्ट ने इस तरह के किसी भी कदम पर रोक लगा रखी थी।
जस्टिस बीआर गवई और एजी मसीह की बेंच ने शुरू में चेतावनी दी थी कि राव को अदालत की अवमानना के लिए जेल की सजा हो सकती है, लेकिन आखिर में उन्हें केवल डिमोट करने का आदेश देने का फैसला किया, साथ ही उन्हें 1 लाख का जुर्माना भरने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने आदेश में कहा कि "हमें सूचित किया गया है कि याचिकाकर्ता को 2023 में डिप्टी कलेक्टर के रूप में प्रमोट किया गया है। हम आंध्र प्रदेश राज्य को याचिकाकर्ता को तहसीलदार के पद पर वापस करने का निर्देश देते हैं।" अदालत ने साफ कहा कि कोई भी व्यक्ति उनके आदेशों की अवहेलना नहीं कर सकता, चाहे वह कितना ही बड़ा अधिकारी ही क्यों न हो।
जस्टिस गवई बोले- पूरे देश में जाना चाहिए संदेश
जस्टिस गवई ने कहा कि यह स्पष्ट है कि वह सरकार के करीबी हैं। हम चाहते हैं कि यह संदेश पूरे देश में जाए कि आप चाहे कितने भी ऊंचे पद पर क्यों न हों लेकिन आप कोर्ट के आदेशों की अवहेलना नहीं कर सकते।
पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट से साफ कहा था कि वो बेहद कड़ा फैसले लेगी। लेकिन अदालत ने कहा कि अफसर को जेल भेजा गया तो उसकी नौकरी चली जाएगी। अदालत ने कहा कि हालांकि अधिकारी किसी भी तरह की नरमी के हकदार नहीं हैं, लेकिन उनके परिवार को कष्ट नहीं दिया जाना चाहिए।
नौकरी लेने पर आमादा थे जस्टिस, परिवार का ध्यान कर केवल डिमोट किया
हालांकि डिप्टी कमिश्नर ने रहम की गुहार लगाई लेकिन जस्टिस गवई का कहना था कि याचिकाकर्ता को यह सब तब सोचना चाहिए था जब उसने झोपड़ी में रहने वालों के घरों को तोड़कर सड़क पर फेंक दिया था। अगर वह अब मानवीय दृष्टिकोण की उम्मीद करता है तो उसे अमानवीय तरीके से काम नहीं करना चाहिए था। हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता किसी भी तरह से दया का हकदार नहीं है। लेकिन उसकी करतूत की सजा उसके बच्चों और परिवार को नहीं मिलनी चाहिए। अगर उसे दो महीने की कैद की सजा मिलती है तो वह अपनी नौकरी भी खो देगा।