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मथुरा कारागार में प्रकट हुए थे श्रीकृष्ण, जानें रोहिणी नक्षत्र का रहस्य

जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। यह संयोग सिर्फ ज्योतिषीय नहीं, बल्कि एक अद्भुत खगोलीय घटना थी। यह नक्षत्र प्रेम, शीतलता और आकर्षण का प्रतीक है, जो कृष्ण के जीवन से जुड़ा है। जानें क्यों यह संयोग उनके जन्म को अलौकिक बनाता है।

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Ajit Kumar Pandey
मथुरा कारागार में प्रकट हुए थे श्रीकृष्ण, जानें रोहिणी नक्षत्र का रहस्य | यंग भारत न्यूज

मथुरा कारागार में प्रकट हुए थे श्रीकृष्ण, जानें रोहिणी नक्षत्र का रहस्य | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । सनातन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक जन्माष्टमी हर साल भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। यह सिर्फ एक पर्व नहीं बल्कि आस्था, प्रेम और भक्ति का अद्भुत संगम है। मथुरा की पावन भूमि पर जहां भगवान विष्णु के आठवें अवतार ने जन्म लिया था उस पल की कल्पना मात्र से ही मन भावुक हो जाता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि उस रात सिर्फ जन्माष्टमी का त्योहार ही नहीं था बल्कि ज्योतिषीय और खगोलीय घटनाओं का भी एक दुर्लभ संयोग था? इसी खास संयोग ने उस जन्म को और भी अलौकिक बना दिया था।

दरअसल, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भादो महीने की अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में हुआ था। उस रात रोहिणी नक्षत्र का अद्भुत संयोग था जो इसे और भी खास बनाता है। ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्रों में से रोहिणी को सबसे शुभ और शक्तिशाली माना जाता है। इसे चंद्रमा की पत्नी भी कहा जाता है और इसका सीधा संबंध शीतलता और प्रेम से है। यही कारण है कि इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग बहुत ही आकर्षक, कला प्रेमी और शांत स्वभाव के होते हैं।

ऐसा माना जाता है रोहिणी नक्षत्र में कोई भी शुभ कार्य करने से सफलता निश्चित मिलती है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के लिए इस नक्षत्र का चुनाव कोई साधारण बात नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि उनका जीवन प्रेम, शांति और धर्म की स्थापना के लिए समर्पित था।

मथुरा की जेल में अद्भुत संयोग

जब देवकी और वासुदेव कारागार में थे तब आधी रात में चारो ओर घना अंधेरा छाया हुआ था। आकाश में बादल गरज रहे थे और तेज बारिश हो रही थी। तभी अचानक कारागार के द्वार खुल गए, पहरेदार गहरी नींद में सो गए और एक अलौकिक शक्ति ने वासुदेव को प्रेरित किया कि वे नवजात शिशु को गोकुल में नंद बाबा के घर पहुंचा दें।

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जिस समय भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, उस समय की ज्योतिषीय गणनाएं हमें बताती हैं कि यह एक ऐसा क्षण था जहां ब्रह्मांड की सभी सकारात्मक ऊर्जाएं एक साथ थीं। अष्टमी तिथि, बुधवार का दिन, वृषभ लग्न और रोहिणी नक्षत्र का संगम उस जन्म को और भी दिव्य बना रहा था। इस अद्भुत संयोग ने यह भी संकेत दिया कि यह बालक कोई साधारण नहीं बल्कि एक युग पुरुष होगा जो धर्म की स्थापना करेगा और संसार को प्रेम का मार्ग दिखाएगा।

रोहिणी नक्षत्र और भगवान श्रीकृष्ण के जीवन का संबंध

यह संयोग सिर्फ जन्म तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि इसका असर भगवान श्रीकृष्ण के पूरे जीवन पर भी देखने को मिलता है। रोहिणी नक्षत्र का प्रभाव उन्हें प्रेम, कला और मधुरता से जोड़ता है। उनके जीवन के कई प्रसंग जैसे कि रासलीला, बांसुरी की धुन और गोकुल की गोपियों से उनका प्रेम, रोहिणी नक्षत्र के गुणों को दर्शाते हैं। रोहिणी का प्रतीक "रथ" है जो उनके जीवन में गतिशीलता और कर्मयोग को भी दर्शाता है।

रोहिणी नक्षत्र के वैज्ञानिक और खगोलीय पहलू

खगोल विज्ञान की दृष्टि से रोहिणी नक्षत्र को वृषभ राशि के एक हिस्से के रूप में देखा जाता है। यह एक विशेष तारा समूह है जिसे हम नंगी आंखों से भी देख सकते हैं। भारतीय ज्योतिष में हर नक्षत्र को एक विशेष तारे से जोड़ा गया है और रोहिणी तारा समूह उन सभी में सबसे चमकीला और आकर्षक माना जाता है। यही कारण है कि इसे 'आंख का तारा' भी कहते हैं। इस नक्षत्र में चंद्रमा की स्थिति विशेष रूप से अनुकूल होती है, जिससे यह अपने आप में एक शक्तिशाली ऊर्जा का केंद्र बन जाता है।

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जन्माष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र के संयोग का अर्थ है कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा का एक विशेष प्रवाह होता है जिसका लाभ न केवल भक्ति करने वालों को, बल्कि पूरे वातावरण को मिलता है। यही कारण है कि इस दिन पूजा-पाठ और व्रत का विशेष महत्व होता है।

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