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बंगाल में 'क्रांतिकारी आतंकी'? देश उबला, इतिहास से खिलवाड़ क्यों? नेताजी के प्रपौत्र ने दिया करारा जवाब | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।पश्चिम बंगाल के विद्यासागर विश्वविद्यालय में एक परीक्षा प्रश्न पत्र ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। इसमें खुदीराम बोस जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों को 'आतंकवादी' कहा गया है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रपौत्र, चंद्र कुमार बोस ने इसे 'पवित्रता का अपमान' बताया है, जिससे पूरे देश में गहरा आक्रोश है।
यह घटना सिर्फ एक प्रश्न पत्र की गलती नहीं, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को विकृत करने की एक लंबी श्रृंखला का हिस्सा लगती है। जिस धरती पर खुदीराम बोस जैसे वीरों ने हंसते-हंसते अपनी जान न्यौछावर कर दी, वहां उन्हें 'आतंकवादी' कहना न सिर्फ शर्मनाक है, बल्कि उन सभी बलिदानों का अनादर है जिन्होंने हमें आज़ादी दिलाई। यह सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर कौन है जो हमारे क्रांतिकारियों को इस तरह अपमानित करने का दुस्साहस कर रहा है?
यह सुनकर हर भारतीय का खून खौल उठता है कि जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जवानी देश के नाम कर दी, उन्हें आज के दौर में कुछ लोग आतंकी कह रहे हैं। क्या हम अपने बच्चों को ऐसा विकृत इतिहास पढ़ाना चाहते हैं? क्या हम उन्हें यह सिखाना चाहते हैं कि जिन शहीदों ने हमें आज़ादी दी, वे वास्तव में 'आतंकवादी' थे?
नेताजी के प्रपौत्र का करारा जवाब: "यह बलिदान का अपमान है!"
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रपौत्र चंद्र कुमार बोस ने इस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, "हमारे स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को विकृत करना लंबे समय से हो रहा है। लेकिन खुदीराम बोस और अन्य क्रांतिकारियों को, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, उन्हें आतंकवादी कहना पवित्रता का अपमान है। प्रश्न पत्र तैयार करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।" उनकी यह बात करोड़ों भारतीयों के दिल की आवाज़ है, जो अपने नायकों का अपमान सहन नहीं कर सकते।
यह बयान दर्शाता है कि यह मुद्दा कितना गंभीर है और कैसे यह हमारी राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ा है। जब देश के महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक के परिवार का सदस्य ही इस पर इतनी चिंता व्यक्त कर रहा है, तो इसकी गंभीरता को समझा जा सकता है।
VIDEO | Kolkata: Netaji Subhas Chandra Bose's grandnephew, Chandra Kumar Bose, speaks on a controversial question in an exam paper at Vidyasagar University that referred to freedom fighters as 'terrorists'. He says, “The distortion of the history of our freedom struggle has been… pic.twitter.com/BdbStME1jw
— Press Trust of India (@PTI_News) July 11, 2025
कौन हैं खुदीराम बोस? एक 18 साल के शहीद की अमर कहानी
जिन खुदीराम बोस को इस प्रश्न पत्र में गलत तरीके से दर्शाया गया, वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे कम उम्र के शहीदों में से एक थे। मात्र 18 साल की उम्र में, उन्होंने मुजफ्फरपुर के मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड पर हमला किया, जो ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के लिए कुख्यात था। खुदीराम बोस का यह बलिदान लाखों भारतीयों के लिए प्रेरणा स्रोत बना और उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ संघर्ष को एक नई ऊर्जा दी। उन्हें फाँसी पर चढ़ाए जाने के बाद भी, उनका नाम भारतीय क्रांतिकारियों के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गया। ऐसे महान शहीद को 'आतंकवादी' कहना इतिहास और नैतिकता दोनों का घोर उल्लंघन है।
खुदीराम बोस का नाम आज भी बच्चे-बच्चे की जुबान पर है। उनकी बहादुरी और बलिदान की गाथाएं हमें प्रेरित करती हैं। ऐसे में उन्हें इस तरह से चित्रित करना न सिर्फ आपत्तिजनक है, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के मन में भ्रम पैदा कर सकता है।
विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी: क्या इतिहास को परखा जा रहा है?
यह घटना विद्यासागर विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थान की जिम्मेदारी पर गंभीर सवाल खड़े करती है। प्रश्न पत्र तैयार करने की प्रक्रिया में इतनी बड़ी चूक कैसे हो सकती है? क्या विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा इन प्रश्नों की समीक्षा नहीं की जाती? यह एक बड़ी लापरवाही है, जिसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं। शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान फैलाना है, न कि इतिहास को विकृत करना।
इस घटना के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन पर दबाव बढ़ गया है कि वे इस गलती को स्वीकार करें और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं। छात्रों और अभिभावकों के मन में भी इस बात को लेकर चिंता है कि अगर शिक्षण संस्थानों में ही इतिहास से इस तरह खिलवाड़ किया जाएगा तो हमारी युवा पीढ़ी सही जानकारी कैसे प्राप्त करेगी।
इस मामले में तत्काल और कड़ी कार्रवाई की मांग की जा रही है। प्रश्न पत्र तैयार करने और उसकी समीक्षा करने वाले सभी जिम्मेदार व्यक्तियों की जवाबदेही तय होनी चाहिए। यह सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है कि भविष्य में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के साथ ऐसा कोई खिलवाड़ न हो। हमें अपने स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को कभी नहीं भूलना चाहिए और उनके सम्मान की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। यह समय है कि हम सब मिलकर अपने इतिहास के गौरव को बचाएं और सच्चाई की आवाज उठाएं।
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