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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । पश्चिम बंगाल में 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' SIR प्रक्रिया एक बड़े राजनीतिक विवाद का केंद्र बन गई है। चुनाव आयोग के मुताबिक, राज्य में अभी तक 14 लाख SIR फॉर्म कलेक्ट नहीं हो पाए हैं, जिससे इन वोटों के कटने का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। यह आंकड़ा बिहार के उस विवादास्पद SIR अभियान की याद दिलाता है, जहां 62 लाख वोट काटे गए थे। ममता बनर्जी ने इसे पहले ही 'साजिश' करार दिया है। क्या बंगाल में भी लाखों मतदाताओं का नाम सूची से गायब हो जाएगा? इसकी पड़ताल ज़रूरी है। क्या है बंगाल के 14 लाख वोटों पर मंडरा रहा SIR का 'काला साया'?
देश के 12 राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा कराए जा रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन SIR कार्यक्रम ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में भूचाल ला दिया है। चुनाव आयोग के अधिकारी लगातार उन SIR फॉर्म्स की संख्या बता रहे हैं, जो घरों से 'कलेक्ट नहीं' किए जा सके हैं। मंगलवार दोपहर तक यह संख्या 13.92 लाख तक पहुंच चुकी थी, और अधिकारियों का मानना है कि यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है।
यह कोई सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं है यह सीधे तौर पर लाखों लोगों के वोट के अधिकार को प्रभावित करने वाला कदम है। विपक्षी दलों का आरोप है कि इस प्रक्रिया को 'वोट कटवा' अभियान में बदल दिया गया है, जिसका सीधा असर चुनावी परिणामों पर पड़ सकता है।
बिहार का वो डरावना सच जब कटे थे 62 लाख वोट
बंगाल में इस बढ़ते आंकड़े से जो सबसे बड़ा डर पैदा हो रहा है, वह है बिहार का अनुभव। याद कीजिए, जब बिहार में इसी SIR प्रक्रिया को लागू किया गया था, तो वहां 62 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए गए थे। यह संख्या इतनी बड़ी थी कि इसने राज्य की राजनीति में दशकों तक हलचल मचाए रखी। अगर बंगाल में भी 14 लाख या उससे ज़्यादा वोट हटा दिए जाते हैं, तो यह सीधे तौर पर एक बड़ा राजनीतिक संकट खड़ा कर सकता है।
सवाल यह है कि चुनाव आयोग इन फॉर्म को कलेक्ट क्यों नहीं कर पा रहा है? वोट क्यों कट रहे हैं? आयोग ने बताई चौंकाने वाली वजहें।
चुनाव आयोग के अधिकारी इस बढ़ते आंकड़े के पीछे कुछ प्रमुख कारण गिना रहे हैं, जो सीधे तौर पर वोटरों की अनुपस्थिति या डेटा की गड़बड़ी से जुड़े हैं।गैर-हाजिर मतदाता जब बूथ लेवल ऑफिसर BLO डेटा लेने गए, तो वोटर घर पर मौजूद नहीं थे।
डुप्लीकेट एंट्री: एक ही वोटर का नाम सूची में एक से अधिक बार दर्ज था। मृत या स्थानांतरित वे मतदाता, जो या तो अब इस दुनिया में नहीं हैं या हमेशा के लिए कहीं और चले गए हैं।
सोमवार को यह संख्या 10.33 लाख थी और एक ही दिन में लगभग 2.59 लाख का इज़ाफा हुआ। यह रफ्तार संकेत दे रही है कि आने वाले दिनों में यह आंकड़ा 15 लाख या उससे भी ज़्यादा हो सकता है।
क्या आप जानते हैं? पश्चिम बंगाल में SIR प्रक्रिया के लिए 80600 से ज़्यादा BLOs, 8 हजार सुपरवाइजर, और 3 हजार असिस्टेंट इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर्स को लगाया गया है।
इस भारी-भरकम मशीनरी के बावजूद फॉर्म कलेक्ट न हो पाना चिंता का विषय है। क्या वाकई यह 'साज़िश' है?
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CM ममता बनर्जी का सीधा आरोप
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी SIR प्रक्रिया को लेकर पहले ही केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर 'बड़ी साजिश' का आरोप लगा चुकी हैं। उनका मानना है कि यह जानबूझकर एक खास समुदाय या समूह के वोटों को हटाने की कोशिश है, ताकि आने वाले चुनावों में राजनीतिक लाभ लिया जा सके।
यह आरोप केवल बंगाल तक सीमित नहीं है। उत्तर प्रदेश, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी SIR को लेकर राजनीतिक विरोध जारी है। विपक्षी दल इसे संविधान प्रदत्त वोट के अधिकार पर हमला मान रहे हैं।
BLOs की मौत और दबाव प्रक्रिया पर उठते गंभीर सवाल
SIR की प्रक्रिया ने न केवल राजनीतिक विवाद खड़ा किया है, बल्कि जमीन पर काम कर रहे अधिकारियों की जान भी ले ली है। दुःखद बात यह है कि चल रहे SIR के बीच राज्य में तीन BLOs की मौत हो चुकी है। कई कर्मचारी संगठन और राजनीतिक दल खुलकर आरोप लगा रहे हैं कि ये मौतें अत्यधिक काम के दबाव के कारण हुई हैं।
केरल में एक BLO ने कथित तौर पर इसी दबाव में आकर आत्महत्या कर ली थी। मुस्लिम लीग ने इस घटना का ज़िक्र करते हुए SIR के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की है।
बंगाल के लोकतंत्र का भविष्य दांव पर
SIR प्रक्रिया का उद्देश्य: बेशक मतदाता सूची को 'शुद्ध' करना है, लेकिन जिस तरह से लाखों फॉर्म कलेक्ट नहीं हो पा रहे हैं और BLOs पर काम का दबाव बढ़ रहा है, वह पूरी प्रक्रिया की पारदर्शिता और मंशा पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
बिहार के 62 लाख वोटों के कटने की पृष्ठभूमि में, बंगाल में 14 लाख से अधिक वोटों पर मंडरा रहा खतरा न केवल प्रशासनिक विफलता है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के लिए भी एक बड़ी चुनौती है।
चुनाव आयोग को इस प्रक्रिया की तुरंत समीक्षा करनी चाहिए, ताकि कोई भी असली और योग्य मतदाता अपने अधिकार से वंचित न रह जाए।
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