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Waqf Act पर बड़ा आदेश, मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने कहा– पूरे कानून पर रोक का आधार नहीं | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर एक बड़ा फैसला सुनाया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने कहा कि उन्हें लगता है कि पूरे कानून पर रोक लगाने का कोई मामला नहीं बनता। लेकिन, कुछ बेहद विवादास्पद प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगा दी है। इस फैसले ने वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या और 'इस्लाम का अनुयायी होने' जैसी शर्तों पर महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं, जिसने इस संवेदनशील मामले में एक नया मोड़ ला दिया है।
वक्फ एक्ट 1995 में 2025 में हुए संशोधन भारत में सबसे ज्यादा चर्चा और विवाद का विषय बन गए हैं। इस कानून ने वक्फ बोर्डों को असीमित अधिकार दिए थे, जिसकी वजह से कई संपत्तियों को वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया गया, भले ही उनका कोई ऐतिहासिक या दस्तावेजी संबंध न हो।
यह सिर्फ कानूनी पेचीदगी नहीं थी बल्कि करोड़ों भारतीयों की भावनाओं और संपत्ति के अधिकारों से जुड़ा मामला बन गया था। याचिकाकर्ताओं ने इस कानून को मनमाना और संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ बताया था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट को इस मामले की सुनवाई करनी पड़ी।
यह फैसला केवल एक कानूनी आदेश नहीं है, बल्कि देश में संपत्ति के अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और सरकारी शक्तियों के बीच संतुलन स्थापित करने की एक कोशिश है।
सुप्रीम कोर्ट ने किन तीन मुद्दों पर सुनाया अंतरिम फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की गहन सुनवाई करते हुए तीन मुख्य मुद्दों पर अपना अंतरिम फैसला सुनाया है, जो इस कानून के भविष्य को निर्धारित करेंगे।
- क्या वक्फ घोषित संपत्तियों को अदालतें वक्फ की सूची से हटा सकती हैं?
- क्या किसी संपत्ति को सिर्फ उपयोग के आधार पर या किसी दस्तावेज के जरिए वक्फ घोषित किया जा सकता है?
- अगर किसी जमीन को पहले अदालत ने वक्फ घोषित कर दिया हो, तो क्या सरकार बाद में उसे सूची से हटा सकती है?
इन तीनों सवालों पर कोर्ट का रुख बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि, ये सीधे तौर पर निजी संपत्ति के अधिकारों को प्रभावित करते हैं। कोर्ट ने इन मुद्दों पर अंतिम फैसला सुरक्षित रखा है लेकिन अपने अंतरिम आदेशों से कुछ स्पष्ट संदेश दिए हैं।
किन प्रावधानों पर लगी रोक?
सुप्रीम कोर्ट ने पूरे वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर रोक नहीं लगाई है लेकिन, इसके कुछ सबसे ज्यादा विवादित प्रावधानों पर रोक लगा दी है। ये प्रावधान थे:
'5 साल तक मुस्लिम होने की शर्त': यह सबसे ज्यादा विवादित प्रावधान था। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति तभी वक्फ बना सकता था जब वह पिछले पांच साल से इस्लाम का अनुयायी हो। कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी और कहा कि यह तय करने का कोई तंत्र नहीं है कि कोई व्यक्ति पांच साल से मुस्लिम रहा है या नहीं। यह एक बहुत ही व्यावहारिक और दूरदर्शी कदम है, क्योंकि इस तरह की शर्त धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों को चुनौती देती है।
गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या: सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषदों में गैर-मुस्लिमों की संख्या को सीमित कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या तीन से अधिक नहीं हो सकती, जबकि केंद्रीय वक्फ परिषद में यह संख्या चार तक सीमित रहेगी।
कलेक्टर की शक्तियां: अदालत ने उस प्रावधान पर भी रोक लगा दी है, जिसके तहत कलेक्टर को राजस्व रिकॉर्ड में यह दर्ज करने का अधिकार था कि कोई संपत्ति वक्फ नहीं है। कोर्ट ने इसे 'शक्ति पृथक्करण' के सिद्धांत का उल्लंघन बताया। इस फैसले का सीधा मतलब है कि अब कोई भी राजस्व रिकॉर्ड बदला नहीं जा सकेगा, जब तक कि इस पर कोई अंतिम फैसला न आ जाए।
क्या सरकार और याचिकाकर्ताओं की दलीलें?
इस मामले में केंद्र सरकार और याचिकाकर्ताओं के बीच तीखी बहस हुई। केंद्र सरकार ने इस कानून का बचाव करते हुए कहा कि वक्फ अपने आप में एक 'धर्मनिरपेक्ष' व्यवस्था है और यह इस्लाम का कोई अनिवार्य हिस्सा नहीं है।
सरकार ने यह भी तर्क दिया कि जब कोई कानून संसद से पास होता है, तो उसे संविधान के अनुकूल ही माना जाता है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि वह इस कानून पर रोक न लगाए।
दूसरी तरफ, याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने जोरदार बहस की। उन्होंने इस अधिनियम को ऐतिहासिक कानूनों और संवैधानिक सिद्धांतों से पूरी तरह अलग बताया। उन्होंने तर्क दिया कि इसका मकसद वक्फ की संपत्ति पर गैर-कानूनी तरीके से नियंत्रण करना है, जो कि संपत्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि पूरे कानून पर रोक लगाई जाए, लेकिन कोर्ट ने इस मांग को खारिज कर दिया।
वक्फ कानून: एक नया विवाद या पुरानी बहस का नया अध्याय?
वक्फ कानून का इतिहास बहुत पुराना है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत कोई भी मुस्लिम व्यक्ति अपनी संपत्ति को धार्मिक या परोपकारी कार्यों के लिए समर्पित कर सकता है। लेकिन समय के साथ इस कानून में कई बदलाव हुए हैं, जिनकी वजह से यह विवादों में रहा है।
वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को लेकर जो नया विवाद सामने आया है वह केवल एक कानूनी लड़ाई नहीं है, बल्कि भारत में धर्म, राजनीति और संपत्ति के अधिकार के बीच चल रहे संवेदनशील संतुलन को दर्शाता है।
यह मामला सिर्फ वक्फ संपत्तियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बड़ा सवाल खड़ा करता है: क्या सरकार को किसी धार्मिक समुदाय की निजी संपत्तियों पर असीमित नियंत्रण का अधिकार मिलना चाहिए?
यह फैसला इस बात का भी संकेत देता है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार के कानून बनाने के अधिकार को पूरी तरह से नहीं रोक रहा है, बल्कि यह सुनिश्चित कर रहा है कि ये कानून संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप हों।
वकील एमआर शमशाद ने इस फैसले को 'अच्छा आदेश' बताया, जबकि वरुण सिन्हा का कहना है कि यह केवल एक अंतरिम आदेश है और केंद्र सरकार के संशोधनों पर कोई रोक नहीं है। यह दोनों पक्षों के दृष्टिकोण को दर्शाता है कि इस मामले में अभी भी बहुत कुछ बाकी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अभी अंतिम फैसला नहीं सुनाया है।
यह एक अंतरिम आदेश है, जिसका मतलब है कि सुनवाई जारी रहेगी। आने वाले दिनों में और भी कई कानूनी दलीलें सामने आएंगी, जो इस संवेदनशील मामले को एक नई दिशा दे सकती हैं।
यह देखना दिलचस्प होगा कि कोर्ट 'उपयोग के आधार पर वक्फ' जैसी जटिल अवधारणाओं पर क्या रुख अपनाता है। इस मामले का अंतिम फैसला भारत में वक्फ संपत्तियों के भविष्य और धार्मिक स्वतंत्रता के दायरे को हमेशा के लिए बदल सकता है।
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