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नई दिल्ली, आईएएनएस। अमेरिका ने भारत के फार्मा निर्यात को 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ से बाहर रखा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस फैसले का सबसे बड़ा असर यह होगा कि अमेरिकी दवाओं पर महंगाई की मार से बच जाएंगे। फार्मा सेक्टर को अतिरिक्त टैरिफ से बाहर रखने के सवाल पर विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया के अग्रणी जेनेरिक दवा निर्माता के रूप में भारत की भूमिका ही व्याख्या कर सकती है कि दवा उद्योग को अमेरिकी टैरिफ से बाहर क्यों रखा गया है।
बुधवार को लागू हुआ अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार से भारत पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ लागू कर दिया है, जिससे कुल टैरिफ 50 प्रतिशत हो गया है। हालांकि, अमेरिका को भारत के फार्मा निर्यात (जो भारत के कुल फार्मा निर्यात का 35 प्रतिशत है) को टैरिफ से बाहर रखा गया है। यह क्षेत्र वर्तमान में सेक्शन 232 इनवेस्टिगेशन के तहत समीक्षाधीन है।
सबसे सस्ती दवाएं निर्यात करता है भारत
इंडियन फार्मास्युटिकल एलायंस (एपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा कि जेनेरिक दवाओं को ही फार्मा सेक्टर को अतिरिक्त टैरिफ से बाहर रखने का प्रमुख कारण मान सकते हैं, जो अमेरिका में किफायती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। भारत सबसे सस्ती दवाएं प्रदान करता है और विश्व स्तर पर जेनरिक दवाओं का सबसे बड़ा उत्पादक है। देश का फार्मास्युटिकल क्षेत्र दुनिया की लगभग 80 प्रतिशत जेनेरिक दवाओं की सप्लाई करता है।
फार्मा राजस्व में अमेरिका का हिस्सा घटा
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (इंड-रा) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय जेनेरिक निर्यात पर कम लागत और उच्च मूल्य वाला प्रस्ताव अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा उद्योग को महत्वपूर्ण लागत लाभ प्रदान करता है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों में फार्मा राजस्व में अमेरिका के योगदान का अनुपात लगातार घट रहा है। ऐसा कीमतों में गिरावट और मार्जिन व रिटर्न पर इसके प्रभाव के कारण है। इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के निदेशक (कॉर्पोरेट) विवेक जैन ने कहा, "अधिकांश भारतीय फार्मा कंपनियों का अमेरिकी बाजार में जेनेरिक कारोबार है, जिससे उन्हें कम परिचालन लाभ होता है।
सेक्टर में लिक्विडिटी का जोखिम नहीं
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विवेक जैन ने कहा- भारतीय कंपनियों का राजस्व मॉडल विविध है और बैलेंस शीट भी मजबूत है। इस सेक्टर में लिक्विडिटी को लेकर कोई बड़ा जोखिम नहीं है।" उन्होंने आगे कहा, "इसके अलावा, अधिकांश कंपनियों के पास ऋण समझौतों और विविध वित्तपोषण स्रोतों के तहत पर्याप्त गुंजाइश है। इसलिए, भारतीय फार्मा पर भविष्य के टैरिफ का कोई महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना बहुत कम है।"
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