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Bihar Elections: लालू यादव और कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी है AIMIM का साथ, समझिए

2020 के चुनाव को देखें तो साफ हो जाता है कि दोनों के लिए ओवैसी क्यों इतने जरूरी बन गए हैं। उस दौरान 243 सीटों पर हुए चुनाव में ओवैसी ने 20 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। नतीजा आया तो लालू ने माथा पकड़ लिया। ओवैसी की पार्टी के 5 विधायक जीतकर आए।

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Shailendra Gautam
Asaduddin Owaisi, AIMIM

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः बिहार चुनाव से पहले अगर कोई राजनेता चर्चा में है तो वो हैं असद्दुद्दीन ओवैसी। वो बीजेपी को हराने के लिए विपक्ष के साथ आना चाहते हैं। खास बात है कि लालू यादव और कांग्रेस दोनों ही उनकी अहमियत को नजरंदाज नहीं कर पा रहे हैं। दोनों को लगता है कि ओवैसी साथ रहे तो कम नुकसान करेंगे, खिलाफ रहे तो ज्यादा कर देंगे।  

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2020 में 20 सीटों पर लड़े थे ओवैसी, 5 जीत गए थे

लालू और कांग्रेस की चिंता गैरवाजिब नहीं है। 2020 के चुनाव को देखें तो साफ हो जाता है कि दोनों के लिए ओवैसी क्यों इतने जरूरी बन गए हैं। उस दौरान 243 सीटों पर हुए चुनाव में ओवैसी ने 20 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। नतीजा आया तो लालू ने माथा पकड़ लिया। ओवैसी की पार्टी के 5 विधायक जीतकर आए। हालांकि चुनाव बाद तेजस्वी ने 5 में से 4 को तोड़कर राजद में मिला लिया। कहने को तो ओवैसी को बिहार में कमजोर कर दिया गया लेकिन लालू जानते हैं कि विधायक तोड़ लेने भर से ओवैसी कमजोर नहीं होने वाले हैं। बिहार के एक खास वोट बैंक में वो सेंध लगा चुके हैं। उनके 5 विधायक तभी जीतकर आए जब लोगों ने उनको समर्थन दिया। लालू जानते हैं कि 5 साल में ऐसा कुछ नहीं बदला है जिससे ओवैसी बिहार में कमजोर हो गए हों। अगर वो अकेले चुनाव लड़े तो फिर से 2020 का सीन दोहरा सकते हैं। 

बीजेपी की काट के लिए लालू को ओवैसी की दरकार

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लालू को पता है कि बिहार चुनाव को लेकर बीजेपी ने जो रणनीति तैयार की है उसे साधने के लिए ओवैसी की जरूरत पड़ेगी। बीजेपी ने नीतीश कुमार, चिराग पासवान और जीतनराम मांझी के साथ मिलकर एक ऐसा मोर्चा तैयार किया है जो लालू को MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण को नुकसान पहुंचा सकता है। बीजेपी मानती है कि नीतीश कुमार मुस्लिम वोट में कुछ हद तक सेंध लगा सकते हैं। लेकिन उतनी ज्यादा नहीं जितना कि ओवैसी। बीजेपी की पुरजोर कोशिश होगी कि वो ओवैसी को लालू-कांग्रेस से अलग कर दे। वो अकेले की चुनाव मैदान में उतरें। 

असद्दुद्दीन ओवैसी को अक्सर बीजेपी की बी टीम कहकर बुलाया जाता है, क्योंकि विपक्षी दल समझते हैं कि ओवैसी चुनावी मैदान में उतरकर उस वोटबैंक को खराब करते हैं जो एंटी बीजेपी है। फिलहाल बिहार चुनाव की तपिश हर तरफ दिखाई दे रही है। सीटों का गठबंधन जोरों पर है। ओवैसी ने लालू के साथ गठबंधन की जरूरत को अपने ही तरीके से समझाया। उनका कहना था कि अभी मान नहीं रहे तो चुनाव बाद ये मत कहना कि 'मम्मी, उन्होंने मेरी चाकलेट चुरा ली'। उनके कहने का आशय था कि चुनाव बाद हार जाओ तो रोने मत लगना। 

बिहार की राजनीति में अहम है मुस्लिम

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बिहार में नीतीश सरकार की ओर से कराई गयी जातीय जनगणना के बाद जो आंकड़े आए हैं उसके अनुसार बिहार की कुल जनसंख्या 13 करोड़ 7 लाख है। बिहार में 215 जातियां हैं, इनमें अनुसूचित जाति में 22, अनुसूचित जनजाति में 32, पिछड़ा वर्ग में 30, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) में 113 और उच्च जाति में 7 जातियों की गणना की गई है। जातियों की आबादी की बात की जाए तो सबसे बड़ी संख्या अत्यंत पिछड़ा वर्ग की है जो 36.01 फीसदी है। पिछड़ा वर्ग 27.12 फीसदी है, जबकि अनुसूचित जाति का हिस्सा 19.65 फीसदी है। 

2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार की कुल आबादी करीब 10.4 करोड़ थी, जिसमें से 16.9 फीसदी यानी लगभग 1.76 करोड़ लोग मुस्लिम समुदाय से थे। 2023 की जातीय जनगणना के अनुसार, राज्य की जनसंख्या बढ़कर 13 करोड़ हो गई, और मुस्लिमों की हिस्सेदारी 17.7 फीसदी दर्ज की गई। बिहार के सीमांचल क्षेत्र यानी अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, और कुछ हद तक पटना व भागलपुर में मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा है। यह इलाका लंबे समय से मुस्लिम वोट बैंक का केंद्र रहा है, जहां से कई बार सियासी समीकरण उलटफेर करते देखे गए हैं।

हालांकि नीतीश जब बीजेपी से अलग थे तो मुस्लिम वो बैंक उनके पास भी जाता था। लेकिन बीजेपी के साथ आने से ये वोट बैंक लालू की तरफ वापस मुड़ गया। 2020 में इस वोट बैंक में पहली बार सेंध तब लगी जब ओवैसी की पार्टी ने 5 सीटों पर जीत हासिल की। 

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